विश्व गौरैया दिवस हर साल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का उद्देश्य गौरैया के बारे में जागरूकता बढ़ाना और उनके संरक्षण के लिए कार्रवाई को बढ़ावा देने के अलावा इस दिन को मनाने का एक और उद्देश्य था, जैव विविधता और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में गौरैया के महत्व को रेखांकित करना भी है. इस दिन को मनाने की शुरुआत साल 2010 में हुई थी. तथा इसकी पहल नेचर फ़ॉरएवर सोसाइटी (भारत) और इको-सिस एक्शन फ़ाउंडेशन (फ़्रांस) ने की थी. लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहें कि गौरैया आज विलुप्त होने के कगार पर है, या यह कहें विलुप्त ही हो चुकी है.
कैसी थी हमारी पड़ौसन गौरैया, हमारे आँगन की शोभा गौरैया...देखते-देखते विलुप्त हो गयी. बहुत से बच्चे ऐसे भी होंगे, जिन्होंने शायद ही गौरैया को नजदीक से देखा होगा. उसकी चूं-चूं की आवाज सुनी होगी. आइए उसके बारे में संक्षिप्त जानकारी लेते चलें.
आप ऊपर जो चित्र देख रहे हैं,वह गौरैया का है. एक नन्हीं सी, भूरे रंग की, छोटे-छोटे पंखों वाली, पीली सी चोंच लिए, 14से 16 से.मी लंबी इस चिड़िया को आप अपने घर के आसपास मंडराते देख सकते हैं. इसे हर तरह की जलवायु पसंद है. गाँवों- कस्बों-शहरों और खेतों के आसपास यह बहुतायत से पायी जाती है. नर गौरैया के सिए का ऊपरी भाग, नीचे का भाग तथा गालों का रंग भूरा होता है. गला.चोंच और आँखों पर काला रंग होता है. जबकि मादा चिड़िया के सिर और गले पर भूरा रंग नहीं होता. लोग इन्हें चिड़ा-चिड़िया भी कहते हैं.
यह निहायत ही घरेलू किस्म का पक्षी है, जो यूरोप और एशिया में सामान्य रुप से पाया जाता है. मनुष्य जहाँ-जहाँ भी गया, इस पक्षी ने उसका अनुसरण किया. उन्हीं के घरों के छप्परों में घोंसला बनाया और रहने लगा. इस तरह यह अफ़्रीका,यूरोप, आस्ट्रेलिया और एशिया में सामान्यतया पाया जाने लगा.
इस पक्षी की मुख्य छः प्रजातियां पायी जाती है. हाउस स्पेरो माने घरेलू चिड़िया, स्पेनिश स्पेरो, सिंड स्पेरो, रसेट स्पेरो, डॆड सी स्पेरो और ट्री स्पेरो.
इनके अलावा सोमाली, पिंक बैक्ड, लागो, शेली, स्कोट्रा, कुरी, कैप, नार्दन ग्रे हैडॆड, स्वैनसन, स्वाहिल, डॆहर्ट, सुडान गोल्ड, अरैबियन गोल्ड,चेस्टनट आदि चिडिया विभिन्न देशों में पायी जाती है. इनके रंग-रुप-आकार- प्रकार देश-प्रदेश की जलवायु के अनुसार परिवर्तित हुए हैं.
बच्चों,
यहाँ एक बात बतलाना मैं आवश्यक समझता हूँ कि सबसे पहले ईश्वर ने पूरी सृष्टि के निर्माण के साथ ही इस धरती को भी बनाया. इसके बाद पेड-पौधे लगाए, फ़िर असंख्य जीवजंतु-पक्षी-पखेरु उत्पन्न किए. बादल-बिजली-पानी वे पहले ही बना चुके थे. वे जानते थे कि कितना भू-भाग छोड़ा जाए कितना नहीं. उन्होंने एक भाग धरती, और शेष तीन भाग पानी से भर दिए ताकि किसी जीव-जंतु को कमी न महसूस हो सके. धरती का खूब साज-सिंगार करने के बाद उन्होंने मानव की उत्पत्ति की.
ईश्वर जानते थे मनुष्य की फ़ितरत को और उसकी नेक-नियति को भी. दिमाक का उपयोग करने वाला वह पहला प्राणी था. वे यह भी जानते थे कि एक दिन वह धरती में छॆद कर पाताल तक जा पहुँचेगा. समुद्र को चीर कर नागलोक तक और आसमान में सुराग कर स्वर्ग-लोक तक जा धमकेगा और उसे धता बताने लगेगा..जहाँ एक ओर वह साइंस और टेक्नोलाजी में परचम लहराकर अपनी बुद्धि कौशल्य से नयी-नयी इबारतें भी लिखेगा और एक दिन विनाश का कारण भी बनेगा.
मनुष्य के द्वारा निर्मित हर चीज कितना गहरा असर जन-जीवन पर डाल रही है, इसका अन्दाजा तो आप स्वयं लगा सकते हैं. बढती आधुनिकता और गगनचुंबी इमारतों,चिमनियों से निकलता जहरीला धुँआ,खेत-खलियानों में जहरीली रासायनिक खादों और कटते पेड़ों ने इन पखेरुओं का जीना हराम कर दिया है. अब तो शहरों और महानगरों में जगह-जगह खड़े होते जा रहे मोबाईल टावरों से निकलने वालॊ तरंगों ने, न सिर्फ़ इन पर गहरा असार डाला है बल्कि इनके प्रजनन पर भी विपरीत असर डाला है. इसका दुषपरिणाम आज देखने को मिल रहा है कि हमारे घर-आंगन में चहकने वाली गौरैया अब ढूँढे नही मिल रही है. गौरैया को घास के बीज काफ़ी पसंद होते हैं जो शहरों की अपेक्षा ग्रामीन क्षेत्रों में आसानी से मिल जाया करते थे, लेकिन कांक्रीट के फ़ैलते जंगल से इनका भोजन भी छीन लिया है. प्रदुषण और विकिरण की वजह से तापमान के बढ़ते ग्राफ़ को आप देख ही रहे हैं शायद यही कारण है कि आज ईश्वर के द्वारा बनाई गई इस सुन्दर कृति का तेजी के साथ सफ़ाया हो रहा है.
खतरे में है यह खजाना
दुःख इस बात का है कि प्रकृति प्रदत्त यह खजाना अब खतरे में पड़ गया है. देखते ही देखते अनेक प्रजातियां विलुप्त होती जा रही हैं. वह समय भी नजदीक आन पड़ा है जब हमारी संताने पढ़ा करेंगी कि जीव-जंतुओं में फ़लां-फ़लां जीव भी हुआ करते थे, पर अब वे नहीं है.
अतः इन रंग-बिरंगी चिडियों की रक्षा के लिए जो प्रयास किए जाएं उसमें जन-सामान्य, राजनैतिक, प्रशासन, युवा, गामीण, शहरी विशेषकर बच्चों को सहयोग देना होगा ताकि प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने के लिए लिए प्रयास सार्थक सिद्ध हो सकें. इन प्राणियों की सुरक्षा में ही मानव की सुरक्षा निहित है