हँसी-खुशी की अभिव्यक्ति पशु-पक्षी और कीड़ॊं में भी होती है.
हँसी-खुशी की अभिव्यक्ति मनुष्यों के हिस्से में ही नहीं आई है. उसका आनन्द पशु-पक्षी और कीड़े भी उठाते हैं. सच तो यह है कि आनन्दानुभूति को व्यक्त करने वाले, भाव भरे नृत्य अभिनय मनुष्य ने अन्य जीवों से ही सीखे हैं. इस प्रकार के भावों में इन प्राणियों के नाम उल्लेखित किए जा सकते हैं. मयूर-नृत्य, भ्रमन गीत, कोकिल तान, झींगुर लय आदि की चर्चा कला के क्षेत्रों में होती रहती है और उनका अनुसरण भी किया जाता है.
१.- मेघ-दर्शन से विभोर मयूर-नृत्य प्रसिद्ध है और नृत्य कला का एक अंग भी है.
२. “मेफ़्लाई” नामक मक्खी का नृत्य-संगीत विश्व प्रसिद्ध है. युवा मेफ़्लाई युवती मेफ़्लाई को तरह-तरह की आकर्षक मुद्राओं में नृत्य दिखाता है.
३. मादा मछली डैने फ़ैलाकर नाचती है, जो परिधान का छोर पकड़कर तैरने की-सी मुद्रा में किए जाने वाले नृत्यों का प्रेरणा-स्त्रोत है.
४. बिच्छू आकर्षक बाल-डांस करते हैं.
५. मकड़े का नृत्य भी तालमय होता है. आठ-दस मकड़े मिलकर ट्विस्ट भी करते हैं
६. बरसात में जंगली बतखें नर-मादा मिलकर दिन भर नाचती है और दिन ढले घर लौट आती हैं.
७. दक्षिण अफ़्रीका की “डान्सर” मैना संगीत की सुमधुर धुनों के साथ सामूहिक नृत्य करती हैं. न्यूजीलैण्ड की “बर्ड आफ़ पैराडाइज” भी नृत्य-निपुण होती हैं और तो और युवा घोंघा भी गुनगुनाहट के साथ विभोरावस्था में नृत्य करता है.
८. सारस प्रण्य-याचना के समय परों और पैरों को एक निश्चित ताल के साथ पटकते हुए, गोलाकार घूमते हैं. उनका स्वर भी ताल के अनुरूप होता है. जियरे गणतंत्र के वत्सुई समाज का नाम ही “सम्मानित सारसों” का नृत्य है.
९. मधुमक्खियों के नाच तो अत्यधिक अर्थगम्य होते हैं. नृत्य ही उनकी मुख्य भाषा है. विचार-संप्रेषण का यही माध्यम उनके पास सर्वाधिक विकसित है.
१०.मधुमक्खी की प्रत्येक नृत्य-मुद्रा का विशिष्ट अर्थ होता है. भोजन-भण्डार पास ही मिल जाए, तो छत्ते के ऊपर घुमरी जैसा नाचेगी. यदि भण्डार अधिक दूर हो तो सीधे उड़ती हुए ऊपर जाएगी और फ़िर जिस दिशा में भोजन हो, उधर उड़ेगी. ये दूरी को भी नृत्य द्वारा संकेतित करती हैं. उनके संकेत इतने सही होते हैं कि मधुमक्खियाँ विर्दिष्ट दिशा में ही उड़ती हैं.