( 8 जनवरी 1942...14 मार्च 2018 )
· स्टीफ़न हाकिंग एक विश्व प्रसिद्ध व्रितानी भौतिक विज्ञानी....ब्रह्माण्ड विज्ञानी, लेखक और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में सैद्धान्तिक ब्रह्माण्ड विज्ञान केन्द्र के शोध निदेशक.
· ब्लैकहोल और बिग बैंग सिद्धांत समझने में अहम योगदान दिया. उन्हें 12 मानद डिग्रियां और अमरिका का सबसे उच्च सम्मान प्राप्त हुए.
· मुझे सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है मैंने ब्रह्माण्ड को समझने में अपनी भूमिका निभाई. इसके रहस्य लोगों के सामने खोले और इस पर किए गए शोध में अपना योगदान दे पाया. मुझे गर्व होता है जब लोंगो की भीड़ मेरे काम को जानना चाहती है.
· लगभग सभी मांसपेशियों से मेरा नियंत्रण खो चुका है और अब मैं अपने गाल की मांस्पेशी के जरिए, अपने चश्में पर लगे सेंसर को कम्प्यूटर से जोड़कर ही बातचीत करता हूँ
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स्टीफ़न हाकिंग.
“मनुष्य होने पर जीवन की चुनौती बनी रहेगी. इसे किसी भी तरह नकारा नहीं जा सकता. जीवन की चुनौती को स्वीकार करके उसके रहस्य को उपलब्ध कर लेना भले ही कठिन हो, पर असंभव नहीं है. लक्ष्य हमारी आंतरिक शक्तियों को जाग्रत करता है और हमारा जीवन हर तरह की चुनौतियों और अवरोधों को पार कर अपनी इच्छित मंजिल को प्राप्त कर लेता है. जब हम श्रेष्ठ लक्ष्य की ओर बढ़ने लगते हैं तो हमारी आंतरिक चेतना विकसित और परिष्कृत होती है.”. यह बात स्टीफ़न हाकिंग पर शत प्रतिशत लागु होती है. अभावों के चलते भी उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की. जब वे मात्र 21 बरस के थे, सीढ़ियां उतरते हुए बेहोश होकर गिर पड़े. परीक्षण के बाद डाक्टरों ने बतलाया कि उन्हें “न्यूरान मोर्टार” नामक बिमारी ने घेर लिया है. इस बिमारी में आदमी के शरीर के सभी अंग धीरे-धीरे काम करना बंद कर देते हैं. इतनी असाध्य बिमारी के चलते इन्होंने अंतरिक्ष के गूढ़ रहस्यों को जाना और उसे उजागर किया. आपने ब्रह्माण्ड को समझने और ब्लैक होल पर काफ़ी रिसर्च किया.
इस आलेख में हाकिंग के बारे में विस्तार में जाने की बजाय हम जानना चाहेंगे कि आखिर “ब्लैक होल” होता क्या है?.
आइए, जानते हैं “ब्लैक होल” के बारे में.
गोवर्धन यादव.
ब्रह्माण्ड के अव्यवस्थित “ब्लैक होल”
हमारे इस ब्रह्माण्ड में लगभग एक अरब आकाशगंगाएं हैं. एक आकाशगंगा में सौ अरब तारे हैं. सूर्य भी एक वृहद तारा है तथा पृथ्वी एक ग्रह. पृथ्वी के अतिरिक्त आठ ग्रह है- बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति, शनि, युरेनस, नेप्च्यून और प्लुटो है. सूर्य के चारों ओर ये नौ ग्रह अपनी अण्डाकार कक्षा में परिक्रमा करते रहते हैं. चंद्रमा पृथ्वी का ही एक उपग्रह है. बृहस्पति के तेरह, शनि के दस, युरेनस के पांच, मंगल एवं नेपच्यून के दो-दो उपग्रहों की जानकारी अब तक मिली है. बुध एवं शुक्र ग्रहों के उपग्रहों के होने की कोई जानकारी नहीं मिल पाई है.
जिस आकाशगंगा की पृथ्वी अंग है, अनुमानतः उसका व्यास है एक लाख प्रकाशवर्ष तथा मोटाई दस हजार प्रकाशवर्ष. ऎसी एक अरब आकाशगंगाएं ब्रहमाण्ड में अनुमानतः अभी हैं. अपनी आकाशगंगा के तारों, ग्रहों व उपग्रहों की भी अभी तक मात्र अन्य जानकारी प्राप्त हो सकी है. अनन्त ब्रह्माण्ड तक तो मस्तिस्क की कल्पना भी पहुँच सकने में स्वयं असमर्थ पाती है. पृथ्वी के विषय में भी पूर्व के अनेकानेक मत अब असत्य सिद्ध होते जा रहे हैं. ऎसी अनेकानेक नयी शोधें अब इस क्षेत्र में हो रही हैं, जो बताती हैं कि पृथ्वी के विषय में भी जो जाना-समझा गया था, वह मात्र कल्पना ही था. दो अमेरिकी खगोलशास्त्री डा.रिचर्ड और जार्ज स्मिथ एवं उनके सहयोगी शोधकर्ता लारिन्स बर्कले और लैब के मार्क कोरेश्टाइन के अनुसार हमारी पृथ्वी लगभग बीस लाख किलीमीटर प्रति घंटा की भयंकर गति के बासुकी तारामण्डल की ओर दौड़ती चली जा रही है. अति संवेदनशील रेडियो, उपकरणॊ द्वारा पृथ्वी वायुमण्डल से 19,800 मीटर की ऊँचाई पर किये गए परीक्षणॊं से यह जानकारी मिली है. इन अनुसंधानों से यह समझा जा रहा है कि ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति एक फ़ल या पौधे के खिलने की तरह हुई है न कि अग्निपिण्ड के विस्फ़ोट से, जैसा कि माना जाता था एवं नियन्त्रित तथा पूर्णतया समान गति से उसका विस्तार होता चला गया. यह घटना 15 अरब वर्ष पूर्व हुई मानी है.
ब्रह्माण्ड के तारकों-सौर मण्डलों की क्रिया-प्रक्रिया अपने ढंग से प्रवाहित हो रही है और ग्रह-नक्षत्रों का परिवार अपने सामान्य-क्रम से चल रहा है. इतने पर भी जहाँ-तहाँ ऎसी पहेलियाँ और विसंगतियाँ दृष्टिगोचर होती हैं जिनका समाधान ढूँढ पाने में मानवी बुद्धि किंमकर्तव्यविमूढ़ रह जाती है.
इस अनन्त अंतरिक्ष में जहाँ-तहाँ ऎसे चक्रवात या भ्रमर हैं जो अपनी प्रचण्ड शक्ति के कारण महादैत्य कहे जाते हैं. उनकी पकड़ और चपेट में जो भी दृष्य-अदृष्य, साकार-निराकार फ़ँस जाता है, उसे वे अपने उदर में निगल लेते हैं और यह पता नहीं चलने देते कि उनका खाया वह पचने के लिए कहाँ चला गया. इन भँवरों को विज्ञान की भाषा में “ ब्लैक होल” कहते हैं.
ब्लैक होल का अर्थ है,”काला छेद”. अन्तरिक्ष में वे जहाँ कहीं होते हैं, वहाँ सघन अन्धकार छाया रहता है. सघन भी इतना कि उस क्षेत्र में पड़ने वाली प्रकाश किरणें तक उसी गर्त में चली जाती हैं और उनका दर्शन कर सकना किसी के लिए भी संभव नहीं हो पाता. होल इसलिए कि उसमें मात्र पोल ही पोल भरी पड़ी है. पोल भी इतनी जिसमें कोई दृष्य या अदृष्य पदार्थ बिना किसी अवरोध खिंचता-घुसता चला जाता है. इस प्रवेश की गति इतनी अधिक होती है कि उसकी तुलना में प्रकाश की गति भी स्वल्प ठहराई जा सके.
अपनी पृथ्वी पर बारमूड़ा के निकट कई बार कितने ही जलयान एवं वायुयान इस भँवर में फ़ँसकर अपना अस्तित्व गँवा बैठे हैं. पकड़े जाते समय तो कुछ क्षण के लिए चीखे-चिल्लाये, किन्तु बाद में उनका इस प्रकार लोप हो गया मानो उनका कभी कोई अस्तित्व था ही नहीं. ढूँढने पर कोई निशान या प्रमाण ऎसे न मिले जिनसे घटना-क्रम का या उसके निमित्त कारण का कुछ तो पता चल सके. उस क्षेत्र में होती रही दुर्घटना का विवरण बड़ा रोमांचकारी है. इसी प्रकार के काले छेद इस ब्रह्माण्ड के अन्यत्र हैं भी. पृथ्वी वालों को भी उनका आभास जब-तब मिलता रहता है.
इनकी विभीषिका अत्यधिक रोमांचकारी है. वे छॊटे भी होते हैं और बड़े भी. छोटे ब्लैक होल सपोलो की तरह थोड़े से क्षेत्र में अपना फ़न फ़ैलाये रहते हैं और जो उधर से गुजरता है, उसे लपक लेते हैं. किन्तु बड़े ब्लैक होल ऎसे ही हैं, जो अपनी समूची पृथ्वी को ही देखते-देखते निगल सकते हैं.
सुव्यवस्थित सृष्टि प्रवाह में अव्यवस्थित ब्लैक होल किस कारण उत्पन्न होते हैं और वे किस क्रम से अपना क्रिया-कलाप चलाते है? इसकी खोजबीन अन्तरिक्ष विज्ञानिकों ने की है. उससे समग्र जानकारी तो प्राप्त नहीं हो सकी, पर जो कुछ पता चला है वह भी कम रहस्यमय और कम रोमांचकारी नहीं है.
नेशनल एरोनाटिक्स एण्ड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) ने “उहुरु” नामक एक कृत्रिम उपग्रह को गत दिसम्बर 1970 में इटली के एयरो स्पेस रिसर्च सेण्टर से अन्तरिक्ष में छॊड़ा. इसका उद्देश्य “ब्लैक होल” की स्थिति का पता लगाना था, ऎसे 200 तारा स्त्रोतों का पता इस उपग्रह ने लगाया जो एक्स-रे उत्सर्जित करते हैं. इसमें प्रमुख-प्रमुख हैं-सैतोरस एक्स-3, सिग्नस एक्स-1, हरक्यूलिस –एक्स -1, सिग्नल-एक्स-3. वैज्ञानिकों का ध्यान इन स्त्रोतों में सिग्नस एक्स-1 की ओर अधिक आकर्षित हुआ. अध्ययन द्वारा इसमें वे सारे लक्षण पाए गए है, जो “ब्लैक होल” पर पाये जाते हैं. सिग्नस एक्स-1 की दूरी पृथ्वी से लगभग 8000 प्रकाशवर्ष (75 लाख अरब किलोमीटर) के लगभग है. गैस मण्डल में जो ब्लैक होल पाये जाते हैं, उनकी सारी विशेषताएँ इसमें हैं. गुरुत्वाकर्षण बल की तीव्रता के कारण वह भी प्रत्येक वस्तु पर हावी होकर उसे अपनी ओर खींच लेता है.
“ब्लैक होल” की स्थिति का पता लगाना भी एक विकट समस्या है. प्रकाश की किरण को प्रकाश स्त्रोत से यदि भेजा जाय तो ब्लैक होल प्रकाश तो तुरन्त पकड़ लेगा, हमें मात्र काला छिद्र दिखाई देगा.
आइन्स्टीन के अनुसार प्रकाश किरणॊं में भी द्रव्यमान होता है. यदि यह सिद्धान्त सही है तो ब्लैक होल के धरातल से ऊपर फ़ेंकी गई प्रकाश किरण तीव्र गुरुत्वाकर्षण के कारण पीछे खींच ली जाएगी. उसी प्रकार जिस तरह यह पृथ्वी ऊपर फ़ेंकी गई गेंद को खींच लेती है. ब्लैक होल की तेज गुरुत्वाकर्षण शक्ति का कारण यह है कि विज्ञान के सिद्धान्तानुसार जो वस्तु जितनी सघन होगी, उसका आकर्षण बल उतना ही प्रबल होगा. ब्लैक होल का घनत्व अधिक होने के कारण उसका गुरुत्वाकर्षण अत्यधिक है और वह अपनी पकड़ में आने वाले प्रत्येक पदार्थ को सहज ही अपनी ओर खींच लेता है.
प्रसिद्ध तारा भौतिकशास्त्री श्री के.एस.थ्रोन और श्री नीविकोव का ब्लैक होल की उत्पत्ति के विषय में कहना है कि “विकासक्रम की अन्तिम अवस्था में तारे यदि 1.2 सौर द्रव्यमान बढ़ जाते हैं तो एक वृहत तारे की तरह उन्हें फ़ट जाना चाहिए. फ़टने से दो चीजें तारे छॊड सकते है- एक- विस्तीर्ण गैस का बादल और दूसरा- अवशेष तारा. यदि शेष तारे का भार 2 सौरद्रव्यमान से कम है, तो वह एक न्युट्रान तारे, जिसका कि घनत्व नाभिक के स्तर का होता है, में बदल जाता है तथा यदि इससे अधिक है तो वह ब्लैक होल में परिवर्तित हो जायेगा.”
ब्लैक होल की उत्पत्ति और भयानक शक्ति के सम्बन्ध में जो निष्कर्ष निकले हैं, वे मानव जगत के प्रयुक्त होने वाले सिद्धन्तों और प्रचलनों से ही मिलते-जुलते हैं. जो भारी होता है, वह अपेक्षाकृत हल्कों को अपनी ओर खींचता है, जो हल्का पड़ता है, वह दूसरों के प्रभाव से प्रभावित होकर उनका अनुकरण करने लगता है. इस तथ्य को अधिक अच्छी तरह समझा जा सके तो स्वयं को अधिक भारी-भरकम बनाने और अपने प्रभाव क्षेत्र में अधिकों की सेवा कर सकने की प्रेरणा मिलती है. साथ ही यह सतर्कता अपनाने का भी अवसर मिलता है, कि किसी समर्थता, प्रतिभा से प्रभावित होकर कुछ ऎसा न करने लगे जो अनुचित, अनुपयुक्त हो. ब्लैक होल ब्रह्माण्ड में भी है और मानव समाज में भी. प्रभाव शक्ति की जितनी उपयोगिता है, उतनी ही भयंकरता भी. इस तथ्य को ध्यान में रखकर चलना और आत्म रक्षा का उपाय समय रहते करना चाहिए.
प्रकृति प्रवाह से कहीं छिद्र रह जाने के कारण भी इन ब्लैक होलों की उत्पत्ति मानी गई है. छिद्र कहीं भी रहने दिए जाय. कपड़े में छॊटा –सा छिद्र होता है, उसे समय पर न सिया जाय तो सारे कपड़े को ही निरर्थक कर देगा. घड़े में छॊटा-सा छिद्र हो जाने पर पानी भी बह जाता है और आस-आस जमीन भी गीली होती है. बाँधो में एकाध चूहों का छेद होता है और वह बढ़कर बाँध में दरार डालने-तोड़ने और उसके कारण बड़े क्षेत्र को जलमय करने की हानि पहुँचाता है. इसलिए समय रहते हर छिद्र को बन्द करना चाहिए.
ब्लैक होल अपनी भयानक शक्ति और उससे होने वाली हानि एवं अव्यवस्था की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं. साथ ही यह भी बताते हैं कि वैयक्तिक जीवन और समाज व्यवस्था में यदि कहीं “ब्लैक होल” होल हों उनके खतरों को समझें और बन्द करने का प्रयत्न करें.