श्री राम के एक समर्थ उन्नायक
श्री राम के एक समर्थ उन्नायक
गोवर्धन यादव : श्री राम के एक समर्थ उन्नायक
मेरे पूर्वज भारत की जमीन से हुए और मैं मॉरिशस में जन्मा चार पीढ़ियों से हूँ। जन्मों की इस परंपरा से मैं भारत से डेढ़ सौ साल से भी अधिक दूर पड़ जाता हूँ, लेकिन ऐसा नहीं कि इतनी लंबी दूरी के कारण भारत मुझसे छूटा हो। मेरे परिवार का संस्कार रहा उन्होंने यहाँ भारत का जिया और यही मुझे विरासत में प्राप्त हुआ है। इस संप्राप्ति में भारतीय मंत्र तो मुझे बहुत मिले जो बहुत हद तक मुझे कंठस्थ हैं। मेरी संप्राप्ति और भी तमाम है, लेकिन यहाँ मैं उस विस्तार में न जा कर भारत के महान चरित्रों में से एक चरित्र, जो राम का चरित्र है, उस पर अपने को केन्द्रित करना चाहता हूँ। इस चरित्र को मुझे अपने शब्दों का अर्घ्य समर्पित करना है और यह अवसर मुझे मेरे अपने मित्र गोवर्धन यादव ने दिया है। गोवर्धन यादव जी मेरे बहुत अच्छे मित्र हैं और मित्रता की डोर तो साहित्य से ही है। पर ऐसा भी है साहित्य से हो कर हम अनुभूतियों से भी बहुत जुड़े हैं फिर तो मैं उन्हें अपना भाई तक मामने का एक सम्मोह अपने मन में संजोये रखता हूँ। फेसबुक से हम जुड़े थे, लेकिन हम उस जुड़ाव को मजाक न बना कर साहित्यिक गंभीरता और मित्रता की सच्ची डोर तक ले गये जो आज भी कायम है। गोवर्धन जी कभी मेरी मातृभूमि मॉरिशस आये थे और कालांतर में मैंने उनसे बातें करने की प्रक्रिया में ऐसा पाया मॉरिशस उनके लिए अनभूला रह जाने वाला है। गोवर्धन जी ने प्रश्नों के माध्यम से मेरा साक्षात्कार लिया था जिसे उन्होंने अनेक पत्रिकाओं में प्रकाशित करवाया। कालांतर में मैं सपत्नीक भोपाल गया था जहाँ गोवर्धन जी स्वयं मुझसे मिलने आये थे। यह सब दर्शाता है साहित्य के आदमी हों और जो लिखते हों उसे जीते भी हों तो इस तरह के रिश्ते अपने आप बनते चले जाते हैं।
मेरे मित्र गोवर्धन यादव की कहानियाँ मुझे बहुत प्रभावित करती हैं। मुझे लगता है कहानी लेखन के लिए उन्हें कथ्य की कमी नहीं पड़ती। पर मैं एक लेखक होने के नाते जानता हूँ हर कथ्य लेखन के लिए होता नहीं है। कथ्य चुना जाता है और मैं मित्र गोवर्धन की कहानियों से परिचित होने के विश्वास पर कह सकता हूँ उन्हें कथ्य का चयन करना आता है। पर बात इससे एक कड़ी आगे तो जाती है। कथ्य को साहित्य का रूप देना अहम होता है। यह एक गुण है तो है और मैं गोवर्धन जी के लिए लिखने की प्रक्रिया में ऐसा मान रहा हूँ लेखन का उनका जो श्रेय है उसी को अपने कुछ शब्दों से आँकने की मैं कोशिश कर रहा हूँ।
वर्तमान जन जीवन पर लिखने वाले गोवर्धव यादव जी ने अब एक नया मोड़ अख्तियार किया है। वे अतीत में लौटे हैं और वहाँ से मोती ही छान निकाल रहे हैं। वे मोती ही निकालें अन्यथा अतीत में उनके जाने का कोई मतलब न होगा। वे अपने तरीके से राम नाम के उन्नायक के रूप में अपनी पहचान बना रहे हैं और मुझे लगता है उनकी स्थापना प्रबल तो होगी ही। राम को अब तक बहुत गाया गया है। भारत की भाव भूमि में राम की गहरी पैठ है। लिखने वाले आज भी राम को अपने नजरिये से थामने की कोशिश करते हैं और इस संदर्भ में उनकी कलम चल पड़ती है। गोवर्धन यादव जी की भी कलम चल पड़ी है और वे इस छान बीन में लगे हुए हैं राम के चरित्र की परिपुष्टि के लिए अपनी ओर से उनका अपना लेखकीय अवदान क्या हो सकता है। उनकी ओर से लिखित ‘वन गमन’ शीर्षक से राम नाम की जो महिमा मुझे पढ़ने को मिली मुझे लगा और सत्य यही है वे राम को एक मनुष्य के रूप में चित्रित करना चाहते हैं।
गोवर्धन यादव जी एक सर्जक हैं जिनके हृदय में प्रगाढ़ रूप से स्थापित हो लिखें तो मनुष्य के लिए ही लिखें। इसी बिना पर मुझे लगता है उन्होंने अपने वर्तमान लेखन के लिए राम का चयन इसलिए किया हो यह भी मनुष्य के लिए ही लिखा जाये। लोग राम को मंदिरों में पूज लें, लेकिन साथ में राम को गलियों में विचरण करता भी देख लें। राम की गली बड़ी ही संकाटापन्न और काँटेदार थी। विधान हो तो हो राम को धरती पर आना हो क्योंकि लंका तक उनकी गली का नाम लिखा जा चुका हो। पर सुकुमार राम को महल छोड़ कर वन की गलियों से वहाँ तक पहुँचना था। यह जादू से होने वाला नहीं था, यह कर्म से होता और इस अर्थ में राम कर्म के सच्चे साधक के रूप में अपने चरित्र की छाप छोड़ गये हैं। आज हम फिल्मी तर्ज़ पर राम कथा को इस रूप में ग्रहण कर लेते हैं वे जिस अयोध्या से चले थे वहाँ से उन्हें वापस तो आना ही था। बस रावण बाधक था जिसे खत्म करने की देर हो। चौदह साल में यह पूरा होना था और हुआ भी, एक दिन न ज्यादा न एक दिन कम। काव्यकार ने इसी तरह से हमें परोस दिया और हम इसी पर आज भी चले जा रहे हैं। इसे प्रश्न तो न बनाया जायेगा, लेकिन इस पर मंथन किया जा सकता है। मंथन से ऐसे भाव तो निश्चित ही निकलेंगे राम ने मनुष्य के रूप में वन गमन किया तो उनके लिए शेर होने के साथ मच्छर भी हुए। राम दिन में शेर से लड़ लें, लेकिन सोते वक्त उन्हें मच्छर परेशान करें तो वे करवट बदलते रह जायें। ऐसी छोटी - छोटी बातों से भी तो राम थे। लेखकों ने इस तरह की बहुत खोज की और यह खूब लिखा गया है। पर राम जो मनुष्य के चोले से थे शायद उन्हें विधाता से वरदान हो तुम पर लिखा जाना कभी पूरा होने वाला नहीं है। तो जो राम पर लिखा जाना अभी अधूरा है मेरे मित्र गोवर्धन यादव उसी से भिड़ने का प्रयास कर रहे हैं। गोवर्धन जी को लिखने की महारत हासिल है। बल्कि इस तरह से कहूँ उन्होंने बड़ी निष्ठा से लेखन के अपने व्यक्तित्व का निर्माण किया है। तब तो विश्वास होना निश्चित है वे जिस राम पर लिख रहे हैं वह उनका अपना राम होगा । किसी ने किसी लेखक को सुनाया नहीं होता है वह ऐसा है या ऐसा नहीं है तो कैसा है। लेखक उसे स्वयं गढ़ता है।
राम का चरित्र भी यही है उसे नित नया गढ़ा जाता है, लेकिन यह अपेक्षा अवश्य की जाती है राम की मर्यादा खंडित न हो। गोवर्धन यादव जी उम्रदाँ होने के साथ लेखन में परिपक्वता तो रखते ही हैं। राम जैसे जटिल प्रश्न को ले कर वे हाँ - ना के दो पाटों पर लेखन के अपने शब्द बिछाते जायेंगे और निश्चित ही जिम्मेदार लेखन की भावना से एक सुन्दर एवं सार्थक राम की रचना करेंगे। पर राम के मामले में स्थापित होना उनके लिए एक चुनौती तो होगी। इसी चुनौती का नाम गोवर्धन यादव हो रहा है।
चुनौतियों की समस्त बाधाओं को पार करते हुए गोवर्धन यादव ने प्रथम खण्ड “वनगमन” लिखकर इस बात को सिद्ध कर दिया है कि वे अपने राम को उसी रूप में देख पा रहे हैं, जैसा कि उन्होंने अपनी आत्मा में बसा रखा था. प्रथम संग्रह की सफ़लता के बाद अब वे नए उत्साह के साथ उपन्यास का दूसरा खंड “ दण्डकारण्य की ओर” लेखने के लिए अग्रसर हो रहे हैं. मेरी ओर से उन्हें समस्त शुभ कामनाएँ।
रामदेव धुरंधर
मॉरिशस
16 - 05 – 2022