उपन्यास-वनगमन- एक अंश. 2
उपन्यास-वनगमन- एक अंश. 2
रात्रि का तीसरा प्रहर अभी बीतने को था कि महाराज दशरथ की अचानक नींद अचानक खुल गई. मिचमिचाई आँखों से उन्होंने देखा, महारानी कैकेई गहरी निद्रा में निमग्न हैं. वे अपनी शैया पर लगातार करवटें बदलते रहे थे, लेकिन निंदिया महारानी, जो एक बार रुठी तो फ़िर लौटकर नहीं आयी. जब नींद नहीं आ रही है, तो शैय्या पर पड़े रहना उन्हें उचित नहीं लगा. वे तत्काल उठ बैठे और महल की अटारी की ओर बढ़ने लगे
महाराज का अंग रक्षक सतर्क था. वह जानता था कि महाराज नियमित रुप से ब्रह्म मुहूर्त में ही जागते है और नित्य क्रियाकर्म के पश्चात व्यायाम आदि करते हैं, तत्पश्चात वे स्नान करने के बाद पूजागृह में जाकर, अपने आराध्य देव सूर्यनारायण की पूजा किया करते हैं. आज उनका इस तरह जाग जाना और अटारी की ओर प्रस्थान करना, उसकी समझ से परे था
जब उसने देखा, कि महाराज बिना कोई संकेत दिए अटारी की ओर बढ़ रहे हैं तो वह उनके पीछे हो लिया. महाराज ने संकेत से ही उसे द्वार पर ही रुक जाने को कहा. शस्त्रधारी अंग रक्षक वहीं द्वार पर रुककर उनके लौटने की प्रतीक्षा करने लगा.
त्रियामा के इस अशुभ समय में अचानक जाग जाना, उनके मन में संदेह की बीज बो गया. शीतल बयार के झोंकें, जो अपने साथ फ़ूलों की सुवासित गंध लेकर मंद गति से प्रवहमान होकर, उनके शरीर को छूते हुए आगे बढ़ रही थी, लेकिन उद्विग्न मन को जरा-भी सुहावनी नहीं लग रही थी.
उचाट मन लिए वे देर तक यहाँ से वहाँ टहलते रहे. फ़िर एक ओर खड़े होकर अपनी नगरी अयोध्या को निहारने लगे. पूरा नगर ही इस समय आँखों में गहरी निद्रा आँजें सो रहा था. बीच-बीच में किसी पंछी के पर फ़ड़फ़ड़ाने की आवाज आती, तो कभी कुनमुनाते चिड़ियों के बच्चों के स्वर सुनाई देते. इन सबसे बेखर महाराज अविचल मुद्रा में देर तक खड़े रहे, फ़िर आकर एक आसन पर विराजमान हो गए.
विचारों की श्रृँखला टूटने का नाम ही नहीं ले रही थी. उन्होंने आकाश की ओर निहारा. निरभ्र आकाश में असंख्य तारे टिमटिमा रहे थे. वे देर तक तारों को देखते रहे. तभी अचानक एक तारा टूटा और अपनी आभा बिखेरते हुए आँखों के सामने से ओझल हो गया. तारे का टूटना अशुभ माना जाता है. आकाश की ओर निहारते हुए उन्होंने अपने दोनों हाथ जोड़कर कहा- "हे विधाता..!.भविष्य में क्या कुछ अशुभ घटने जा रहा है, मेरी रक्षा कीजिए प्रभो..... मेरे परिवार पर कोई आँच न आए.... तू ही रखवाला है.
अपने मन को नियंत्रित करते हुए वे स्वयं से संवाद करने लगे थे- "कितनी आश्चर्य की बात है कि जिसने देवताओं के आव्हान पर अनेकों बार दानवों से घनघोर युद्ध कर उन्हें पराजित किया हो, जो स्वयं दस रथों का संचालक हो, जो धर्म के दस लक्षणों- ( धृति,, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच, इन्द्रिय निग्रह, विद्या, सत्य और अक्रोध ) से युक्त हो, जो बल, बुद्धि और शौर्य में पारंगत हो, जिसने इक्ष्वाकु कुल में जन्म लिया हो, ऐसे धीर-वीर पुरुष के मन में मलिनता कैसे आ सकती है.? संभव है, त्रियामी का ही असर हो.. वे ज्यादा देर तक अटारी पर ठहर नहीं रह पाए थे और नीचे उतर आए.
रात्रि का चतुर्थ प्रहर शुरु हो चुका था. उन्होंने देखा, महारानी कैकेई अब भी गहन निद्रा में निमग्न हैं. एक आसन पर विराजते हुए उन्होंने दर्पण हाथ में लिया और अपनी छवि को निहारने लगे. तभी उन्होंने देखा. कान के पास के बाल सफ़ेद हो चुके है. कान के पास के बालों का सफ़ेद होना इस बात का संकेत था कि वृद्धावस्था आ चुकी है. वृद्धावस्था में प्रवेश कर चुका मनुष्य अक्सर अपने अतीत के गर्भ में उतरकर सोचने लगता है.
अयोध्या का वैभव
महाराज दशरथ जी भी अपने अतीत में उतरकर सोचने लगे थे- " जिस प्रकार से देवराज इन्द्र नें अमरावतीपुरी को बसाया था, इसी प्रकार मैंने धर्म और न्याय के बल से पुण्यसलीला-सदानीरा सरयू के पावन तट पर बसी अयोध्यापुरी, जिसे मेरे पूर्वजों द्वारा बसाई गई थी, समय-समय पर उसमें व्यापक परिवर्तन कराते हुए, उसका विशेष रूप से पुनर्निर्माण करवाया है."
"सदानीरा सरयू के अलावा मैंने पुरी में कई बावड़ियों और कुओं का भी निर्माण करवाया. किसान खुश हैं और वे प्रायः सभी किस्म की फ़सले उगाते हैं. अनाज के भण्डारण के लिए कई इमारतें बनवाई हैं. नदी का जल अत्यंत ही मीठा है, मानो ईख का रस भरा हो. नगर के व्यापारी राज्य में खुश रहते हैं. उन पर राज्य का लगने वाला शुल्क भी काफ़ी कम हैं. अतः वे अपना व्यापार मन लगाकर करते हैं और समय सीमा के भीतर कर अदायगी भी करते है."
" मैंने महलों की दीवारों पर सोने का पानी चढ़वाया है. नगर में प्रवेश के लिए चौड़ी-चौड़ी सड़कें बनवाईं, सड़कों के किनारे अनेकानेक प्रजातियों के वृक्ष लगवाये, व्यायाम शालाएं बनवाईं, पुरी में बहुत सी नाटक मण्डलियां थीं, उनके लिए नाट्यगृह बनवाए, बड़े-बड़े फ़ाटक लगवाए . सभी प्रकार की सामग्रियों के लिए पृथक-पृथक बाजार बनवाए . नगर के चारों ओर गहरी-गहरी खाईयाँ खुदवायीं. तथा चारों ओर उद्यान तथा आम के बागीचे बनवाए , गुप्तगृहों और स्त्रियों के लिए क्रीड़ा-भवनों का निर्माण करवाया. नगर को सभी प्रकार के यन्त्र और अस्त्र-शस्त्र संचित कर उसे अजेय बनाया. सेना में अस्त्र-शस्त्र के प्रयोग में कुशलता प्राप्त सैनिकों को भर्ती कराया ताकि कोई शत्रु आसानी से पुरी पर आक्रमण न कर सके."
"मेरे पास काम्बोज और वाल्हीक देश में उत्पन्न उत्तम घोड़े, वानायु देश के अश्वों तथा सिंधुनद के निकट पैदा होने वाले दरियाई घोड़े और इन्द्र के अश्व उच्चै:श्रवा के समान श्रेष्ठ घोड़ों से नगर शोभायमान है. इनके अलावा हिमालय के क्षेत्र में पाए जाने वाले भद्रजाति के, विन्ध्य पर्वत पर मंद्रजाति के, सह्यपर्वत पर पैदा होने वाले मृग, पर्वताकार हाथी तत्र-तत्र विचरते रहते हैं." ( क्रमशः)
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