रफ़्तार घडी की.
समय कभी किसी के लिए नहीं रुकता. वह चलता रहता है निरन्तर. हालांकि मावन ने प्रागैतिहासिक युग से ही उसकी नाक में नकेल डालने की कोशिशें शुरु कर दी थी. दिन-रात की अजीब गुत्थी जब उसके मस्तिस्क में प्रश्न लेकर खडी हुई तो उसने सूर्य-चंद्रमा और तारों से दोस्ती की. समय की यात्रा को नापने के लिए उसने अकल दौडाई, साथ ही मौसम, महिनों और वर्षों को पढने की कोशिश की. पहले सूर्य की परछाई से दिनों को दो भागों में बांट कर समय को पढने की पहल की. फ़िर 3500 ईसा पूर्व दिन को दोपहर व शाम से नापा जाने लगा. इसमें सूर्यचक्र घडियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 100 से 500 ईसवीं तक पानी की घडियों का विकास हुआ, जो कुछ हद तक समय को ठीक –ठीक पढने में सक्षम थीं. 1088 ईसवीं में “क्लाक टावर” घडियां देखी गईं, जो पानी की घडी और मशीनरी का मिला जुला रुप थी, पर अभी भी समय को सही-सही पढना बाकी था. जैसे-जैसे विकास होता गया मनुष्य भी मौसम, साल ,महीने, दिन, और समय के एक-एक पल को अलग करता गया. समय को नियंत्रित करने की इसी चाहत ने घडी के आविष्कार को जन्म दिया. 16 वीं शताब्दी से पहले घडियों को एक से दूसरी जगह ले जाना समस्या थी,क्योंकि वे बहुत भारी होती थीं. कहा जाता है कि पहली जेब घडी ( पाकेट वाच) 1510 ईसवीं के आसपास बनाई गई थी, जो ड्रम की तरह थी. उसके बाद 1448 में जर्मन और फ़्रेंच मूल की घडियों के बारे में पता चलता है. वहीं स्विस और अंग्रेज निर्माताओं की घडियों के बारे में 1575 से पहले तक कोई जिक्र नहीं है. यह समय नए-नए परिवर्तन और विकास का था, लेकिन इस समय तक घडी सिर्फ़ एक कांटॆ की होती थी और घंटॆ बताती थी. स्पाइरल फ़ीट मेन स्प्रिंग का प्रयोग इसी दौर में शुरु हुआ, लेकिन इसमे एक परेशानी थी. स्पाइरल स्प्रिंग की मदद से घडी नियमित नहीं चल पा रही थी. अंततः एक जर्मन आविष्कारक स्टेकफ़्रीड ने इस परेशानी पर काबू पा लिया. 16 वीं सदी के अंत तक अंतरिक्ष आंकडॆ और तारीखें भी घडियों मे बताए जाने लगे, लेकिन घडी की गुणवत्ता अच्छी नहीं थी ,फ़िर भी नया दौर शुरु हो गया था. घडी का उपयोग कब कैसे और किस के द्वारा किया गया,इसकी जानकारी लेते चलें. 500-1300 ई.पू. –पहली बात मिस्त्र में सूर्य घडी का उपयोग किया गया. 400 ई.पू. ग्रीक के लोग समय का पता पानी की घडी से लगाते थे. 980 ई.पू. महान राजा एल्फ़्रेड जलती हुई मोमबत्ती से समय का निर्धारण करते थे 1583 ईसवीं गैलीलियो ने महसूस किया कि पेंडुलम के हिलने की आवृत्ति उसकी लंबाई पर निर्भर करती है. 1657 ईसवीं क्रिस्टिएन हाइगंस ने पहली पेन्डुलम घडी बनाई. 1838 ईसवीं लुइस आडीमार्स ने पेंचदार घडी और उसकी यांत्रिकी की खोज की. 1868 ईसवीं पैटेक फ़िलिपी ने पहली रिस्टवच का आविष्कार किया. 1888 ईसवीं कार्टियर ने पहली लेडीज रिस्टवाच बनाई. 1902 में पहली ओमेगा रिस्टवाच बनी. इस दौरान जर्मनी में करीब 93000 हजार घडियां बिकी 1914 में पहली अलार्म रिस्टवाच एटरना द्वारा अविष्कार की गई. 1923 में पहली आटोमेटिक रिस्टवाच जान हार्डवुड द्वारा अविष्कार की गई.
1925 में पैटेक फ़िलिपी ने पहली ऎसी रिस्टवाच बनाई,जिसमें कैलेंडर था. 1927 में पहली वाटर रैसिसटैंट घडी का निर्माण रोलैक्स ओएस्टर ने किया.
1930 में महिलाओं के लिए सबसे छोटे आकार की घडियां बनाई. 1945 में रोलेक्स डेट ने ऎसी पहली घडी बनाई, जिसमें तारीख भी थी. 1946 में आडीमार्स पिग्वेट ने दुनिया की सबसे पतली घडी बनाई. 1953 में लिप्स ने पहली बार बैटरी से चलने वाली घडी का निर्माण किया. 1957 में हैमिल्टन ने पहली बार इलेक्ट्रानिक घडी का निर्माण किया. (दुनिया की सबसे पुरानी और अभी भी समय बताने वली घडी इंग्लैंड में है. ऎसा माना जाता है कि यह घडी 1386 या उससे भी पहले बनाई गई थी. यह घडी लोहे की बनी हुई है. शुरुआत में यह वर्ज ऎस्केपमैंट और फ़ालियट बैलेंस से चलाई जाती थी, काफ़ी समय बाद इसमें पेंडुलम का इस्तेमाल किया गया. इस घडी में कांटॆ नहीं है, यह सिर्फ़ हर घंटॆ में घटां बजा देती है.)