अगर यह कहा जाए कि आदमी विचारों का पुलिन्दा है, तो इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता. कभी-कभी एक साथ कई-कई विचार साथ चलते रहते है. उसे रोक सकना आदमी के वश में नहीं है. जब कोई विचार या सोच,athaaattअथवा कल्पना विस्फ़ोटक बन जाए तो क्रान्तिकारी परिणाम देखने को मिल सकते है. एक उदाहरण हमारे सामने है महात्मा गांधीजी का. हम जैसे साधारण इन्सान ही थे वे ,लेकिन उनके अन्दर जब एक विचार का विस्फ़ोट हुआ तो उसने उनकी दिशा ही बदलकर रख दी. वे एक बरिस्टर की हैसियत से साउथ अफ़्रीका,अपने मुवक्किल का केस लडने के लिए गये हुए थे. उनके पास रेल्वे का प्रथम श्रेणी का टिकिट था, एक अंग्रेज अफ़सर उस कम्पार्ट्मेन्ट में आया और उसने एक भारतीय को उस कोच में सफ़र करते देखा और आगबबुला हो उठा. उसने गांधीजी का सामान बाहर फ़ेंक दिया और उन्हे उतरवा दिया. गांधीजी ने इस बात का विरोध किया .फ़लस्व्ररुप उनके अन्दर एक विचार ने जन्म लिया और उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ़ मोर्चा खोल दिया. परिणाम आप सब जानते हैं. ईस्ट इंडिया कंपनी का सूरज, जो कभी अस्त नहीं होगा, ऎसा माना जाता था ,अस्त हुआ. एक दूसरा उदाहरण हमारे सामने है. आईजक न्युटन बागीचे में बैठा हुआ था, तभी एक सेव नीचे टपक पडा. एक विचार का विस्फ़ोट हुआ और वह यह सोचने पर मजबूर हुआ कि वह नीचे क्यों गिरा ? वह तो ऊपर आसमान में भी जा सकता था. एक जुनून की हद पार करते हुए आखिर उसने एक ऎसा सिद्धांत खोज निकाला और उन्होंने दुनिया को गुरुत्वाकर्शण और गति के नियम दिए. प्रकाश संबंधी सिद्धांत खोजे और पहली परावर्तित दूरबीन बनाई. केल्कुलस की उनकी खोज विज्ञान के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित हुई. ऎसे एक नहीं अनेको उदाहरण दिए जा सकते है,जो यह सिद्ध करते है कि आदमी ने अपने भीतर की शक्ति को जगाया और नई इबारत लिखी. यह बात अलग है कि हर किसी को एक जैसी स्थितियाँ नहीं मिलती. किसी को दुनिया ने पहले दिन लायक ही नहीं माना और किसी को हर बार हताश किया. कुछ ही ऎसे थे जिन्हें सनकी या नाकाम होने के लिए बने बताया गया.
एक गरीब किसान परिवार में जन्में फ़ोर्ड को बचपन से ही मशीने बनाने का जुनून था. अपने जीवन के सोलहवें बरस मे इन्होंने स्टीम इंजिन और घडियां सुधारने का काम किया .बाद मे कई व्यवसाय किए लेकिन उन्हें सफ़लता नहीं मिली. सहसा फ़ोर्ड के मन में एक विचार आया कि क्यों न एक ऎसी कार का निर्माण किया जाए जिसका उत्पादन और उपयोग बडे पैमाने पर हो और वह आम आदमी के पहुँच मे भी हो. उन्होंने आठ सिलेन्डर वाला एक इंजन बनाया. वे लगातार इस प्रयोग में जुटे रहे .अंततः वे इसमे सफ़ल हो सके. आज उनकी बनाई कारों पर दुनिया चलती है.
सैम जाँन्सन के पिता किताबें बेच कर घर चलाते थे. बचपन में बीमारी की वजह से इनका चेहरा विकृत हो गया और एक आंख खराब हो गई. लेकिन पढने के धुन के पक्के सैम १९-२० बरस की उम्र मे आँक्सफ़ोर्ड पढने गए, लेकिन पैसों की तंगी की वजह से बिना डिग्री लिए वापस लौट आए. सन १७३६ मे एक स्कूल खोला, लेकिन नही चल पाया. वे लंदन आ गए और पत्रकारिता करने लगे. दूसरों के नाम से किताबें लिखीं. यश-प्रतिष्ठा तो मिली लेकिन पैसा नहीं. लगातार आठ साल तक कडी मेहनत के बाद उन्होंने अंग्रेजी भाषा की डिक्शनरी तैयार की और देखते ही देखते प्रसिद्धि पर जा पहुँचे. १० वीं शताब्दी के प्रख्यात आलोचक,लेखक,पत्रकार और कवि के रुप मे वे जाने जाते है. अंग्रेजी भाषा उनके शब्दकोश के लिए सदैव ऋणी रहेगी. क्रिस्टोफ़र कोलंबस की जुनून भारत को खोजने की थी. इस विचार को सुनने के बाद से वे कई बार हंसी के पात्र बने .लेकिन धुन के धनी कोलंबस का मानना था कि यदि पृथ्वी गोल है तो वे उसे खोज निकालेंगे. उस समय उनकी उम्र महज सतरह साल की थी. उन्होंने जी तोड मेहनत की,लेकिन सफ़लता अभी कोसॊं दूर थी. उन्होंने स्पेन की महारानी से जहाज मांगे. जहाज तो मिल गए पर सनकी समझे जाने वाले कोलंबस को किसी ने साथ नहीं दिया. अंततः उन्होने ८८ कैदियों को साथ लिया और यात्रा पर निकल गए. भारत तो वे खोज नहीं पाए लेकिन अमेरिका को खोज निकाला.
कार्ल मार्कस का भी जीवन संघष में बीता. पिता ने व्यावसायिक हित साधने के लिए यहूदी धर्म छोडकर ईसाई धर्म अपना लिया. इसका व्यापक प्रभाव उन पर पडा और धर्म के नाम पर चिढ पैदा हो गई. उग्र विचार और क्रान्तिकारी गतिविधियों के चलते उन्हे जर्मनी फ़िर बेल्जियम और फ़ांस से निर्वासित किया गया. पैसों की तंगी तो थी ही. उसी समय उनके पुत्र का देहावसान हुआ तो कफ़न तक के पैसे उनके पास नहीं थे. इन तमाम परेशानियों के चलते उन्होंने दास केपिटल लिखा ,जिसने दुनिया की तस्वीर ही बदलकर रख दी. पहला साम्यवाद का पाठ उन्होंने दुनिया को पढाया.
जार्ज वाशिंगटन की शुरुआत एक सैनिक के रुप में हुई. सैन्य प्रमुख के पद तक पहुँचे जार्ज की प्रेरणा और नेतृत्व की वजह से साधनहीन सेना ने अंग्रेजी सेना पर जीत दर्ज कर लोकप्रिय हुए. जब उनका चुनाव राष्ट्रपति पद के लिए हुआ तो पडॊसी अमीर से ६०० डाँलर का कर्ज लेना पडा. हकलाहट के बावजूद चर्चिल ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने. राजनीति के अलावा साहित्य,इतिहास और सैन्य अभियानों पर लिखी किताबॊं की वजह से उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला .किंगस्टीफ़न को सिंड्रेला की तर्ज पर एक अलौकिक शक्तियों वाली एक लडकी की कहानी लिखने का विचार आया. कुछ लिखने के बाद विचार आया कि यह लोकप्रिय नहीं होगा तो उन्होंने उसे रद्दी की टोकरी के हवाले कर दिया लेकिन पत्नि के प्रोत्साहन ने उन्होंने उसे पूरा किया.: “कैरी” नाम से प्रकाशित यह उपन्यास १९७३ मे प्रकाशित हुआ और उन्हें चार सौ डाँलर मिले. उस उपन्यास के पैपरबैक संस्करण की रिकार्ड तोड बिक्री हुई और सफ़लता की उंचाइयों तक जा पहुँचे. वे पहले लेखक थे जिनकी तीन पुस्तकें एक साथ न्यूयार्क टाइम्स की बेस्टसेलर लिस्ट में थी. पांच उपन्यास लिख चुके जाँर्ज बनार्ड शाँ ने असफ़लता से निराश होकर नाटक लिखे और अंततः सफ़लता का स्वाद चखा. इसी तरह ग्राहम बेल, बाँस्टन यूनिवर्सिटी मे बधिरों की भाषा सिखाते थे. सिखाते-सिखाते उन्हें एक लडकी से प्रेम हो गया. वह कानॊं से बहरी थी. वे कोई ऎसा यन्त्र बनाना चाहते थे जिसकी मदद से उनकी प्रेमिका सुन सके. और उन्होने टेलीफ़ोन का अविष्कार कर डाला. कभी लकडहारे बने तो कभी सर्वेयर ,तो कभी छोटे से गांव के पोस्ट्मास्टर रहे अब्राहम लिंकन अमेरिका के सबसे लोकप्रिय राष्ट्रपति हुए.
बिडला समूह के संस्थापक श्री घनश्याम दास बिडला की शिक्षा महज पांचवी तक ही हुई थी. लेकिन उनके मन में एक सफ़ल उद्धॊगपति बनने का जज्बा था. उन दिनों अंग्रेज जूट का व्यापार करते थे .उन्होंने बिडलाजी को ॠण देने से मना कर दिया. मशीने भी दूगनी कीमत मे खरीदनी पडी ,लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और संघर्षॊं से लडते हुए मंजिल की ओर बढते रहे. १९८३ में अपनी मृत्यु के समय बिडला समूह की २०० कंपनियों और २,५०० करोड की संपत्ति के मालिक थे.
माननीय अब्दुल कलाम आजाद को कौन नही जानता. गरीब मछुआरे के बेटे अब्दुल कलाम ने बचपन में अखबार बेचे. आर्थिक तंगी के बीच उनकी पढाई हुई. अपनी कल्पनाशीलता के कारण ही उन्होंने भारत की प्रोद्दोगिकी के क्षेत्र में अनेक सफ़लताएं हासिल की और वे भारत के राष्ट्रपति भी bbबने. आज वे मिसाइल पुरुष के नाम से जाने जाते है. धीरुभाई अंबानी, लक्षमी मित्तल, नारायणमूर्ति सहित कई नामी गिरामी व्यक्ति हुए जिन्होने अपनी सफ़लता के झंडे गाडे. प्रमुखता से यहाँ अमिताभ बच्चन को याद करना प्रासंगिक होगा. सदी के महानायक के रुप मे विख्यात अमितजी ने भी कम पापड नहीं बेले. अभिनेता बने अमितजी ने अपनी कंपनी ए.बी.सी.एल का गठन किया और करोडॊं के कर्जदार हो गये. लेकिन उन्होंने कभी हौसला नहीं हारा और आज प्रसिद्धि की बुलंदियों पर खडे हुए है. सोहनलाल द्विवेदी जी की एक कविता का यहाँ उल्लेख करना मुझे बहुत जरुरी लगता है, जो हारे हुए मन को न केवल संबल देती है, बल्कि उसे राह में आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देती है. कविता हारे हुए मन को संयम तथा कड़े परिश्रम का पाठ भी पढाती है.. वे लिखते हैं
हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती//लहरों से डरकर नैय्या पार नहीं होती//नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है//चढती दीवारों पर सौ बार फ़िसलती है//मन का विश्वास रगो में साहस भरता है//चढकर गिरना, गिरकर चढना न अखरता है//आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती// कोशिश करने वालों की हार नहीं होती//डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है// जा-जाकर खाली हाथ लौट आता है//मिलते न सहज ही मोती पानी में//बढता दूना उत्साह इसी हैरानी में//असफ़लता एक चुनौती है,स्वीकार करो//क्या कमी रह गयी, देखो और सुधार करो// जब तक न सफ़ल हो, नींद चैन की त्यागो तुम//संघर्ष करो, मैदान छॊडकर मत भागो तुम// कुछ किये बिना ही जय-जयकार नहीं होती// हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती//
बच्चॊं...इस लेख में कुछ ऎसे लोगों की चर्चा की गई है जिन्होनें कडी मेहनत के बल पर सफ़लताऎं अर्जित ही थी .हमें भी इन्हीं राहों पर चलना होगा. याद रखें..जीवन संघर्षमय है. कभी सफ़लता तो कभी असफ़लता हमें मिलती है. सफ़ल हो जाओ तो अभिमान मत करो ,बल्कि अपने साथी को भी आगे बढने के लिए उत्प्रेरित करो. असफ़ल हो जाओ तो पीछे मुड कर देखो और खोजो कि वे क्या कारण थे कि मैं असफ़ल क्यों हुआ. गलतियों में सुधार करो और उसी गति और उत्साह से पथ-निर्माण में लग जाओ. तुम देखोगे कि सफ़लता तुम्हारा कभी से इंतजार कर रही थी. दुनियां में आज जितनी विलासिता की सामग्री पडी मिलती है, यह जान लो कि कहीं ये तुम्हारे पांव की बेडियां न बन जाये. फ़िसलन बहुत है. होशियारी से कदम बढाये जाने की जरुरत आज ज्यादा है .कोर्स की किताबे तुम्हें परीक्षा में पास जरुर करवा देगीं, लेकिन केवल चार अक्षर पढ लेने मात्र से जीवन नहीं चलता .जहाँ से भी हमें अच्छी-अच्छी बातें पढने को मिले,उन्हें भी आत्मसात करते चलो. कोई भी ऎसा काम मत करो, जिससे तुम्हारे अभिभावकॊं का सर शर्म से झुक जाए. और अंत में एक जरुरी बात. और वह यह कि खुद के लिए तो हर कोई जीता है, लेकिन औरों के लिए भी जीना सीखॊ.