आत्यानुधिक डाकघर भवन में जहां मरकरी लाइट की चकाचौंध आंखों को चुंधिया रही हो, जहाँ कम्युटर अपना कार्य पूरी दक्षता के साथ संपन्न कर रहें हों, जहां से सेटेलाइट मनीआर्डर भेजे जा रहे हों, जहां मशीनें चिट्ठियों की सार्टिंग बडी बारिकी से कर रही हों, ऐसे सुसज्जित भवन में,आज की सदी में पैदा हुए किसी नौजवान को ले जा कर खडा कर दिया जाए तो वह कौतुहल से उन्हें नहीं देखेगा,क्योकि वह आज वे सारी चिजों को अपने लैप्टाप में अथवा कम्प्युटर पर स्वय़ं देख-सुन रहा है,मोबाइल सेट उसकी अपनी जेब में है, वह बटन दबाते ही अपने किसी मित्र से रोज बात करता रहता है,उसे तनिक भी आश्चर्य नहीं होगा.और न ही वह यह जानना चाहेगा कि यह किस प्रकार काम करते है और इसके पीछे उसका अपना क्या इतिहास रहा होगा.
‘ यदि कोई उससे कहे कि क्या वह यह जानता है कि आज से सैकडॊं वर्ष पूर्व ये सारी व्यवस्था नहीं थी,तब आदमी अपना काम कैसे चलाता होगा? कैसे अपना संदेशा अपने सुदूर बैठे मित्र अथवा परिवार के सदस्यों को भेजते रहा होगा? तो निश्चित तौर पर वह यह जानना चाहेगा,कि अभावों के बीच भी उसके पूर्वज कैसे काम चलाते रहे होंगे. सबसे बडी कमी आज हमारे बीच में यही है कि हम न तो उसे अपने गौरवशाली इतिहास की जानकारी नहीं देते.जबकि हमारा यह उत्तरदायित्व बनता है कि हम अपनी विरासत, अपनी भावी पीढी को देते चले. जब तक हमे उसके बारे में कुछ भी पता नहीं होगा,हम आखिर गौरव किस बात पर करेगें? डाकघर का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है. वह न सिर्फ़ हमें चमत्कृत करता है, बल्कि एक ऐसे भावालोक में भी ले जाता है, कि कठिन परिस्थितियों में हमारे पूर्वजों ने उसे इस स्थिति तक लाने में कितनी मेहनत की थी. इतिहास को टटोलें तो हमें ज्ञात होता है कि राजघरानॊं में कभी कबूतर पाले जाते थे और उन्हें बाकायदा प्रशिक्षण भी दिया जाता था और सामने वाले की पहचान भी बतलानी होती थी कि पत्र प्राप्तकर्ता कैसा है ? इसके लिए उसे उसका छाया-चित्र दिखलाया जाता था और उसके पैरों में संदेशा/पत्र आदि बांध दिया जाता था और वह वहां जाकर उसी व्यक्ति को पत्र देता था,जिसकी पहचान उससे करवा दी गई थी. राजकुमार अकसर अपने प्रेम-संदेशे अपनी प्रेयसी को इसी के माध्यम से भिजवाते थे.
यह एक श्रमसाध्य कार्य था और इसमे कई बात धोका भी हो जाता था. उस समय भारतवर्ष में कै छोटे-बडे राज्य होते थे. राजा को कहीं पत्र भेजना होता था तो वह पत्र लिख कर उस पर राजमोहर चस्पा कर उसे घुडसवार के माध्यम से पहुंचता था. कई राजा- महाराजाऒं ने एक निश्चित दूरी तय कर रखी थी. घुडसवार उस दूरी तक जाता और वहां तैनात दूसरे घुडसवार को वह पत्र सौंप देता था. इस तरह डाक लंबी दूरी तक पहुंचायी जाती थी. यह व्यवस्था केवल उच्च वर्ग तक ही सीमित थी. आमजन इस व्यवस्था को जुटा नहीं पाता था.
डाक व्यावस्था को सुचारु रुप से चलाने के लिए प्रयास चलते रहे. फ़िर डाक व्यवस्था हुई जो आमजन के लिए सुलभ थी. विश्व को अचंभित कर देने वाली मोर्स प्रणाली का आविष्कार हो चुका था. टेलीग्राफ़ लाइनें बिछाई जाने लगी थी. इस तरह संचार व्यवस्था में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया और आवश्यकतानुसार चीजें जुडती चली गयीं.
* सन 1825 में पहला टिकिट सिंध से कराची से जारी किया गया. * सन 1830 में इंगलैण्ड और भारत के मध्य डाक संबंध स्थापित हुए. * सन 1851में कलकत्त्ता एवं डायम्ण्ड हार्वर के बीच पहला सरकारी तार लाइन की व्यवस्था हुई. * सन 1854 में पूरे भारत के लिए डाक टिकिट जारी की गई. * सन 1865 की 27 तारीख को भारत और इंग्लैण्ड के बीच तार व्यवस्था स्थापित हुई. * सन 1877 में व्ही.पी.प्रणाली जारी * सन 1880 में मनीआर्डर व्यवस्था. जारी * सन 1885 में रकम जमा करने” बचत बविंक” का शुभारंभ.
* 1907 में १५ नवम्बर को पहला इंटर्नेशनल रिप्लाई कूपन जारी किया गया.
* सन 1911 में इलाहाबाद से नैनी जंक्शन तक पत्र लेकर पहले विमान ने उडान भरी. यह वह समय था जब लोगों ने आकाश में उडता हुआ देखा था . पास से देखने एवं उडान भरते हुए नजदीक से देख पाने का सौभाग्य केवल उसी दिन मिला था. अतः नजदीक से देखने वालों की भीड का अंदाज आप स्वयं लगा सकते हैं बेहिसाब भीड के बावजूद वहां गजब की शांति थी क्योंकि लोग आश्चर्य में डूबे हुए थे. एक डच विमान जिसका नाम बंबर-सोभंर था और जिसके चालक का नाम हेनरी पिके,जो फ़ांसीसी था, अपना विमान फ़ांस से लेकर आया था. इसके बाद अलग-अलग देशो में हवाई डाक सेवा प्रारंभ की. प्रथम उडान इटली के ब्रिंडस्ट नामक स्थान से अलबानिया के बेलोना नामक स्थान के मध्य हुई परन्तु नागरिक हवाई डाकसेवा को आरम्भ करने का गौरव आस्ट्रिया को प्राप्त हुआ. इस सेवा के अंतर्गत यह सुविधा सर्व प्रथम आस्ट्रिया के वियेना नगर तथा रूस के कोव नगर के मध्य प्रचलन में आयी.
* वायुयान से डाक लाने और ले जाने से पूर्व गैस से भरे गुब्बारों को प्रयोग में लाया गया. इस व्यवस्था अंजाम में लाने वाले व्यक्ति का नाम जान वाईस था,जिसने 35मील की उडान भरी थी. जानवाईस के सम्मान में अमरीका ने एक विशेष डाक सेवा प्रारंभ की एवं उस गुब्बारे का सार्वजनिक प्रदर्शन भी किया.
* 1917 मे सर्वप्रथम अधिकृत हवाई डाक टिकिट का प्रचलन आरम्भ हुआ.6 नवम्बर को पहला समाचार पत्र”केप-टाउन”जो केप्टाउन में छापा गया था. इसे पोर्ट- एलिजाबेथ: नामक हवाई जहाज से भेजा गया था.
* 1918 में यू.एस.ऎ ने हवाई टिकिट का प्रचलन आरम्भ हुआ. तथा टिकिटॊं पर हवाई जहाज के चित्र भी प्रकाशित किए गए.
* 1928 में “न्यूयार्क हेराल्ड ने अपने नियमित हवाई डाक संस्करण का प्राकाशन प्रारंभ किया था.
*1929 को भारत ने कामनवेल्थ हवाई डाक टिकिट जरी किए गए.
* 1930 को एक्सप्रेस डिलिवरी सर्विस जारी की गयी. * 1932 में अमेरीका ने हवाई डाक लिफ़ाफ़े का प्रचलन शुरु किया.गया. * 1946 में विश्व का पहला हवाई तार भेजा गया.
“ डाक “ क्रे इतिहास में एक नही वरन अनेक ऐसी रोचक जानकारियां हैं कि उन्हें अगर विस्तार दिया गया तो एक किताब ही लिखी जा सकती है. जिज्ञासु व्यक्ति को चाहिए कि वह इन दुर्लभ ऐतिहासिक जानकारी का संकलन करे एवं अन्य लोगों को भी प्रेरित करे,
युवा कवि-कहानीकार,लेखक, संपादक एवं कुशल प्रशासक डाक विभाग में कार्यरत आई.पी.एस. अधिकारी श्रीयुत कृषणकुमार यादव ने डाक विभाग के एक सौ पचास साल के गौरवशाली इतिहास को अपनी किताब” इन्डिया पोस्ट. 150 ग्लोरियस इअरस” में कडे परिश्रम से तैयार किया है, जो न सिर्फ़ रोचक है,बल्कि ज्ञानवर्धक भी है. आज भी कई ऐसे लोग हैं जो डाक-टिकिटों का तथा समय-समय पर प्रकाशित होने वाले” फ़ोल्डरों का तथा फ़र्स्ट डे कवर्स” का कलेक्शन करते हैं,उन्हें इस किताब को खरीदकर अपने संग्रह में रखते हुए उसे और भी बहुमूल्य बना सकते हैं.
3 मार्च 1847 कॊ अमेरिका मे एलेक्जंडर ग्राहम बेल नाम के बालक ने जन्म लिया,.जिसके पिता का नाम एलेक्जॆंडर मेल विले बेल और माता का नाम इलिजा ग्रेस था.. एलेक्जंडर बचपन से मेधावी, और विलक्षण प्रतिभा के धनी थे. इनकी मां बहरी थी. संयोग से जब इनकी शादी माबेल विले बेल से हुई तो वह भी बहरी ही थी. अपने मन की बात जब इनसे कहना होता तो उन्हें काफ़ी दिक्कतों का सामना करना पडता था. शायद यह वही कारण था कि वे आगे चलकर टेलीफ़ोन का आविष्कार कर पाए.
एडिनबर्ग युनिवर्सिटी और युनिवर्सिटी कालेज लंदन से अपनी पढाई पूरी कर वे बोस्टन युनिवर्सिटी मे आविष्कारक, वैज्ञानिक,इंजिनियर,प्रोफ़ेसर रहे. वे बधिरों के शिक्षक थे. बचपन से ही इन्हें ध्वनि विज्ञान में गहन रुचि थी. 23 साल की उम्र मे उन्होंने पहला प्यानो बनाया था. वे स्पीच टेक्नोलाजी विषय के शिक्षक रहे थे, अतः ऐसा यंत्र बनाने में सफ़ल हुए जो न केवल म्यूजिक्ल नोट्स भेजने में सक्षम था बल्कि आर्टिकुलेट स्पीच भी दे सकता था. यह टेलीफ़ोन का सबसे पुराना माड्ल था. \
एलेक्जंडर ग्राहम बेल न सिर्फ़ टेलीफ़ोन के आविष्कारक थे बल्कि मेटल डिटेक्टर की खोज का श्रेय भी उन्हें ही जाता है.
सेमुअल फ़िनाले ब्रीज मोर्स का जन्म अमेरिका के चार्ल्स टाउन( मेसाचुसेट्स) को २ अप्रैल १७९१ में हुआ था, जिन्होने एकल-तार टेलीग्राफ़ी प्रणाली एवं मोर्स कोड का निर्माण किया था. वे भूगोल- वेत्ता और पादरी जेविडिया मोर्स की पहली संतान थे.