इतिहास का यह वह स्वर्णिम काल था जब बापू 1920-21 में नागपुर में कांग्रेस का महाअधिवेशन आयोजित किया गया था, भाग लेने के लिए पधारे जी. इसी महाअधिवेशन में “असहयोग आन्दोलन का नारा” बुलन्द हुआ था. एक नयी अलख जलायी जा रही थी. अधिवेशन की समाप्ति के बाद, महात्मा गांधी उन दिनों के प्रसिद्ध अली बन्धुओं मुहम्मद अली एवं शौकत अली तथा सरोजनी नायडू के साथ छिन्दवाड़ा पधारे थे. 06 जनवरी 1921 का वह स्वर्णिम दिन था. नागपुर अधिवेशन की बयार यहाँ भी बह रही थी. पूरा नगर जोश और जुनून से भरा हुआ था. अपने प्रिय नेताओं को ठहराने का कोई उपयुक्त स्थान उस समय उपलब्ध नहीं था. पर बापू तो सादगी भरे अपूर्व मानव थे.. उन्होंने सेठ नरसिंह दास की धर्मशाला में ठहरने की स्वीकृति दे दी थी.
उनके आगमन से उत्साहित महिलाओं ने जिस जोश भरे अन्दाज में आजादी के नारे बुलन्द किए, उससे बापू बहुत प्रभावित हुए और दोपहर के समय उन्होंने सबसे पहले महिलाऒं को संबोधित किया. संध्या समय चिटनवीसगंज ( आज का गांधीगंज ) में एक विशाल सभा आयोजित की गयी. महात्मा जी ने नागपुर अधिवेशन में पारित “असहयोग आन्दोलन प्रस्ताव” की विस्तृत चर्चा की. उन्होंने अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के विरोध में, विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की अपील की. जोश और उमंग से भरे लोगों ने विदेशी वस्त्रों की होली जलाई. बापू के उस मर्मांत्क भाषण ने लोगों के दिलों को गहराई से प्रभावित किया. नगर के प्रभावशाली वकीलों- सर्व श्री साल्पेकर, बी.आर. ढोक, मोरेकर, व्ही.एस.शर्मा, श्री मनोहर घाटे तथा बृजलाल वर्मा ने अपनी वकालत छॊड़कर असहयोग आन्दोलन में कूद पड़्ने की घोषणा मंच से ही कर दी थी. साथ ही अन्य लोगों ने भी अपनी शासकीय नौकरियों को त्याग कर देश प्रेम का अद्भुत उदाहरण पेश किया था. इस तरह पूरे अंचल-सौंसर, पांढुर्णा, अमरवाड़ा आदि सभी क्षेत्रों में असहयोग आन्दोलन की तीव्र आँधी बहने लगी थी.
गाँधीजी के इस अंचल से प्रस्थान करने के बाद नगर कांग्रेस कमेटी का गठन किया गया ताकि आन्दोलन का प्रभावी ढंग से संचालन किया जा सके. किन्तु इन कांग्रेसी नेताओं सर्वश्री कृष्णा स्वामी नायडू, देवमन वानखेड़े, नेमीचंदजी, जयदेव इगंदे, गुलाबराव बोरीकर, बालाजी एवं विठ्ठलपुरी (सौंसर) ,देवराव (सौंसर) आदि को सश्रम कारावास के दण्डस्वरूप जेलों में बंद कर दिया गया.
अपने प्रथम प्रवास में ही इस अंचल ने बड़ा प्रभावित किया था. सुदूर होने के साथ आवागमन के सीमित साधन होने के बाद भी बापू ने इस नगर को अपनी चरणधुलि 29 नवम्बर 1933 को पुनः उपलब्ध करायी. उस समय पूरा भारतवर्ष “महात्मा गांधी जिन्दाबाद”, “भारत माता की जय” के नारों से गूँज रहा था.. इस छोटे-से नगर ने अपने प्रिय नेता के स्वागत-सत्कार में पलक पाँवड़े बिछा दिए. पूरे नगर को तोरण और बन्दनवारों से सजा दिया गया था. महात्मा गाँधी जी की सुन्दर शोभायात्रा निकाली गयी. छितियाबाई के बाड़े में विशाल जनसभा आयोजित हुई. नगर की ओर से गांधीजी को मान-पत्र भेंट किया गया. इस सभा में गाँधीजी ने श्री विश्वनाथ साल्पेकर जी के त्याग और सेवा की भूरि-भूरि प्रशंसा की. इसके पश्चात गाँधीजी ने हरिजन मुहल्ले का भ्रमण किया, तथा उनकी कठिनाइयों को जाना-समझा.
छिन्दवाड़ा अंचल एवं स्वतंत्रता आन्दोलन.
स्वतंत्रता आन्दोलन की चिनगारी इस अंचल में “ राष्ट्र जागृति आन्दोलन” के नेता डा.बी.एस.गुंज एवं दादा साहेब खापरे के 11 मई1096 में आगमन से ही सुलगने लगी थी. इसे नगर का सौभाग्य ही कहा जा सकता है कि पूज्य बापू का आगमन 18 मई,1922 एवं पुनः नवम्बर 1933 को हुआ था. डा.सरोजिनी नायडू 18 अप्रैल 1922 तथा पण्डित जवाहरलाल नेहरु के 31 दिसंबर 1936 में पदार्पण के कारण पूरे अंचल में अंग्रेजी सत्ता के विरोध स्वरूप अनेक आन्दोलन चल रहे थे. सत्याग्रहियों पर अनेक तरह के जुल्म ढाये जा रहे थे. नागपुर के झंडा सत्याग्रह में भाग लेने गए सर्वश्री कृष्णा नायडू, जयदेव उगदे, देवमन वानखेड़े, गुलाबराव बोरीकर, आदि को पकड़कर जेल में यातनाएं दी गईं. 23 मार्च 1931 को भगतसिंग, सुखदेव तथा राजगुरु को एक दिन पूर्व जब अचानक फ़ांसी दे दी गयी तो पूरे अंचल में स्वप्रेरित भूख हड़ताल हुई. छिन्दवाड़ा, सौंसर,अमरवाड़ा तथा अन्य कस्बों में, न केवल भूख हड़ताल की गयी, वरन सारी व्यापारिक गतिविधियाँ रुक गईं. इसी प्रकार कांग्रेस के महान नेताओं के आव्हान पर यहाँ के अंचलवासियों ने रोलेक्ट एक्ट, साईमन कमीशन का विरोध, जंगल सत्याग्रह में सोत्साह भाग लेकर अपने विरोध को मुखर किया और यातनाएं सहीं. द्वितीय विश्वयुद्ध की सफ़लताओं ने मित्र देशों को गर्वोन्मत बना दिया था. अतः पूरे भारतवर्ष में अंग्रेजी शासन का दमनचक्र तीव्रता से चलने लगा. इन परिस्थितियों में सन 1942 में महात्मा गांधीजी ने “अंग्रेजों भारत छॊड़ो आन्दोलन” का उद्घोष कर दिया.
इस घोषणा का आम जनता पर गहरा प्रभाव पड़ा. देखते ही देखते नगरवासियों ने कार्यक्रम की एक रुपरेखा तैयार करते हुए गहन अन्धकार में कांग्रेसी नेताओं ने गुप्त बैठक आयोजित की. इस बैठक में मुख्य रूप से हरदा नगर से पधारे अखिल भारतीय चरखा संघ के प्रमुख श्री दादाभाई नायक ने संबोधित किया. इसे जन-आन्दोलन का रूप दिए जाने की विधिवत तैयारियां भी की गयी. विशाल आमसभा को नगर के प्रसिद्ध कांग्रेसी नेता एवं वकील श्री श्यामचरण सोनी ने संचालित किया. उन्होंने आम नागरिकों से “भारत छॊड़ो आन्दोलन” को भरपूर सहयोग देने की अपील की. “भारत माता की जय”, “महात्मा गांधी जिन्दाबाद” के नारों की गूंज से समूचा वातायण कंपित हो उठा. आन्दोलन अपना मूर्त रुप ले पाता, तभी 9 अगस्त 1942 को अंग्रेजी शासन ने सभी कांग्रेस कमेटियों को भंग कर दिया. देखते ही देखते जगह-जगह छापे मारे जाने लगे और नेताओं की धर-पकड़ शुरु हो गयी. चुंकि श्री कृष्णास्वामी नायडू अपनी दाढ़ी और कमली के कारण आसानी से पहिचान लिए गए थे. गिरफ़्तार कर जेल में डाल दिया गया. इसके पश्चात अन्य कांग्रेसी नेताओं जिनमें मुख्यरुप से श्री अर्जुनसिंह सिसोदिया, श्री हलदुलकर, श्री गोविन्दराम त्रिवेदी, श्री देवमन वानखेड़े, श्री साल्पेकर आदि नेताओं को रातों-रात गिरफ़्तार कर लिया गया. श्री चोखेलाल मान्धाता अपने टीन के चोंगे से सड़कों पर “महात्मा गांधी जिन्दाबाद” के नारे लगाते घूम रहे थे, गिरफ़्तार कर लिया गया.
इन नेताओं की गिरफ़्तारी ने नगरवासियों में काफ़ी उद्द्वेलित कर दिया था. सभी अपने-अपने ढंग से प्रदर्शन करने में जुट गए. नगर के छात्रों ने भी अपनी एक योजना बनाई और श्री दत्तात्रेय बागड़देव जी के नेतृत्व में सड़कों पर निकल पड़े. पूरा नगर इन छात्रों के समर्थन में उतर आया था. नगर के सभी व्यापरियों ने अपने-अपने प्रतिष्ठान बन्द कर दिए. सरकार हरकत में आयी और पुलिस ने निर्दयतापूर्वक लाठियां भांजी. छात्रों को बुरी तरह से पीटा गया. छात्रनेता बागड़देव को गिरफ़्तार कर अनेक यातनाएं दी गईं. पुलिस के इस दमनकारी बल प्रयोग के विरोध में श्री पी.डी.महाजन ने शाम के समय एक आमसभा का आयोजन किया, किन्तु उन्हें भी फ़िरफ़्तार कर लिया गया.
इस घटनाक्रम से समूचा शहर रोष में भर गया था.. इन युवकों द्वारा रोष प्रदर्शन करने पर इन्हें अंग्रेजी शासन का कोप भाजन बनना पड़ा. श्री सूरजप्रसाद सिंगारे ने सभी युवकों को संगठित किया और पुनः आन्दोलन को तीव्र करने की योजना बनायी. इस योजना की भनक लगते ही सिंगारे जी सहित सभी छात्रों को 10 नवम्बर 1942 को गिरफ़्तार कर जेल के सींकचों में बंद कर दिया गया.
निर्दयी शासन के इस बल प्रयोग एवं नेताओं और युवकों की गिरफ़्तारी से पूरा अंचल उद्वेलित हो उठा. फ़िर क्या था, नगरवासी अब खुलकर अपनी विद्रोही तेवर दिखाने लगे थे. पूरे शहर में जगह-जगह सत्याग्रह के शामियाने दृष्टिगोचर होने लगे. बैरिस्टर गुलाबचन्द चौधरी, राजाराम तिवारी, भगवती प्रसाद श्रीवास्तव, मंगली प्रसाद तिवारी सहित अमरवाड़ा, सौंसर, पांढुर्णा क्षेत्रों में सुदरलाल तिवारी, नीलकण्ठराव झलके, रायचन्द्र भाई शाह, मानिक राव चौरे आदि के नेतृत्व में, सत्याग्रह में सम्मलित होकर अपना विरोध प्रदर्शित करने लगे. श्री प्रेमचंद जैन, श्री चुन्नीलाल राय आदि नेता घर-घर जाकर, आजादी की अलख जगाने लगे. ठाकुर श्री चैनसिंह, सोनपुर जागीरदार, ठाकुर राजवा शाह, जागीरदार प्रतापगढ़, ठाकुर, महावीर सिंह, जागीरदार हर्राकोट को, जिन्होंने इस स्वतन्त्रता की लड़ाई में अपने प्राणॊं को न्योछावर कर दिया. क्या इनकी शहादत को यूंही भुलाया जा सकता है?
हम उन्हें भी याद करते चलें जिन्होंने हमें आजाद भारत की खुली हवा में साँस लेने के लिए तन के अपार कष्टों को झेले. श्री बादल भोई-पगारा, श्री स्वामीनन्द –अमरवाड़ा, श्री अब्दुल रहमान-छिन्दवाड़ा, श्री नाथूलक्षमण गोंसाईं,, श्री वामनराव पटेल-बानोरा,श्री रायचन्द राय शाह, पिलाजी खण्डॆ, सूरजप्रसाद मथुरिया, श्री जगमोहनलाल श्रीवास्तव, श्री महादेवराव खाटॊरकर, छोटेलाल चवरे, श्री तुकाराम थोरसेम महादेव धोटे, श्री गोविन्दराम त्रिवेदी, दुर्गाप्रसाद मिश्रा, श्री हरप्रसाद शर्मा,, श्री शिवकुमार शर्मा, श्री विश्वम्भरनाथ पाण्डॆ,, श्री रामनिवास व्यास, श्री गुरुप्रसाद श्रीवास्तव, श्री दयाल मालवीय, श्री प्रह्लाद भावसे, श्री जयराम वर्मा, श्री मारोतीराव ओकटे, श्री नेमीचन्द, श्री बलीराम मिस्त्री, श्री गुलाबराव बोरीकर, श्री देवराव (सौंसर). श्री देवमन वानखेड़े ( सौंसर), श्री माधव प्रसाद गुप्ता, श्री रेखड़े वकील एवं सत्यवती बाई आदि.