गोवर्धन यादव द्वारा रचित यह पुस्तक रामकथा का वह चरण प्रस्तुत करती है जब श्रीराम, लक्ष्मण और सीता वनवास के लिए प्रस्थान करते हैं। इसमें वनगमन के भावनात्मक पक्ष, त्याग, कर्तव्य और परिवार के बीच धर्म के चयन को अत्यंत मार्मिक ढंग से चित्रित किया गया है। यह काव्यात्मक शैली में रामकथा के आरंभिक अध्यायों को जीवंत करता है।
यह पुस्तक गोवर्धन यादव द्वारा रामकथा के उस अध्याय को समर्पित है, जिसमें श्रीराम, लक्ष्मण और सीता वनगमन के बाद दण्डकारण्य के गहन वनों में प्रवेश करते हैं। यहाँ ऋषि-मुनियों की तपोभूमि, राक्षसों के अत्याचार और धर्म की रक्षा हेतु श्रीराम की भूमिका को गहराई से दर्शाया गया है। कथा में साहस, संघर्ष और आदर्शों की सजीव झलक मिलती है।
गोवर्धन यादव की यह कृति रामकथा के उस निर्णायक चरण को चित्रित करती है जब सीता हरण के पश्चात श्रीराम रावण से युद्ध के लिए लंका की ओर अग्रसर होते हैं। इस पुस्तक में भक्ति, वीरता और रणनीति का अद्भुत संगम है, जहाँ श्रीराम का धैर्य, हनुमान का पराक्रम और वानरसेना की निष्ठा भावनात्मक रूप से उकेरी गई है।
गोवर्धन यादव द्वारा रचित यह पुस्तक रामकथा की अंतिम व निर्णायक कड़ी है, जिसमें लंका युद्ध की रोमांचक घटनाओं से लेकर श्रीराम के अयोध्या लौटने और राज्याभिषेक तक की कथा को संवेदनशीलता और गरिमा के साथ प्रस्तुत किया गया है। इसमें धर्म की विजय, मर्यादा पुरुषोत्तम की महिमा और रामराज्य की कल्पना को प्रभावशाली ढंग से उकेरा गया है।
गोवर्धन यादव की यह रचना गाँव, प्रकृति और मानवीय संवेदनाओं की गहराई को स्पर्श करती है। महुआ का वृक्ष यहाँ केवल एक पेड़ नहीं, बल्कि ग्रामीण जीवन, स्मृतियों और सांस्कृतिक जड़ों का प्रतीक बनकर उभरता है। यह पुस्तक पाठकों को मिट्टी की महक, रिश्तों की मिठास और जीवन की सादगी से जोड़ती है।
गोवर्धन यादव की यह संवेदनशील रचना जीवन की सरलता, बचपन की स्मृतियों और मानवीय रिश्तों की गहराई को भावनात्मक रूप से प्रस्तुत करती है। यह नदी प्रतीक है उन क्षणों का, जहाँ छोटी-छोटी बातें भी खुशियों की लहर बनकर दिल को छू जाती हैं। पुस्तक में आत्मीयता, nostalgia और ग्राम्य जीवन की मधुर प्रवाहिनी झलकती है।
गोवर्धन यादव का यह कहानी-संग्रह तीन दशकों के सामाजिक, सांस्कृतिक और मानवीय अनुभवों का सजीव दस्तावेज़ है। इन कहानियों में गाँव की मिट्टी की खुशबू, जीवन के उतार-चढ़ाव, और समय के साथ बदलते रिश्तों की गूंज सुनाई देती है। यह संग्रह संवेदना, यथार्थ और गहराई से भरी कहानियों के माध्यम से पाठकों को आत्ममंथन की यात्रा पर ले जाता है।
गोवर्धन यादव का यह कहानी-संग्रह मानवीय मन की गहराइयों, आंतरिक संघर्षों और सामाजिक यथार्थ को बेहद प्रभावशाली ढंग से उजागर करता है। “भीतर का आदमी” केवल एक पात्र नहीं, बल्कि हर व्यक्ति के भीतर छिपे भाव, द्वंद्व और असल पहचान की खोज का प्रतीक है। संग्रह की कहानियाँ संवेदना और सोच को झकझोरने वाली हैं, जो पाठकों को आत्मनिरीक्षण की ओर ले जाती हैं।
गोवर्धन यादव की यह रचना उन अनकही और अनसुनी आवाज़ों की दस्तक है, जो समाज के हाशिए पर जीने वालों की पीड़ा, संघर्ष और अस्तित्व को अभिव्यक्त करती हैं। ये कहानियाँ शब्दों से अधिक मौन की भाषा बोलती हैं — वे आवाज़ें जो दिखती नहीं, पर भीतर गूंजती हैं। संग्रह मानवीय संवेदना और सामाजिक यथार्थ का सशक्त चित्रण है।