रहस्यमय उड़तश्तरियाँ
रूस के सुप्रसिद्ध खगोल-विशारद आई.एस.श्क्लोस्की ने “एन्टेलीजेण्ट लाइफ़ इन दि यूनिवर्स” नामक पुस्तक न लिखी होती तो भारतीय तत्व दर्शन का परलोकवाद सिद्धान्त पूरी तरह धूल-धूसरित हो गया होता. अनेक तर्को और वैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर यह लिखा है कि—“हमारी आकाशगंगा क्षेत्र में जिसमें कि अपना समस्त सौर-मण्डल भी आता है, लगभग १० लाख ऎसे ग्रह है जहाँ कि धरती के समान ही बुद्धिमान और सभ्य लोग निवास करते हैं. इसमें से कई लोक तो इतने सुन्दर हैं कि उसकी तुलना स्वर्ग से की जा सकती है”.
जीव के अन्य लोकों में गमन की बात को अंधविश्वास माना जाय तो विज्ञान की उक्त धारणा को भी अज्ञानग्रस्त काल्पनिक उड़ान ही कहा जाएगा, क्योंकि ब्रह्माण्ड कितना अनन्त और असीम है उसकी कुछ यथार्थ जानकारी अभी तक भी पूर्ण सत्य नहीं मिल पायी. हम जिस सौर-मण्डल में रहते हैं वह “स्पाइल” नामक आकाशगंगा से प्रकाश पाता है और इस आकाशगंगा की चौड़ाई एक लाख प्रकाशवर्ष है.
विज्ञान के महारथी अल्बर्ट आइन्स्टीन का मत है कि संसार में अधिकतम वेग वाला विमान प्रकाश की गति वाला हो सकता है. इससे अधिक तीव्र गति भौतिक जगत में संभव नहीं है
सन १९७१ में पृथ्वीत्तर जीवन की खोज के लिए एक अन्तर्राष्ट्रीय कमेटी बनायी गई जिसकी बैठक रूस के आर्मीनिया प्रदेश में हुई. अनेकों वैज्ञानिकों ने यह सम्भावना व्यक्त की कि अन्य ग्रहों पर भी जीवन है. अमेरिका के जीव विज्ञानी डा.कार्ल सौगन का कहना है कि अन्य ग्रहों एवं नक्षत्रों में वैसी ही रासायनिक एवं भूगर्भीय प्रक्रियाएं चल रही हैं जैसी कि पृथ्वी पर. उनका कहना है कि ब्रह्माण्ड में प्राणियों का अस्तित्व ब्रह्माण्ड में कई स्थानों में विध्यमान हैं. सी.एम. लेविस अपनी पुस्तक “आउट आफ़ दी सायलेण्ट प्लेनेट” मे लिखते हैं कि पृथ्वी के अतिरिक्त अन्य लोकों में भी मनुष्य से मिलते-जुलते प्राणी रहते हैं. समय-समय पर दिखाई पड़ने वाली उड़तश्तरियों के प्रमाण भी उस कथ्य की पुष्टि करते हैं कि अन्य ग्रहों पर न केवल जीवों का निवास है वरन सभ्यता की दृष्टि से वे कहीं मनुष्य से भी अधिक विकसित हैं. सुप्रसिद्ध खगोलशास्त्री कार्ल एडवर्ड सैगन ने खगोल विज्ञान सम्बन्धी शोधे की हैं और इस निष्कर्ष पर पहुँचें हैं कि ब्रह्माण्ड में अन्यत्र भी जीवन है और वह मनुष से कहीं अधिक बुद्धिमान और साधन सम्पन्न हैं. रूस के सुप्रसिद्धविज्ञाक इयोशेफ़्लेवलीवस्की ने अपने ग्रंथ “ द इण्टेलिजेण्ट लाइफ़ इन द यूनिवर्स” में इस तथ्य की पुष्टि की है कि अकेले पृथ्वी पर ही बुद्धिमान प्राणी नहीं रहते. सेविलें (स्पेन) में संपन्न हुए जीव विज्ञान के २४ वें अन्तरिक्षीय सम्मेलन ( कास्मो बायोलाजिस्टर कान्फ़्रेंस) में विश्व के प्रमुख वैज्ञानिकों ने इस तथ्य को मान्यता प्रदान की ब्रह्माण्ड में विकसित स्तर पर जीवन मौजूद है. उनके साथ सम्पर्क बढ़ाकर हमें अपने ज्ञान एवं सुविधा साधनों की अभिवृद्धि करनी चाहिए.
पृथ्वी पर अन्तरिक्षवासियों के आगमान के प्रमाण मिलते जा रहे हैं. 24 जून 1967 को न्यूयार्क के उड्नतश्तरी शोध सम्मेलन चल रहा था. उसी समय सूचना मिली कि इस रहस्य की अनेकों जानकारियाँ संग्रह करने वाले फ़ैंक एडवर्ड का अचानक हार्ट अटैक से निधन हो गया. इसी दिन उन्होंने इस शोधकार्य को अपने हाथ में लिया था. 24 जून ऎसा अभागा दिन है जिसमें इस शोध कार्य में संलग्न बहुत से वैज्ञानिक एक-एक करके मरते चले गए. अकेले फ़्रेक एडवर्ड ही नहीं क्वीनथ अरनोल्ड, आर्थर व्रायेट, रिचर्ड चर्च, फ़्रेक सकली वेले ली आदि सब इसी तारीख को मरे हैं. दस वर्षों में 137 उड़नतश्तरी विज्ञानिकों का मरना अत्यन्त आश्चर्यजनक है.
जार्ज आदमस्की ने कैलोफ़ोर्निया के दक्षिण में एक उड़नतश्तरी देखी. दर्शकों में एक प्रत्यक्षदर्शी जार्ज विलियमसन भी थे. वे इस घटना का विस्तृत विवरण प्रकाशित कराने में संलग्न थे. इतने में आदमस्की की दृदयगति रूकने से मौत हो गई और हेट न जाने कहाँ गुम हो गया. उस हेट का फ़िर अता-पता नहीं मिल पाया. ट्रमेन वैथाम अपनी आँखों देखी गवाही छपाने की तैयारी कर ही रहा था कि अपने बिस्तर पर ही अचानक लुढककर मर गया. ऎसी ही दुर्गति वर्नी हिल नामक गवाह की भी हुई.
डा.रेमण्ड बर्नाड ने उडनतश्तरियों पर कई पुस्तकें लिखीं. अचानक एक दिन उनकी मृत्यु हो गई. कोई नहीं जान पाया कि वे कब मरे, कहाँ मरे और कैसे मरे?. सन्देह है कि वे जीवित हैं, पर कोई नहीं जानता कि वे कहाँ है? इसी विषय पर एक अन्य पुस्तक प्रकाशित करने वाले डा.मौरिस केजेसप ने खुद ही आत्महत्या कर ली. अपने मोजों से गला घोंट कर आत्महत्या करने वाली “डोली” के बारे में कहा जाता है कि एक उड़नतश्तरी के चालकों से भेंट के उपरान्त उन्हें ऎसा निर्देश मिला था जिसे वे टाल नहीं सकीं. केप्टन एडवर्ड रुपेल्ट और विलवर्ट स्मिथ अपनी मौत के स्वयं उत्तरदायी थे. राष्ट्रसंघ के प्रमुख डाग हेयर शोल्ड का वायुयान 19 सितम्बर 1961 को जलकर नष्ट हुआ था और वे उसी में मरे थे. दुर्घटना के प्रत्यक्षदर्शी टिमोथी मानास्का ने शपथ पूर्वक कहा था कि उसने उस यान पर एक चमकदार तश्तरी झपट्टा मारती देखी थी. ये सभी लोग उस उड़नतश्तरी का पता लगाने के सम्बन्ध में गहरी दिलचस्पी ले रहे थे. ग्रे वारकर इस विषय पर एक पुस्तक प्रकाशित कर रहे थे कि उनके दरवाजे पर एक पर्चा चिपका मिला “ उडनतश्तरियों के बारे में चुप रहो, नहीं तो बेमौत मारे जाओगे.” एक वैज्ञानिक राबर्ट एल.ईसले 25 फ़रवरी 1968 को इस विषय पर भाषण देकर लौट रहे थे कि किसी दिशा से उनकी कार पर दनादन गोलियाँ बरसने लगीं. घर पहुँचते ही फ़ोन पर उन्होंने किसी का सन्देश सुना-“आगे से इस विषय पर कुछ मत बोलो नहीं तो दुरस्त कर दिए जाओगे.”
23 अगस्त 1983 को स्टाक होम से प्रकाशित “आकलैण्ड स्टार” नामक पत्र में स्वीडन के कैप्टन लेनर्ट स्टोर्म की उडनतश्तरी सम्बन्धी एक आँखों देखी घटना प्रकाशित हुई थी. उन्होंने 17 सितम्बर 2982 की संध्या 5 बजे एक विचित्र दृष्य देखा. पृथ्वी की ओर गतिशील एक चपटा सा यान तेज चमचमाते प्रकाश के साथ उनके सामने से गुजरा व लगभग तीन किमी.दूर जंगल में जाकर रुक गया. प्रारम्भ में उन्होंने मिलिट्री ट्रान्सपोर्ट हेलिकाप्टर समझा, किन्तु ध्वनि रहित इस यान को देखकर आश्चर्यचकित रह गए. जब उसमें से दो छॊटॆ-छॊटॆ यान निकलकर उनके समीप से गुजरे कुछ दूर रुक गए. थॊडी देर में वहीं रहकर दोनो यान मूल यान से जुड़कर दूर आकाश में उड़ गए. केप्टन का कहना है कि “मेरी आँखें 25 वर्षों का सेना का अनुभव होने के कारण धोखा नहीं खा सकतीं. स्पष्ट है कि दूरस्थ आकाशगंगा से आयी हुई एक उड़नतश्तरी है जो संभवतः जीवन के चिन्ह तलाशने यहाँ आयी थी.
25 अगस्त 1976 को अमेरिका के नार्थ डकोटा प्रान्त के एक वायु सेना अधिकारी को रेडियो तरंगों द्वारा सन्देश भेजने में अचानक बाधा का सामना करना पड़ा. खोजबीन करने के बाद पता चला कि इसी समय एक उड़नतश्तरी गहरे लाल रंग के प्रकाश बिखेरती ऊपर नीचे उड़ रही थी. इसी समय राडार ने भी दस हजार मीटर की ऊँचाई पर उड़ती हुई एक गोल तश्तरी की सूचना दी. थॊड़ी देर बाद उड़नतश्तरी दक्षिण को मुड़ गई और यह अनुमान लगाया गया कि कोई मील की दूरी पर वह पृथ्वी पर उतर गई है. उस स्थान पर वायु सेना की टुकड़ी पहुँची तो वह आठ मिनट पहले ही वहाँ से गायब हो चुकी थी. इस बीच दूसरी तश्तरी उत्तर की ओर दिखाई दी, उसे भी राडार पर ने देखा पर जब तक दस्ता उधर दौड़े, वह भी गायब हो गई.
24 अक्टूबर,1977 की शाम को कनाडा के समुद्री तट पर शागहार्बर के सैकडॊं निवासियों ने आकाश में कोई चमकदार उड़ती हुई वस्तु देखी. देखते-देखते ही वह समुद्र सतह पर जाकर विलीन हो गई. बीस मिनट के भीतर ही पुलिस कर्मचारी एक जहाज और आठ नावों सहित उस स्थान का निरीक्षण करने पहुँच गए, जहाँ उड़नतश्तरी विलीन हुई थी. वहाँ सर्चलाइट के तेज प्रकाश में वे केवल समुद्र के एक स्थान से पीला झाग निकलता देख सके. दो दिनों तक सैनिक गोताखोर उस स्थान पर गोता लगाते रहे पर वहाँ किसी वस्तु या उड़नतश्तरी का कोई प्रमाण नहीं मिला.
13 मई, 1917 को फ़ातिमा नगर लिस्बन (पुर्तगाल) से कोई 62 मेल दूर “कारवाँ द इरिया” नामक झरने के समीप तीन बालक लुसिया, फ़्रकिस्कोमार्तो और जेसिन्तोमार्तो अपने जानवर चरा रहे थे कि यान से अन्तरिक्ष यात्री उतरे और उन बालकों से बातचीत की. बालक भाषा तो न समझ सके. याह घटना उन्होंने अपने अभिभावकों को सुनाई किन्तु इससे वे सहमत न हुए. किन्तु ठीक एक माह उपरान्त 13 जून को फ़िर से एक अन्तरिक्ष यान आया. उसमें से कुछ यात्री उतरे. अब की बार सम्मोहन किरणॆं जैसी फ़ेंकी. बालकों से कुछ कहा. बालक समझे तो नहीं पर हाव-भाव से ऎसा लगा कि कह रहे हों कि “तुम बहुत अच्छे लगते हो”. फ़िर तेरह जुलाई को इसी प्रकार पुनरावृत्ति हुई. अब यह बात सारा नगर जान चुका था. जो हजारों दर्शक उस स्थान पर जमा हो गए थे, उन्हें निराशा ही हाथ लगी. कुछ दिखाई नहीं दिया. अब अगली तेरह तारीख के इन्तजार में 70,000 हजार नगर निवासी नदी के किनारे जमा हो गए. थॊड़ी ही देर में बादलों के बीच से कोई चौंधियाने वाली वस्तु आकाश से पृथ्वी की ओर आती दिखाई दी. वह तेज घूमती तश्तरीनुमा कोई चाँदी धातु से निर्मित वस्तु थी. भीड़ के समक्ष वह ठहरी नहीं. सूरज के तरफ़ जाकर लुप्त हो गई. देखने वालों का कहना था कि उसकी गति प्रकाश से भी अधिक थी.
सन 1930 में प्लूटॊ ग्रह की खोज करने वाले अन्तरिक्ष विज्ञानी क्लाइड डब्ल्यू टाम्बा ने कहा था कि” मैंने और मेरी पत्नि ने उड़नतश्तरियाँ आकाश में उड़ती देखी हैं. “मैं उन पर अन्तर्ग्रही सभ्यता के अस्तित्व पर पूरा विश्वास रखता हूँ.” इंग्लैण्ड के अन्तरिक्ष विज्ञानी एच.पार्सी विल्किस ने भी 1935 में 500 फ़ीट व्यास की उड़नतश्तरी देखने के विवरण “साईंस पत्रिका” मे दिया था.
सन 1947 में अमेरिका के पश्चिमी तट रार्कामा के निकट मोटार बोट में बैठे दो रक्षक एच.डहल तथा झेड.एल.कैसवेल समुद्र तट की निगरानी कर रहे थे. अचानक आकाश में दो हजार फ़ुट की उँचाई पर गोल आकृति की प्रकाशमान छः मशीनें दिखाई दीं. पाँच मशीन एक के चारों ओर घूम रही थी. धीरे-धीरे नीचे उतरकर 500 फ़ुट की उँचाई पर रूक गईं. तभी डहल ने अपने कैमरे निकाल फ़ोटॊ लेने के लिए कैमरे का स्विच दबाया ही था कि अचानक बीच वाली मशीन फ़ट गई. दोनों अंगरक्षक तुरन्त छलांग लगाकर पास की एक गुफ़ा में घुस गए पर उनके साथ का कुत्ता वहीं मर गया. कुछ देर बाद बाहर निकलने पर देखा कि विस्फ़ोट से फ़टे मशीन के टुकड़े तट पर बिखरे थे, जो चमकीले और गरम थे.
निरीक्षक दल ने वाशिंगटन के उक्त टापू पर फ़ैले बीस टन धातु के टुकड़ों को एकत्र कर परीक्षण किया तो ज्ञात हुआ ये टूकड़े सोलह धातुओं के सम्मिश्रण से बने हैं जिन पर कैल्सियम की मोटी चादर चढ़ी है. वैज्ञानिकों के लिए आश्चर्य यह रहा कि इन सोलह धातुओं में से एक भी धातु पृथ्वी पर नहीं पायी जातीं. वे इसका नाम तक बता पाने में असमर्थ रहें एवं अभी तक उनका विश्लेषण सम्भव नहीं हो पाया है.
मेलबोर्न-24 अक्टूबर 1978 को बीस वर्षीय युवा विमान चालक फ़्रेडरिक. वाके ने आस्ट्रेलिया एवं तस्मानियां के बीच उड़ान भरी. विमान जब 137 मीटर ऊपर उड़ रहे विमान के ऊपर से बहुत तेज गति से एक तश्तरी जैसी आकृति उड़ रही थी, जिसमें से हरा प्रकाश आ रहा था. इसके संपर्क में आने से विमान के इंजिन में रुकावटें आने लगी और विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया.
आज वैज्ञानिकों के पास अन्तरिक्ष के बारे में पर्याप्त जानकारियां उपलब्ध हैं. अपने सौर-मण्डल में विद्यमान अनेक ग्रहों पर वे जीवन की सम्भावनाएं बताते हैं. यह अकारण नहीं हो सकता कि विकसित सभ्यता वाले अन्यान्य ग्रहवासी इस छॊटॆ से ग्रह पृथ्वी के बारे में जानने को उत्सुक न हों. जब मनुष्य चन्द्रमा पर जा सकता है, मंगल ग्रह पर जा धमकता है तो अन्य ग्रहों के निवासी अपने यान यहाँ क्यों नहीं भेज सकते?
यों उड़नतश्तरी अभी भी एक रहस्य ही है और उनके संचालकों का क्रिया-कलाप और भी अधिक विचित्र है. फ़िर भी यह विश्वास किया जाता है कि कल नहीं तो परसों उन रहस्यों पर से पर्दा उठेगा और हम ऎसे युग में प्रवेश करेंगे जिसमें क्षुद्र आपूर्ती की संकीर्णता से ऊपर उठकर हमें यह ध्यान में रखकर सोचना पड़ेगा और उसी आधार पर अपनी गतिविधियों का निर्धारण करना पड़ेगा.