संभवतः स्त्रियाँ आज भी दोयक दर्जे की नागरिक है. उसे वह स्थान अभी तक नहीं मिला, जिसकी कि वह सच्ची अधिकारिणी है. उसके जीवन के हर पडाव पर बंधन है, रोढे हैं, प्रतिबंध है. एक अन्तहीन मकड़जाल अब भी उससे लिपटा हुआ है. बावजूद इसके वह निरन्तर आगे बढ़ रही हैं. यह प्रसन्नता का विषय है. समाज के कुछ प्रबुद्ध व्यक्तियों की सोच जो उन्हें संबल प्रदान करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं यहाँ प्रस्तुत हैं.
श्रीमती शकुन्तला यादव.
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संकलन
१)औरत सम्पूर्ण है क्योंकि उसमें जीवन देने की, पालन-पोषण करने की और बदलाव लाने की शक्ति है (डायेन मरीचाइल्ड )
२)एक औरत के कई रूप है और उसका हर रूप अपने आप में खास और अनमोल है.
३)हमारी संस्कृति के कायम रखने में औरत का बड़ा योगदान है.
४)सब को प्यार देना-यह खूबी, यह शक्ति, औरत में तब और उभर आती है, अब वह माँ बनती है. माँ बनना, यह औरत को भगवान का वरदान है.(मदर टेरेसा)
५) वह कौन है जो मुझे प्यार करता है और हमेशा करता रहेगा? वह कौन है जो मेरी हर गलती के बावजूद मुझे नहीं ठुकराएगा ? वह तुम हो, मेरी माँ.(टामस कारलायल)
६)माँ के प्यार में उसका अपना मतलब नहीं झलकता. किसी ने ठीक ही कहा है कि एक माँ के प्यार से ज्यादा पवित्र प्यार किसी का नहीं हो सकता,
७) भगवान हर जगह नहीं हो सकता, इसीलिए उसने माँ को बनाया( एक यहूदी कहावत)
८) एक अच्छी माँ सौ अध्यापकों के बराबर है,(जार्ज हर्बर्ट)
९)पढी-लिखी समझदार माँ न केवल पढ़ाई-लिखाई में अपने बच्चे की मदद करती है बल्कि उसके सुरक्षित भविष्य की नींव भी रखती है.
१०) एक बच्चे के भाग्य का निर्माण उसकी माँ ही करती है.( नेपोलियन बनापार्ट)
११) मेरी माँ सबसे सुन्दर औरत थी.....आज मैं जो कुछ हूँ उसी की बदौलत हूँ. मैं तो यही कहूँगा के मुझे सदाचार, समझदारी और सफ़लता देने वाली शिक्षा मेरी माँ से ही मिली.( जार्ज वाशिंग्टन)
१२) जीवन को सही तरीके से जीने के लिए जो सभ्याचार होना चाहिए, वह हमें औरत ही सिखाती है, जैसे- एक दूसरे का आदर करना, वे छॊटी-छॊटी बातें जिसमें हम दूसरों का दिल जीत सकें, हालात के मुताबिक अपने रवैये को ढालना और समाज के साथ कदम मिलाकर चलने के तौर-तरीके आदि(रेमी द गूरमाँ)
१३) एक सच्चे साथी के रूप में औरत ही अपने पति का साथ निभाती है. वह दुःख-सुख में वफ़ादारी से उसका साथ देती है.
१४)अगर समाज को तेजी से बदलना है तो औरतों को एकजुट होकर आगे बढ़ना होगा ( चार्ल्ज मलिक पूर्व अध्यक्ष संयुक्त राष्ट्र संघ-जनरल असेम्बली)
१५) आज के नए जमाने में औरत के गुणॊं का मूल्यांकन ऊँचा साबित हुआ है. मिल-जुलकर काम करना और् दूसरों को साथ लेकर आगे बढ़ना सफ़लता की निशानी है और औरत में ये गुण भरपूर हैं( रोजाबेथ मास कैन्टर,हार्वर्ड बिजिनेस स्कूल प्रोफ़ेसर)
१६) परिवार में समाज में और संसार में औरत का योगदान अनमोल है. उसके बिना हमारे जीवन में पूर्णता नहीं आ सकती और न ही जीवन खुशहाल बन सकता है.
१७) आप किसी भी देश की हालात का अंदाजा लगाना चाहते हैं तो वहाँ की औरतों की हालात देखकर लगा सकते है( पं.जवाहरलाल नेहरु)
१८) आदमियों की प्रधानता का संबंध कई बातों से है, उनकी ’कमाऊ’ होने की स्थिति भी इसमें शामिल है. उनके पैसे कमाने की ताकत उनके परिवार में उनकी इज्जत का कारण होती है. जबकि औरतें कहीं अधिक समय तक रोजाना घर पर काम करती हैं परन्तु काम के बदले पैसे नहीं मिलते इसलिए परिवार की खुशहाली में उसके हाथ बटाने को कोई अहमियत नहीं दी जाती.( डा. अमर्त्य सेन)
१९) प्रभुजी, मैं तोरी बिनती करऊँ, पैंया पडूं बार-बार अगले जन्म मोही बिटिया न दीजे, नरक दीजे चाहे डार (उतरभारत का एक लोकगीत)
२०)आज लगभग हर घण्टॆ में कहीं न कहीं एक दहेज-हत्या का मामला कचहरी में दर्ज किया जाता है (*) हर 7 मिनट में पति और उसके परिवारवालों के निर्दयी बर्ताव के मामले की रिपोर्ट होती है
२१) पजांब, हरियाणा और राजस्थान में जन्मी बच्चियों के मारने का रिवाज इतिहास की जड़ों में है. परिवार के मुखिया के कहने पर दाई बच्ची के एक हाथ में गुड़ और दूसरे में रूई की पूनी रखकर कहती थी, ’ पूनी कत्तीं ते गुड खाईं, वीरे नूं भेजीं, आप न आईं.’. फ़िर बच्ची को मिट्टी की हाँडी में डालकर, हाँडी का मुँह बंद कर दिया जाता था और दाई उसे दूर सुनसान जगह पर रख आती थी. चूँकि समाज में इसकी मंजूरी थी, अतः न तो इसे पाप माना जाता था और न ही अपराध (दैनिक भास्कर -२००९)
२२) जब लड़के का जन्म होता है औरतें थाली बजाकर या हवा में आग उछालकर उसके जन्म की घोषणा करती हैं. लेकिन अगर लड़की पैदा हो जाए तो परिवार की कोई बुजुर्ग भीतर जाकर परिवार के आदमियों से पूछती थी ’ बारात रखनी है या लौटानी है? अगर आदमी जवाब दें ’लौटानी है’ तो सब लोग चले जाते हैं और जच्चा-माँ को नन्हीं बेटी के मुँह में तम्बाखू रखने के लिए कहा जाता है. जच्चा-माँ के इस बात का विरोध करने का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि विरोध का मतलब है, जच्चा-माँ की जान को खतरा या उसे घर से निकाला जाना.
२३) एक सोची समझी नीति के अनुसार हमारे समाज में बेटियों की सत्ता को मिटाया जा रहा है. स्थिति इतनी गम्भीर हो चुकी है कि कुछ लोग इसे गुप्त रूप से हो रहा जनसंहार और कत्लेआम कहने लगे हैं
२३) जब तक हम बेटी के जन्म का भी वैसे ही स्वागत नहीं करते जितना बेटॆ के जन्म का, तब तक हमें समझना चाहिए कि भारत विकलांग रहेगा.( महात्मा गांधी)
२४) बेटे की इच्छा और पैसे के लालच में हम औरतों के खिलाफ़ न जाने कितने ही नीच और बेरहम कर्म कर बैठते हैं लेकिन क्या बेटे और धन सच में हमारे हैं ?
२५) अन्त में यह कहा जा सकता है कि हम इस सच को अनदेखा नहीं कर सकते- एक बच्चे या भ्रूण को मारना पाप है. सोच के जरिये, शब्दों के जरिये या कर्मों के जरिये-किसी औरत का जी दुखाना पाप है. जब हम किसी का दिल दुखाते हैं. उसे गाली देते हैं या उस पर जुल्म करते हैं तो यह अच्छी तरह जान लें कि हमें अपनी करनी का नतीजा जरूर भुगतना पडेगा. जब हम किसी को दुख देते हैं तो हमारी अपनी रूहानी तरक्की में रुकावट आ जाती है. इसीलिए आओ ! जागें और अपनी मानवता को पहचानें. हमें ऎसा जीवन जीना चाहिए जिसमें हम सब जीवों को बराबर का दर्जा दें. हम सब उस रूहानी नूर की किरणॆं हैं, जैसे कि कबीर साहिब ने कहा है-“ एक नूर ते सभु जगु उपजिआ, कउन भले को मंदे.”
२६) ये कहानियां उन साहसी लोगों की हैं जिन्होंने बदलाव लाने की कोशिश की. हम सब में यह शक्ति है कि हम बदलाव ला सकें. हम सब में यह काबिलियत है कि हम अपनी बेटियों के भविष्य को सुनहरा बनाएँ और उसके साथ अपनी जिन्दगी में भी बदलाव लाएँ.
२७) जो नौजवान दहेज की शर्तों पर शादी करता है, वह अपनी शिक्षा, अपने देश और नारी जाति सबका निरादर करता है. (महात्मा गांधी)
२८) कई अध्ययनों से हमें पता चलता है समाज में जब औरतें आत्मनिर्भर हों और समाज के कामों और फ़ैसले लेने में पूरी तरह से हिस्सा ले रही हों तो इससे समाज को बहुत फ़ायदा पहुँचता है.(डिप्टी सैक्रेटरी जनरल संयुक्त राष्ट्रसंघ)
२९) यदि कोई औरत निर्णय लेने में आजाद नहीं है तो जो वह मजबूरी में करती है उसे विकल्प नहीं कहा जा सकता.
३०) मैं अपने माँ-बाप की लाड़ली बेटी थी. मैं आज जो भी हूँ यह मेरे माँ-बाप की अच्छी परवरिश का नतीजा है. लड़की का भविष्य पूरी तरह से उसके माँ-बाप के आदर्शों पर निर्भर है कि वे उसका पालन-पोषण कैसे करते हैं. उसे पढ़ाइये, उसे आदर दीजिए और पैसे के मामले में उसे ऎसी शक्ति दीजिए कि उसे कभी किसी का मोहताज न होना पडे...अगर आज आप को लगता है कि आपकी बेटियाँ कमजोर हैं तो यह समझें कमजोर वे नहीं बल्कि आपकी परवरिश में कोई कमी रह गई है. अगर मेरे माँ-बाप भी इसी तरह से सोचते तो मैं जो आज हूँ वह कभी नहीं बन सकती थी. उनकी सोच मजबूत थी, इसलिए आज मैं एक शक्तिशाली औरत हूँ. आप भी ऎसा कर सकते हैं. अपनी बेटी को बड़े प्यार से, बड़े ध्यान से पालो. उसे अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाओ. आत्मनिर्भरता ही शक्ति है और आत्मनिर्भर होने के लिए शिक्षा की जरूरत है. अगर आप अपनी बेटियों के लिए ऎसा करेंगे तो वह आपकी इज्जत करेगी और जिन्दगी भर आपका ख्याल रखेंगी.( किरन बेदी, भारत की सबसे पहली पुलिस अफ़सर.)