रामकथा पर लिखे उपन्यासों पर निम्नलिखित महानुभावों ने भूमिका लिखी
रामकथा पर लिखे उपन्यासों पर निम्नलिखित महानुभावों ने भूमिका लिखी
सर्व जन हिताय’ का शुभारंभ ‘ वनगमन ’
भारतीय समाज और संस्कृति में रामायण महत्वपूर्ण कृति है और रामकथा मानवता एवं विश्व कल्याण की भावना को अभिव्यक्तिदेतीहै| रामकथा के विविध प्रसंगों और पात्रों पर साहित्यिक रचना की सुदीर्घ परम्परा विद्यमानहै जिसका प्रारंभ बाल्मीकि रचित महाकाव्य‘रामायण’ और जैन साहित्य परंपरा सेदेखा जा सकता है | कालांतर में भारत की कई भाषाओं,उपभाषाओं और लोकभाषाओं में रामकथा लिखी गई हैं,इन रचनाओंनेन केवलरचनाकारों कोनई साहित्यिक दृष्टि दी है,बल्कि जन मानस कोभी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन के विविध पक्षों से प्रेरणा लेने केलिए काभीप्रेरित कियाहै |मध्ययुग में तुलसीदास द्वारारचित ‘रामचरितमानस’ ने उसमें विद्यमान आदर्शों और मूल्यों के कारणलोकप्रियता के सारे रिकॉर्ड तोध्वस्त किये ही, साहित्यिक मानदंडों के आधार पर अपनी अनुपमेयता से वैश्विक स्वीकृति भीप्राप्त की |
रामकथाकी लोकप्रियता इसी बात से सिद्ध होजाती है कि आज सदियों बीत जाने पर भी श्रीराम के चरित्र का गुणगान करती अनेक कृतियाँ लिखी जा चुकी हैं और वर्त्तमान में भी लिखी जा रही हैं , फिर भी उस विषय पर पाठकों की रुचि और उत्सुकता आज भी यथावतबनी हुई है | शायद हीविश्व का कोई ऐसा चरित्र होगा जिसको विश्व की इतनी अधिक भाषाओँ में यत्किंचितपरिवर्तन के साथ लिखा गया हो याउसकाअनुवाद कियागया हो | रामकथा से जुड़ाव का मूलभूत कारण श्रीरामके चरित्र में देवत्व की बजाय उन मानवीय गुणों का होना है जो किसी समाज और देश को आदर्श बनाते हैं | रामकथा श्रीरामका मात्र जीवन चरित नहीं है ,बल्कि यह एक जीवन का एक मेनिफेस्टोया आचार संहिता है जो समस्त मानव जाति के कल्याण केलिए है| यही कारण है कि रामकथा से जुड़ा प्रत्येक प्रसंग अपना विशिष्ट महत्त्व रखता है और देश,काल और समय की परिधियों को तोड़कर सार्वकालिक और सार्वभौमिक हो गया है |
रामकथा से जुड़े विविधप्रसंगों पर साहित्य की विविध विधाओं में विभिन्न कालखंडों सेरचनाएँकी जा रहीहैं औरयह क्रम आज भी बना हुआ है | इसीपरंपरा को आगे बढाते हुए श्रीगोवर्धन यादव ने‘वनगमन’उपन्यासलिखकरपाठकों और साहित्यिक खेमे में अपनी सार्थक उपस्थिति दर्ज कराई है | यहउपन्याससाहित्य-भूमि प्रकाशन,नई दिल्ली द्वाराप्रकाशितकियाजा रहा है | गोवर्धन यादव नेइस उपन्यास मेंश्रीराम के जीवन से संबंधितएक अत्यंत महत्वपूर्णचिर-परिचित घटना को लेखनीबद्ध किया है जो श्रीराम के वन-गमन से जुडी हुई है | रामकथा से संबंधित सभी कृतियों में इस प्रसंग का वर्णन मिलता है लेकिन गोवर्धन यादव ने अपनी सूक्ष्म और मौलिकदृष्टिसे इस प्रसंगको एक नया औपन्यासिक धरातल दिया है| जहाँ सभी उस सुबह की प्रतीक्षा कर रहे थे ,जिसमें राम का राज्याभिषेक होना था लेकिन कैकेयीके राजा दशरथ से राम के लिए चौदह वर्ष के वनवास और भरत के लिए राजगद्दी मांगते हीसमस्त अयोध्या पर दुर्भाग्य के काले बादल छाजाते हैं और खुशियोंपर ग्रहण लग जाता है | घटनाक्रम आगे बढ़ता है औरश्रीराम को वल्कल धारण करके अपनी पत्नी तथा प्रिय भ्राता के साथ वन गमन के लिए निकलजाना पड़ता है |
राज्याभिषेक की घोषणा के पश्चात श्रीराममाता कैकेयी के भवन जाते हैं और उन्हें अपने अवतार का प्रयोजन बताते हुए मानव कल्याण के इस उद्देश्य में अपना साथ देने के लिए मनाते हैं | उपन्यासकार ने इस प्रसंग को उठाकर बड़ी ही खूबसूरती से कैकेयी को सर्वथा कलंक मुक्त करनेका प्रयास किया है और माता के प्रेम और त्याग को महिमा मंडित किया है | यह सर्व विदित है कि कैकेयी राम को प्राणों से भी अधिक प्यार करती थीं उन्हें कभी यह ध्यान भीनहीं रहा कि उनकी कोख से राम ने जन्म नहीं लिया है| तभी तो राम के राज्याभिषेक का समाचार सुनकर वे अत्यंत प्रसन्न होती है जबकि वह जानती थी कि राजा दशरथ ने उनके पिता महाराज अश्वपति को वचन दिया था कि कैकेयी की कोख से जन्मा राजकुमार ही उनका उत्तराधिकारी होगा औरसरयू के पावन तट पर बसी अयोध्यापुरी का सम्राट होगा| राम के प्रति कैकेयी के प्रेम को रामचरित मानस में इन पंक्तियों में देखा जा सकता है-
कौशल्या सम सब महतारीं| रामहि सहज सुभाय पियारीं || मोपर करहिं सनेहु विसेषी| मैं करि प्रीति परीक्षा देखी ||
जो विधि जन्म देइकरिछोहू| होहिं राम सिय पूत पतोहू || प्राण ते अधिक राम प्रिय मोरें| तिन्हके तिलक छोभु कास तोरें ||
उधर श्रीराम भी अपनी सभी माताओं में सबसे अधिक प्रेम कैकेयी से ही करते थे ,माता-पुत्र के इस प्रेम की अभिव्यक्ति विविध प्रसंगों में यत्र-तत्र देखी जा सकती है |
श्रीराममाँ से आशीर्वाद लेकर निकल पड़ते हैं सनातन धर्म की रक्षा के लिए,मानवता के कल्याण के लिए और उच्चतम आदर्शों की स्थापना के लिए | इस यात्रा में उनके सहभागी हैं नारी आदर्श की प्रतिमूर्ति माता सीता और अपने आग्रज श्रीरामके लिए सुख-शैय्या का त्याग करने वाले शेषावतार लक्ष्मण | श्रीराम इस यात्रा में अकेले नहीं हैं ,उन्होंने अपने साथ समाजके दीन-हीनतबके को लिया है जो सदैव से वंचित-उपेक्षित माना जाता रहा है | श्रीरामप्रतीकात्मक रूप से उनसे सहयोग लेकर न केवल अपना लक्ष्य प्राप्त करते हैं,बल्कि उन्हें समाज के लिए समान रूप से उपयोगी सिद्ध करते हुए उनमें आत्म स्वाभिमान की भावना पैदा करते हैं| श्रीराम के चरित्र का अनूठापन उन्हें जन-जन से जोड़ता है और उन्हें मानव से ईश्वरत्व प्रदान करता है |
अयोध्या से लेकर चित्रकूट तक की इस सरस और सहृदयी यात्रा मेंपाठक प्रकृति के नैसर्गिक साहचर्य से अभिभूत होता है | उपन्यासकार ने प्रकृति और मनुष्य के आत्मीयसंबंधऔर उनके महत्त्व को जन कल्याण के लिए अनिवार्य बताया है | हिंदी जगत में कृति का निश्चित ही स्वागत होगा और पाठकवर्ग द्वारा उसे सराहा जाएगा,इसमें संदेह नहीं |
मैं गोवर्धन यादव जी को इस अनुपम कृति के लिए बधाई और शुभकामना देता हूँ और कामना करता हूँ कि वेअपनी लेखनी से हिंदी साहित्य को समृद्ध करते रहें |
डॉ दीपक पाण्डेय
सहायक निदेशक
केंद्रीय हिंदी निदेशालय
शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार
नई दिल्ली 110001