क्या धरती से परे भी जीवन विद्धमान है
क्या धरती से परे भी जीवन विद्धमान है ? यह उलझा-उलझा सा प्रश्न, हमें आज से नहीं बल्कि लंबे अरसे से उलझाता रहा है. सहसा विश्वास नहीं होता कि धरती के अलावा अन्य ग्रहों पर भी जीवन होगा ही. लेकिन वैदिक ग्रंथॊं को पढते हुए हमें कई विचित्र बातें लिखी मिलती है. मसलन- विद्धया की देवी सरस्वती का वाहन मोर है, वहीं भगवान विष्णु का वाहन गरुड, गणेशजी का चूहा, देवों के देव महादेव का वाहन नंदी(बैल), देवी दुर्गा का सिंह, आदि-आदि. कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि प्रत्येक देवी-देवता का वाहन, कोई न कोई पशु अथवा पक्षी बतलाया गया है. उनके समय-समय पर धरती पर अवरतण होने के भी संकेत मिलते हैं. वहीं सुमेरु पर्वत, विन्ध्याचल, हिमालय की घाटियों में देवयानो के उतरने के उल्लेख भी मिलते हैं. शिव पुराण में एक उल्लेख मिलता है कि सती के पिता दक्षप्रजापति ने एक यज्ञ का आयोजन किया था, उन्होंने किसी बात में रुष्ट होकर अपने जामाता शिवजी को छोडकर, सभी देवी-देवताओं को आंमत्रण भिजवाया था. यज्ञ में भाग लेने के लिए सभी देवता अपने-अपने वाहनों पर सवार होकर आकाशमार्ग से यज्ञशाला की तरफ़ जा रहे थे. उन्हें आकाश-मार्ग से जाते हुए देख सती ने शिव से इस संबंध में जानकारी लेनी चाही थी कि ये देवता कहाँ जा रहे हैं ? तब आशुतोष ने सती को बतलाया था कि तुम्हारे पिता ने एक यज्ञ का आयोजन किया है, उसमें भाग लेने के लिए सारे देव वहीं जा रहे हैं. आगे क्या होता है इसे आप सभी भलि-भांति जानते ही हैं.
ऋग्वेद में एक ऎसे रथ का वर्णण है, जो पृथ्वी, जल और आकाश तीनों में चलता था. अश्विनी कुमारों का “चित्रक रथ” बिना अश्व के अंतरिक्ष में भ्रमण करता था. महर्षि भारद्वाज ने “यंत्र सर्वस्व” में बिजली, वाष्प, सौर ऊर्जा, जल, वायु-तेल,और चुम्बक से चलने वाले विमानों का वर्णण किया है. रामायण में “पुष्पक विमान”, गरुड विमान,,”यंत्र कल्पतरु” में व्योम विमान, महाभारत में शाल्व के विमान का उल्लेख मिलता है. प्राचीन चीनी लोक-कथाओं में भी आकाश गमन करने वाले विमानों का वर्णण मिलता है. बाइबिल में कहा गया है कि उत्तर दिशा में एक प्रकाश का बवंडर उत्पन्न हुआ जिसमें से एक विमान प्रकट हुआ. उसके अन्दर चार सजीव प्राणी थे,जिनकी आकृति मनुष्यों जैसी थी.
यूनानी कथाओं में आकाश गमन करने वाले देवी-देवताओं का वर्णण मिलता है. मिस्त्र और बेबीलोन की प्राचीन सभ्यता में भी ऎसे अनेक प्रमाण मिलते हैं, जिनसे अन्तर्ग्रही विमानों के आवागमन का वर्णण सिद्ध होता है. स्विट्जर्लैण्ड के सुप्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता एरिकफ़्राम के अनुसार प्रागैतिहासिक काल में बाह्य अन्तरिक्ष से यात्री यानों में बैठकर आते थे. इस कथन की पुष्टि मूर्धन्य वैज्ञानिक डा.पीटर कोलोसिमो ने भी की है. उनका कहना है कि कभी-कभी तो अन्तरिक्ष यात्री धरतीवासियों से विवाह सम्बन्ध बनाकर घर बसा लेते थे और गृहस्थी का सुख भोगकर लम्बे समय बाद अन्तरिक्ष में लौट जाते थे. इसी तरह स्वर्ग में रह रहीं अप्सराओं- उर्वशी और मेनका का भी धरती पर आना और विवाह रचा कर घर-गृहस्थी बसाने का उल्लेख मिलता है.
विश्व के अनेक भागों-जैसे उत्तरी अमेरिका, पेरु तथा चिली आदि की गुफ़ाओं में ऎसे विस्मयकारी अनेक चित्र मिले हैं, जिनसे प्रकट होता है कि पुरातन काल में इस धरती पर दूर ग्रहों के उन्नत सभ्यता वाले लोग आते-जाते रहे हैं. इसकी पुष्टि आस्ट्रेलिया में सिडनी के पास गुफ़ा में शिला पर अंकित सुसज्जित स्पेस-शूट पहने उस अंतरिक्ष यात्री से भी होती है जिसके सिर पर पृथ्वी से अन्य लोकों को संकेत सूत्र भेजने वाले एन्टिनायुक्त उपकरण बने हैं.
सन 1968 में चिली के एक अन्य रहस्यमय पठार का अन्वेषण किया गया. “एन्ला डिल्लोडॊ” नामक दो मील लंबे एवं 850 गज चौडॆ इस पठार पर सर्वत्र 12 से 16 फ़ूट ऊँचे और 20 से 30 फ़ुट लंबे शिलाखण्ड बिछे हुए हैं. एक अन्य गवेषण में “नाजका” शहर से एक सौ मील दूरी पर विशालकाय पत्थरों पर पशु-पक्षियों के चित्र-विचित्र रेखांकन मिले हैं. इनमें से एक चित्र 300 गज लंबा है.
लीमा के दक्षिण में एक पर्वत शृंखला पर 820 फ़ुट ऊँचा प्रस्तर का एक विशालकाय त्रिशूल खडा है, जिसे जमीन पर 12 मील की दूरी से एवं अंतरिक्ष में ऊत्तुंग उँचाई से देखा जा सकता है. इसी तरह उत्तर चिली के तारापाकर मरुस्थल के बगल में स्थित एक पहाडी पर 330 फ़ुट ऊँची एक मानव मूर्ति खडी है. इस प्रतिमा का आकार आयताकार है किन्तु उसका सिर वर्गाकार है, जिसमें समान लम्बाई के बारह एण्टिना लगे हैं. मूर्ति के कटि प्रदेश में सुपरसोनिक फ़ाइटर की भांति अनेक त्रिभुजाकार पंख लगे हैं.
पेरु के एक पार्वत्य प्रदेश में “नाजका” नामक एक अति प्राचीन किन्तु सुविकसित नगर के ध्वंसावशेष पाये गए हैं. इस क्षेत्र का निरीक्षण करने पर ज्यामितीय ढंग से विनिर्मित एवं एक-दूसरे के समानान्तर अनेकानेक हवाई पट्टियाँ पायी गई हैं. ये पट्टियाँ 40 मील लम्बी तथा एक मील चौडी सपाट-समतल भूमि पर बडॆ ही व्यवस्थित क्रम से बनी हुए हैं. जिस तरह इन पट्टियों का आकस्मिक शुभारम्भ होता है, ठीक उसी तरह एकाएक अंत भी होता है. अतः इन्हें सामान्य आवागमन के मार्ग अथवा सडक नहीं कहा जा सकता.
उपरोक्त तथ्यों का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों की मान्यता है कि इन पट्टियों का उपयोग प्राच्यकाल में हवाई पट्टियों के रुप में किया जाता था. इन स्थलों का निरीक्षण करने वाले प्रख्यात विद्वान “ अरिक बान डेनिकेन” का कहना है कि- “ये स्थान अवश्य ही अंतरिक्ष से आने वाले वायुयानों के अवतरण क्षेत्र रहे होंगे जिनका उपयोग अन्य ग्रहवासी अपने यानों को उतारने के लिए करते रहे होंगे. विशालकाय त्रिशूल, मानव प्रतिमा एवं पशु-पक्षियों के चित्र हवाई पट्टी के संकेत के रुप में प्रयुक्त होते रहे होंगे, जिन्हें देखते ही विमान चालकों को हवाई पट्टियों का सही-सही अनुमान प्राप्त होता होगा.
वैज्ञानिकों ने अन्य कई ऎसे प्रामाणिक तथ्य ढूँढ निकाले हैं जिनसे स्पष्ट होता है कि कभी धरती पर अन्य ग्रहों से लोग आते थे. डा. पीटर कोलोसिमो ने तिब्बत के मठों में सुरक्षित रखे हुए ऎसे शवों का वर्णन किया है जो अन्तरिक्ष शूट पहने हुए हैं. पीटर के अनुसार ये शव उन लोकान्तरवासियों के हैं जिनके अन्तरिक्ष यान में खराबी आ गई थी और वे वापस अपने लोक को नहीं लौट सके. उन्होंने मय सभ्यता कालीन एक खण्डहर में एक ऎसी समाधि का भी उल्लेख किया है, जो किसी यान आकृति की है और उसके अन्दर अन्तरिक्ष यात्री बैठा है.
प्रसिद्ध पुस्तक “चैरियट्स आफ़ गाड्स” में डेनिकेन ने एक ऎसे नक्शे का वर्णन किया है जिसमें भूमध्य सागर, मृत सागर, उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका के साथ-साथ अन्टार्टिका के कुछ प्रांत स्पष्ट रुप से दिखाये हैं. यह नक्शा टोपकाशी पैलेस में मिला है. विशेषज्ञॊं का कहना है कि यह नक्शा हजारों वर्ष पुराना है, जो किसी अन्य ग्रहवासियों द्वारा वायुयान से खींचा गया है.
वैज्ञानिक निरन्तर इसी दिशा में प्रयत्नशील हैं कि अन्य ग्रहों में जीवन की खोज की जाए. अब तक जो भी शोध, अनुसंधान इस दिशा में हुए हैं, उनसे स्पष्ट संकेत मिलता है कि आकाशागंगा में ऎसे अनेक ग्रह होने चाहिए, जिनमें विकसित सभ्यता का निवास हो सकता है. मूर्धन्य वैज्ञानिक डा. बिली के अनुसार हमारी आकाशगंगा में ऎसे ग्रहों की संख्या बीस हजार होनी चाहिए जिनमें पृथ्वी जैसे बुद्धिमान प्राणी निवास करते हैं.
जो उल्काएँ पृथ्वी पर आती हैं, उनके धूलकणॊं का अन्वेषण करने से भी प्रतीत होता है कि सौर-मण्डलीय धूलि में भी जीवन-तत्व मौजूद हैं, भले ही वह अविकसित रुप से ही क्यों न हो. उल्काओं में जीवित एवं मृतक बैक्टीरिया तथा दूसरे तरह के जीवन चिन्ह पाये जाते हैं. इस आधार पर अनुमान लगाया जाना असंगत भी नहीं है कि पृथ्वी पर पाया जाने वाला जीवन बहुत करके अन्तरिक्ष से उतरा है और इनसे सम्बन्ध स्थापित करने के लिए ही अंतरिक्षवासी यहाँ आते रहे हैं.
उडनतश्तरियों का अन्य दृष्य-अदृष्य माध्यमों से यह आवागमन अभी भी किसी न किसी रुप में अबाधगति से चल भी रहा हो, तो इसमें आश्चर्य करने जैसी बात नहीं. सौर-मण्डल के ग्रह-उपग्रह की खोज में यों तो मनुष्य जैसे विकसित प्राणियों का पता नहीं चला है, तो भी यह नहीं माना जाना चाहिए कि उनमें जीवन का सर्वथा अभाव है. फ़िर भी यह हो सकता है कि सौर-मण्डल से बाहर के जीवधारी प्रकृति नियमों से भिन्न चेतना नियमों के आधार पर पृथ्वी के साथ भूतकाल में अधिक सम्बन्ध बनाये रहे हों और अब यहाँ की स्थिति काम चलाऊ देखकर अन्य किसी उपयुक्त ग्रह को विकसित करने लग गए हों और यदा-कदा यहाँ की खोज खबर लेते रहते हों.