निरन्तर होते रहते हैं परिवर्तन पृथ्वी पर
पृथ्वी पर निरन्तर परिवर्तन होते रहते हैं. कब भूकंप आ जाए और कब महाप्रलय आ जाए, इस बात पर, कोई भी निश्चित तिथि नहीं बता पाया है. हाँ इस बात को लेकर भविष्यवाणी जरुर की जा सकती है. अनुमान लगाया जा सकता है. ऎसे कई परिवर्तन भूतकाल में भी हुए हैं और भविष्य में भी इनके होने की सम्भावनाएँ है. इन परिवर्तनों के उपरान्त भी प्राणी कैसे विकसित हो गए, यह आश्चर्य की बात है.
कहा जाता है कि आदिम मानव गुफ़ाओं मे रहता था, पर अब पर्वतीय प्रदेशों में ऎसे भव्य भवन ढूँढ निकाले गए हैं, जो प्राकृतिक अनगढ़ नहीं है, वरन मनुष्यों द्वारा उच्चस्तरीय कला-कौशल के साथ बनाए गए हैं.
पृथ्वी की, समुद्री द्वीपों की खोज का श्रेय अमुक मनुष्यों को दिए जाते हैं. पर प्रश्न यह उठता है कि उसने इतनी जल्दी इतनी सफ़लतापूर्वक वे स्थान कैसे ढूँढ निकाले? इसका समाधान उन मानचित्रों से मिला है जो अतीव पुरातन हैं और पृथ्वी एवं समुद्र की सही स्थिति के विवरण बताने की स्थिति में उपलब्ध हुए हैं. नवीन शोधकर्त्ताओं ने संभवतः इन्हीं मानचित्रों की सहायता ली और खोज का काम शीघ्रतापूर्वक समग्र रूप से सम्पन्न किया.
सभ्यताओं का इतिहास इतना नवीन नहीं है जितना कि पाठ्य-पुस्तकों में पढ़ाया जाता है. वरन वास्तविकता तो यह है कि अनुमानित काल की अपेक्षा कहीं पहले ऎसी सभ्यताओं का विकास विद्यमान था, आज की वैज्ञानिक प्रगति से किसी भी प्रकार कम महत्त्व की नहीं माना जा सकता.
सन 1900 में काईथेरा टापू के पास समुद्र में जब गोताखोरों ने स्पन्ज ढूँढने के लिए डुबकी लगायी, तो उन्हें एक ध्वस्त जहाज का मलवा मिला. 180 फ़ुट नीचे समुद्र तल पर इस मलवे में जब खोजबीन की तो विभिन्न प्रकार के धात्विक मूर्तियों और बर्तनों के अतिरिक्त उन्हें किसी यन्त्र का एक भाग भी मिला. यह यन्त्र का गियर वाला भाग था, जिसमें प्रयुक्त तकनीक अत्यन्त जटिल थी. सूक्ष्म निरीक्षण में यह किसी अत्यन्त परिष्कृत यन्त्र का हिस्सा मालूम पड़ा. सम्भवतः यह किसी खगोलीय कैलेण्डर का भाग हो, क्योंकि इसमें चन्द्रमा और ग्रह-मण्डलों की स्थितियाँ दिखायी गई हैं.
शोधकर्ताओ ने इस यन्त्र को 100 ई.पू. के हेलेनिस्टिक युग का बताया, किन्तु उनका कहना है कि इस युग में टेक्नोलाजी का सर्वथा अभाव था. जब उन गियर यन्त्र की शुद्धता की परीक्षा की गई, तो वह कसौटी पर खरा उतरा. उसमें त्रुटि एक मिमी के 10 वें भाग से अधिक न थी. यह त्रुटि कोई बहुत अधिक नहीं मानी जा सकती. जब उस काल के लोग टेक्नोलाजी से बिल्कुल भी अनभिज्ञ थे, तो इतना परिष्कृत यन्त्र उन्हें कहाँ से प्राप्त हुआ ?. वैज्ञानिकों एवं विशेषज्ञों का कहना है कि यह यन्त्र सम्भव है, उन्हें किसी अन्तरिक्षीय अतिविकसित सभ्यता से प्राप्त हुआ हो.
सन 1929 में टर्किश नेशनल म्यूजियम के डायरेक्टर बी.हैलिल एडेम को एक अति प्राचीन नक्शे के कुछ टुकड़े प्राप्त हुए. नक्शा रैडसी एवं परसियन गल्फ़ के फ़्लीट एडमीरल पीरीरेस द्वारा विनिर्मित है, उक्त एडमिरल ने नक्शे को सन 1513 में बनाया, म्यूजियम से प्राप्त टुकड़े उसके विश्व नक्शे के ही भाग हैं. सन 1940 में उसकी अनेक प्रतियाँ तैयार करवाई गईं. सन 1954 में यह नक्शा विख्यात अमरीकी मानचित्रकार अरंलिंग्टन एच. मैलरी के हाथ लगा. मैलरी प्राचीन नक्शे के विशेषज्ञ माने जाते हैं, इन्होंने बतलाया कि पीरीरेस के नक्शे में महाद्वीपों एवं दक्षिणी ध्रुव को स्पष्ट दिखाया गया है. उनके अनुसार सन 1513 तक दक्षिणी ध्रुव की खोज ही नहीं हो पायी थी. उसके मानचित्र में अमरीका का उल्लेख है, जिसके बारे में तत्कालीन लोगों को कोई जानकारी नहीं थी. जब दो स्थानों के बीच की दूरी जानने के लिए आधुनिक मानचित्र एवं पीरीरेस के नक्शे का तुलनात्मक अध्ययन किया गया, तो यह जानकर अचंभा हुआ कि पुराने नक्शे में भी विभिन्न स्थानॊं के बीच की दूरियों को बिल्कुल ही सही-सही आंका गया है. इसके अतिरिक्त मानचित्र में विभिन्न स्थानों का सही-सही निरूपण भी नक्शे की विलक्षणता है. विशेषज्ञों का कहना है इतना सही मानचित्र किसी अति विकसित टेक्नोलाजी के बिना संभव नहीं है. आधुनिक युग में ऎसे मानचित्र बनाने के लिए वायुयानों एवं जलयानों के माध्यम से इन्फ़्रारेट फ़ोटॊग्राफ़ी एवं प्रतिध्वनि का सहारा लिया जाता है. दक्षिणी ध्रुव के बारे में तो सन 1949 तक विज्ञानिकों को सही जानकारी नहीं थी. फ़िर इतना सही मानचित्र 15 वीं सदी में कैसे बना लिया गया, जबकि नक्शे में उल्लिखित अधिकांश स्थानों के बारे में तात्कालीन लोगों को कोई जानकारी नहीं थी.
डेनिकेन का कहना है- नक्शा देवमानवों द्वारा कक्षा में घूमते स्पेश-स्टेशन से बनाया गया और इसे पृथ्वी-वासियों को भेंट स्वरूप प्रदान किया.
सन 1898 में सक्कारा के निकट एक कब्र में वायुयान का एक माडल प्राप्त हुआ. वायुयान का नम्बर 6347 उसमें स्पष्ट अंकित है. यह माडल लकड़ी का बना है, वजन 39.72 ग्राम पाया गया. दोनो डैनों का फ़ैलाव 18 सेमी. नाक 3.2 सेमी और उसकी सम्पूर्ण लम्बाई 14 सेमी. माडल का आकार-प्रकार हवाई उड़ान के अनुकूल है. विशेषज्ञों के अनुसार इसके डैने, पूँछ एवं शरीर की लम्बाई का अनुपात एक आदर्श वायुयान का है. इस पर मिस्त्री भाषा में “पा-डायमेन” अंकित है, जिसका अर्थ है “ अमन का उपहार”. यह “अमन” कौन हो सकता है ?. डेनिकेन के अनुसार अमन और कोई नहीं अन्तरिक्षवासी देवमानव ही हैं. विभिन्न स्थानॊं में इस प्रकार के अनेक वायुयान माडल पाये गए हैं.ये सभी “हाल आफ़ इजिप्टियन म्यूजियम फ़ार एन्टिक्वीटिज” में सुरक्षित हैं. वर्तमान समय में यहाँ इस प्रकार के 14 माडल उपलब्ध हैं.
ओहियो के कोसोक्टन नामन स्थान के समीप उत्खनन करते समय सन 1837 में बौनों का कब्रिस्तान मिला. नर-कंकालों की लम्बाई 3 से साढे चार फ़ुट लम्बी थी और सभी अलग-अलग लकड़ी के ताबूतों में बंद करके दफ़नाए गए थे. बौनी सभ्यता से सम्बन्धित कोई शिल्प उपलब्ध न होने के कारण उनकी अवधि निश्चित नहीं हो सकी, लेकिन कब्रों की संख्या देखते हुए उस सभ्यता के कार्य काल और सम्भावित शहर की सम्भावना सुनिश्चित है.
इसी तरह 1891 में ओहियो के एक बहुत बडॆ कब्रिस्तान टीले की खुदाई करने पर एक पुरुष का स्थूलकाय भारी-भरकम शरीर ताँबे के चद्दर में लिपटा हुआ पाया गया. सिर पर ताँबे के टोपी, हाथ-पैर और पेट-पीठ सभी ताँबे से ढके हुए थे. मुँह के अन्दर मोतियाँ ठुसी हुई थीं और गले में मोतियों तथा भालू के दाँतों से बना हार पहनाया गया था. इस कब्र के समीप ही एक महिला का अस्थि पंजर दफ़नाया हुआ मिला. ये सभी कंकाल 500 फ़ीट लम्बे, 200 फ़ीट चौड़े और 28 फ़ीट ऊँचे टिले की 14 फ़ीट गहराई में दफ़न हुए मिले थे.
कार्सन सिटी, नेवादा के सन्निकट प्रांतीय जेल के आहाते में उत्खनन के समय सन 1882 में सैण्ड स्टोन की एक पर्त में जूते पहने हुए मनुष्य के पद चिन्ह प्राप्त हुए थे. जिसकी लम्बाई 18-20 इंच और चौड़ाई 8 इंच थी. इसके साथ ही उस ट्रैक में अनेक अन्य पशुओं जैसे-हाथी,घोड़े, हिरण, भेड़ियों के पद चिन्ह मिले थे. इन पद-चिन्हों तथा शैलाभों की उम्र 2000000 से 3000000 वर्ष आंकी गई थी.
नेवादा के पर्शिंग काउन्टी स्थित फ़िशर कैनन क्षेत्र में सन 1927 में अल्फ़्रैड ई.नैप को ट्राइऎसिक लाइमस्टोन में धंसे चमढ़े के जूतों के चिन्ह अंकित मिले. प्रिन्टो के फ़ोटोमाइक्रो ग्राफ़ लेने पर ज्ञात हुआ कि जूतों के चमडॆ पतले धागों से, हाथों द्वारा टाँके गए थे. इस विधि को सन 1927 में जूते बनाने वाले अपना रहे थे. ट्राइऎसिक लाइम स्टोन की उम्र 180000000 से 225000000 वर्ष आंकी गई.
सन 1853 में अमेरिका के एक खान उत्खनन में शिलाखण्ड में चारों तरफ़ से बन्द एक हार्नी लिजार्ड छिपकली निकली. पूर्ण विवरण ज्ञात होने पर उसे वाशिंगटन स्थित स्मिथसोनिएन संस्थान को भेज दिया गया. पत्थर को तोड़कर बाहर निकाले जाने के बाद वह छिपकली दो दिन बाद मर गई.
सन 1865 में इंग्लैण्ड के दुरहम प्रान्त के हार्टलेपूल वाटरवर्क्स की खुदाई पर पच्चीस फ़ीट गहराई में मैग्नीसिया लाइम स्टोन के पत्थर हटाए जाने पर एक जीवित टॊड टर्र-टर्र करता हुआ बाहर निकला,जिसकी आँखें चमक रही थी और मुँह बंद था. सुप्रसिद्ध भू-विज्ञानी राबर्ट टेलर ने बताया कि टॊड की उम्र 6000 वर्ष की थी.
इसी तरह 1852 में इंग्लैण्ड के डर्वी प्रान्त में स्थित पासविक स्थित खान में खुदाई करते समय तथा एक पत्थर के फ़ोड़े जाने पर एक छः इंच व्यास वाला मेंढक बैठा हुआ मिला. जैसे ही उसका संपर्क बाह्य वातावरण से हुआ वह मर गया. इसी तरह 1935 में लन्दन में रेल्वे लाइन बिछाते समय मजदूरों ने पत्थर के एक खण्ड को तोड़कर एक जीवित मेंढक निकाला था. प्रारंभ में उसका रंग चमकीला भूरा था, लेकिन वातावरण के संपर्क में आते ही उसका बदन काला पड़ गया. वह केवल चार दिन जीवित रहा.
सन 1786-88 के मध्य फ़्रांस के ऎक्सिन प्राविन्स में शहर के समीप उत्खनन कार्य चल रहा था.. खान से पत्थर निकाल कर जस्टिस पैलेस का पुनर्निर्माण कराना था. पत्त्थरों की चट्टानें बालू और मिट्टी की तहों से अलग-अलग परतों में जमी थीं, जिन्हें एक के बाद दूसरी पर्त की खुदाई करके निकाला जा रहा था. चालीस फ़ीट की गहराई में से पत्थरों की ग्यारहवीं पर्त निकाली जा चुकी थी. बालू हटाकर पत्थरों को तोड़ा गया. उसके नीचे पृथ्वी के गर्भ में समाई हुई 300000000 वर्ष पुरानी मानवी सभ्यता के दर्शन हुए. पत्थरों के खम्बे, अर्द्धनिर्मित पत्थर, सिक्के, लकडी के बने हतौड़े, आठ फ़ीट लम्बा और एक इंच मोटा लकड़ी का एक सुन्दर बोर्ड तथा अन्य कई प्रकार के वुडन टूल्स को देखकर सभी हतप्रभ हो गए. उनमे से अधिकांश चीजें एवं डिजायने फ़्रांस में 18 वीं सदी में प्रचलित थीं
उपरोक्त तथ्यों को देखते हुए हमें इस निष्कर्ष पर पहुँचना होगा कि मानव सभ्यता अति पुरातन है और वह जीवाणु से नहीं ब्रह्माण्ड के अन्यान्य लोकों में निवास करने वाले देव मानवों से अनुदान में मिली थीं.
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