हिंदी राष्ट्र से अन्तर्राष्ट्र को, व्यक्ति को समष्टि से जोड़ने वाली सशक्त भाषा है, इक्कीसवीं सदी हिंदी का युग है.आज हिंदी विश्व में सर्वाधिक बोले जाने वाली दूसरी भाषा है. संसार में हिंदी भाषा-भाषी एवं ज्ञाताओं की संख्या लगभग 112 करोड़ है. हिंदी को दुनिया भर के 200 से अधिक विश्वविद्यालयों में भी पढ़ाया जा रहा है, जिससे ज्ञानियों की संख्या और भी बढ़ सकती है. विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार हिंदी विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है.
संविधान और कानून की सक्षत अभिव्यक्ति :हिंदी विषय पर विस्तार से चर्चा करने से पूर्व हम यह भी जानते चलें की संविधान क्या है ?, कानून क्या होते हैं ? कौन कानून बनाने का अधिकार रखता है? आदि-आदि
संविधान किसे कह्ते हैं?
भारतीय गणराज्य के सर्वोच्च विधान को संविधान कहा जाता है. संविधान को संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को पारित किया गया था. इसके बाद 26 जनवरी 1950 से भारत में संविधान लागू हुआ था. यह दिवस, भारत में हर साल गणतन्त्र दिवस के रूप में मनाया जाता है. भारत सरकार अधिनियम 1935 को, भारत के संविधान का मूल आधार माना जाता है.
भारत के संविधान में 395 अनुच्छेद तथा 12 अनुसूचियां हैं. ये 25 भागों में विभाजित है. हालांकि निर्माण के समय हमारे मूल संविधान में 395 अनुच्छेद जो 22 भागों में विभाजित थे और उनमें 8 अनुसूचियां थी. हमारे संविधान में भारत के संसदीय स्वरूप की विस्तृत व्यवस्था है. भारत के संविधान की संरचना संघीय है.
भारत का संविधान, इसकी प्रस्तावना के साथ शुरू होता है. संविधान की प्रस्तावना में इसके आदर्श, उद्देश्य और बुनियादी सिद्धांत शामिल हैं. संविधान की मुख्य विशेषताएं इन उद्देश्यों से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से विकसित हुई हैं जो प्रस्तावना से प्रवाहित होती हैं. हमारे संविधान ने देश की आवश्यकता के अनुसार विश्व के अधिकांश प्रमुख संविधानों की सर्वोत्तम विशेषताओं को अपनाया है. हालांकि भारत का संविधान कई देशों से उधार लिया गया है, लेकिन फिर भी हमारे संविधान में कई प्रमुख विशेषताएं हैं जो इसे अन्य देशों के संविधानों से अलग करती हैं.
कानून बनाने का अधिकार मुख्य रूप से संसद को है. संसद के दोनो सदन लोकसभा और राज्यसभा शामिल है, और राष्ट्रपति की सहमति से कानून पारित होते है. इसके अतिरिक्त राज्य स्तर पर, राज्य विधानमंडल भी अपने-अपने राज्यों के लिए कानून बना सकते हैं.
इसी विशेषाधिकार के चलते हिंदी को देश की भाषा बनाने का अधिकार संविधान सभा ने दिया, जिसने 14 सितंबर 1949 को हिंदी को “ राष्ट्रभाषा” नहीं, बल्कि संघ की राजभाषा का दर्जा दिया गया है, जो सरकारी कामकाज की भाषा होती है. हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी को भी सहायक राजभाषा के रूप में रखा गया है और राजभाषा अधिनियम 1963 ने हिंदी के साथ अंग्रेजी के उपयोग की अनुमति दी.गई. अनुच्छेद 343 के अनुसार हिंदी अब संघ की राजभाषा है. और इसकी लिपि देवनागरी होगी. संविधान के भाग 17 में अनुच्छेद 343 से 351 तक राजभाषा संबंधी प्रावधान दिए गए हैं, जो हिंदी के प्रयोग, विकास और प्रचार-प्रसार से संबंधित है.
हिंदी का राष्ट्रभाषा के रूप में प्रयोग भारतीय संविधान में कहीं नहीं है. हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में मान्यता स्वतंत्रता आंदोलन में देश के नेताओं ने देश को एकता के सूत्र में बाँधने के लिए दी थी; क्योंकि हिंदी ही भारत कि एक ऐसी भाषा थी जो देश में सर्वाधिक लोगों द्वारा बोली और समझी जाती थी. स्वतंत्रता आंदोलन को देशव्यापी बनाने के लिए आवश्यकता इस बात की थी कि कोई ऐसी भाषा चुनी जाये, जिसके माध्यम से स्वाधीन भारत का उद्घोष सारे देश में फ़ैल सके. समय की माँग को देखते हुए भारतीय नेताओं ने, चाहे उनका सम्बन्ध देश के किसी भी कोने से रहा हो, यह अनुभव किया कि सारे देश की भाषा यदि कोई भाषा हो सकती है तो वह "हिंदी" ही है, और हिंदी को ही संपूर्ण देश के लिए संपर्क भाषा बनाने का निश्चय किया गया. "गुजरात के महात्मा गाँधी, कश्मीर के जवाहरलाल नेहरू, महाराष्ट्र के लोकमान्य तिलक, बंगाल के रवीन्द्रनाथ ठाकुर, पंजाब के लाला लाजपतराय, दक्षिण के चक्रवर्ती राजगोपालाचारी आदि अनेक नेताओं एक स्वर से हिंदी को "राष्ट्रभाषा" घोषित किया. हिंदी स्वतंत्रता आंदोलन में शंखनाद की भाषा बनी.
भारत के स्वाधीन होने पर जब संविधान में देश कि प्रधान भाषा होने कि बात उठी तो "राष्ट्रभाषा" कि संकल्पना जो स्वतंत्रता के पूर्व थी, नहीं रही. स्वतंत्रता के पूर्व जो छोटे-बड़े नेता राष्ट्रभाषा या राजभाषा के रूप में हिंदी को अपनाने के मुद्दे पर सहमत थे, उनमें से अधिकांश गैर-हिंदी भाषी नेता "हिंदी" के नाम पर बिदकने लगे. अब राष्ट्रभाषा का अर्थ राष्ट्र की भाषा से लिया गया और सभी भारतीय भाषाओं को राष्ट्रभाषा माना गया. राष्ट्र की प्रमुख भाषाओं की गणना अष्टम अनुसूची में की गयी और अन्य चौदह भाषाओं के साथ हिंदी को भी स्थान दिया गया. "संविधान सभा में केवल हिंदी पर विचार नहीं हुआ; राजभाषा के नाम पर जो बहस 11 सितंबर, 1949 ई. से 14 सितम्बर 1949 ई. तक हुई, उसमें हिंदी, अंग्रेज़ी, संस्कृत एवं हिन्दुस्तानी के दावे पर विचार किया गया.
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि संघर्ष की स्थिति सिर्फ़ हिंदी और अंग्रेज़ी के समर्थकों के मध्य ही देखने को मिली. आज़ाद भारत में के विदेशी भाषा (अंग्रेज़ी), जिसे देश की बहुत कम आबादी ही पढ़-लिख-समझ सकती थी, देश की राजभाषा नहीं बन सकती थी. हिंदी देश की जनता की भाषा थी. देश की लगभग आधी आबादी हिंदी को उपयोग में लाती थी, इसलिए हिंदी का दावा न्याययुक्त था. संविधान सभा के भीतर और बाहर हिंदी के विपुल समर्थन को देखकर संविधान सभा ने हिंदी के पक्ष में अपना फ़ैसला दिया.
संविधान में हिंदी को राजभाषा का दर्जा देते हुए उसके स्वरूप, क्षेत्र और दायित्वों का विवेचन विस्तार से किया गया है. संविधान में अनुच्छेद-120 और 210 के अतिरिक्त 343 से 351 तक (2+9) ग्यारह अनुच्छेदों में संघ और राज्यों के सरकारी प्रयोजनों के लिए संसद और विधानमंडलों में प्रयुक्त होने वाली भाषा, न्यायालयों में प्रयुक्त भाषा, संघ और राज्यों के बीच प्रयुक्त होने वाली भाषा और राज्यों के आपस में संप्रेषण माध्यम के रूप में प्रयुक्त होने वाली भाषा के संबंध में अलग-अलग व्यवस्था दी गयी है. अनुच्छेद-120 के अनुसार- "संसद का कार्य हिंदी में या अंग्रेज़ी में किया जायेगा, परन्तु यथास्थिति लोकसभाध्यक्ष या राज्यसभा का सभापति किसी सदस्य को उसकी मातृभाषा में सदन को संबोधित करने की अनुमति दे सकता है. संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तो 15 वर्ष की अवधि के पश्चात "या अंग्रेज़ी में" शब्दों का लोप किया जा सकेगा.
अनुच्छेद-210 उपरोक्त व्यवस्था राज्यों के विधानमंडलों में प्रयुक्त होने वाली भाषाओं के संबंध में प्रदान करता है. अनुच्छेद-343 में संघ की राजभाषा "हिंदी" और लिपि "देवनागरी" को घोषित किया गया है. अंकों का प्रयोग वही होगा जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चलन में है. अनुच्छेद-344 राष्ट्रपति द्वारा राजभाषा आयोग एवं समिति के गठन से संबंधित है. अनुच्छेद-345, 346 और 347 में प्रादेशिक भाषाओं से संबंधित प्रावधान हैं. अनुच्छेद-348 में उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों, संसद और विधानमंडलों में प्रस्तुत विधेयकों की भाषा के संबंध में विस्तार से प्रकाश डाला गया है. अनुच्छेद-349 में भाषा से संबंधित विधियाँ अधिनियमित करने की प्रक्रिया का वर्णन है. अनुच्छेद-350 में जनसाधारण की शिकायतें दूर करने के लिए आवेदन में प्रयुक्त की जाने वाली भाषा तथा प्राथमिक स्तर पर शिक्षण-सुविधाएँ देने और भाषायी अल्पसंख्यकों के बारे में दिशा-निर्देश देने का प्रावधान है. अनुच्छेद-351 में सरकार के उन कर्तव्यों और दायित्वों का उल्लेख किया गया है, जिनका पालन हिंदी के प्रचार-प्रसार और विकास के लिए सरकार को करना है. उपरोक्त के अतिरिक्त राष्ट्रपति ने अधिसूचना सं. 59/2/54, दिनांक : 03-12-1955 के द्वारा "सरकारी प्रयोजनों के हिंदी भाषा आदेश, 1955" को जारी किया है, जिसके द्वारा अंग्रेज़ी के साथ हिंदी का प्रयोग निम्नलिखित कार्यों हेतु किया जा सकता है-
· जनता के साथ पत्र-व्यवहार के लिए
· प्रशासनिक रिपोर्ट, सरकारी संकल्प, संसद में प्रस्तुत की जाने वाली रिपोर्ट के लिए
· हिंदी-भाषी राज्यों के साथ पत्र-व्यवहार के लिए
· अन्य देश की सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ पत्र-व्यवहार के लिए
· संधियों एवं ऋणों के लिए
संविधान के अनुच्छेद-343 के अनुसार- 15 वर्षों की अवधि के बाद अर्थात् 1965 ई. में हिंदी को पूर्णतया अंग्रेज़ी का स्थान लेना था, किंतु जब यह देखा गया (या यह कहें कि राजनीतिक स्वार्थों के कारण) हिंदी सरकारी कार्यालयों में लोकप्रियता से वंचित है तो संसद को 1965 के बाद भी अंग्रेज़ी का प्रयोग जारी रखने के लिए अधिनियम बनाना पड़ा. "धारा-3(i) में यह व्यवस्था है कि संविधान के प्रारंभ से 15 वर्ष की कालावधि समाप्त हो जाने पर भी हिंदी के अतिरिक्त अंग्रेज़ी भाषा संघ के उन सब शासकीय प्रयोजनों के लिए, जिनके लिए वह उस दिन तक के ठीक पहले लायी जाती थी तथा 3(ख) संसद में कार्य के संव्यवहार के लिए प्रयोग में लायी जाती रह सकेगी.
इस अधिनियम की धारा-4 के अनुसार- राजभाषा के संबंध में एक संसदीय समिति गठित की गयी थी, जो अभी तक अपना काम कर रही है. साथ ही सन 1968 ई. में राजभाषा के संबंध में एक संकल्प पारित किया गया, जिसमें सरकार द्वारा हिंदी के प्रगामी प्रयोग के संबंध में वार्षिक मूल्यांकन रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत करने की व्यवस्था है. सन 1975 ई. में गृह मंत्रालय के अंतर्गत राजभाषा विभाग की स्थापना की गई है, जिससे कि केंद्रीय सरकार के कार्यालयों में हिंदी के प्रयोग को तेज़ी से बढ़ाया जा सके.
संविधान में हिंदी को यह स्थान इसलिए नहीं दिया गया था कि यह देश की सबसे प्राचीन या समृद्ध भाषा है, बल्कि इसलिए दिया गया था क्योंकि यह भाषा भारत के अधिकांश भागों में अधिकतर लोगों द्वारा बोली और समझी जाती है.
उपरोक्त निष्कर्षों को देखते हुए हम कह सकते हैं कि हिंदी राष्ट्र से अन्तर्राष्ट्र को, व्यक्ति को समष्टि से जोड़ने वाली सशक्त भाषा है.
संदर्भ- अक्षरशिल्पी 2012.,
हरसिंगार-2012,
स्वतंत्र भारत में रा.भा.का सवाल. नवनीत-२०१३,
राष्ट्रवीणा,
हिन्दी साहित्य का इतिहास इंटरनेट के माध्यम से प्राप्त जानकारियां.