इस धरती पर अब तक जितने भी युद्ध लड़े गए, द्वापर-काल में लड़े गए भीषणतम युद्ध ”महाभारत” के आगे बौने ही साबित होंगे. इस युद्ध की विभीषिका का अंदाज “महाभारत” को पढ़कर समझा जा सकता है. मात्र एक छॊटी से घटना के कारण इतना बड़ा युद्ध लड़ा गया था. उस छॊटी सी घटना की पृष्ठभूमि कुछ इस तरह बतलायी गई है.
महाराज युधिष्ठर ने अपने लिए एक विशाल महल का निर्माण करवाया था. उसे देखने के लिए उन्होंने सभी को आमंत्रित किया गया था. अपने सभासदों-मित्रो और शुभचिंतकों के साथ दुर्योधन भी उस महल को देखने पहुँचा. महल की बनावट और कारीगरी देखकर वह ठगा सा रह गया. अन्दर प्रवेश करते समय उसे किसी सरोवर के होने का भ्रम उत्पन्न हुआ. कपड़े कहीं भींग न जाए, यह सोचकर उसने घुटनों तक अपनी धोती को ऊपर उठा लिया, जबकि वहाँ कोई सरोवर था ही नहीं. कुछ आगे बढ़ते हुए वह एक सरोवर में जा गिरा, जिससे उसके पूरे कपड़े भींग गए. दरअसल सपाट सी सतह दिखाई देने वाले स्थान पर पानी से भरा एक विशाल टैक था, और जल का भ्रम बतलाने वाली जगह सपाट थी. महल की अटारी पर अपनी सखी-सहेलियों के साथ खड़ी द्रौपदी ने यह सब होते हुए देखा और खिलखिलाकर हंस पड़ी. और उसने मजाक-मजाक में कह दिया कि अंधे का पुत्र अंधा ही होता है. द्रौपदी के इस कथन से दुर्योधन को बड़ा मानसिक क्लेश हुआ और उसने उसी समय द्रौपदी को सबक सिखाने की ठान ली थी. इस छॊटी सी घटना ने कितना विकराल रूप ले लिया था, जिसे हम सब जानते हैं. इसीलिए हमारे पूर्वज हमें यह कहकर सीख देते आए हैं कि “शब्द संभारे बोलिए, शब्द के हाथ न पाँव./एक शब्द करे औषधी, एक शब्द करे घाव.”
महाभारत में घटी इस घटना को हमने युद्ध की परिणति मान लिया, लेकिन उस रहस्य से पर्दा उठाने की कोशिश नहीं कि आखिर सपाट सी दीखने वाली जगह पर पानी कैसे भरा हुआ था और पानी का भ्रम बनाने वाली जगह सपाट क्यों थी.?
उपरोक्त घटना पर यदि गंभीरता से विचार करें और सोंचे कि हमारी दृष्टि कभी-कभी इस तरह के भ्रम में क्यों पड़ जाती है? इसका उत्तर अब तक कोई खोज नहीं पाया है. इस घटना से परे और भी अनेक रहस्यमय घटनाएं विश्व में घटी हैं, जिनके बारे में केवल अनुमान भर लगाया गया है, लेकिन रहस्य से परदा उठना अब भी बाकी है.
इसी घटना से मिलती-जुलती घटना का उल्लेख कई वर्ष पूर्व प्रसिद्ध पत्रिका “ द टाइम्स” में प्रकाशित हुआ था. सम्पादक के नाम एक ब्रिटिश नागरिक हेनरी आर.बेक ने अपनी उस अनुभूति की चर्चा की थी, जो उसे कनाडा यात्रा के दौरान बैंकुवर के निकटवर्ती स्थान में हुई थी. वे लिखते हैं कि उस स्थल के भ्रमण के दौरान एक जगह गाड़ी खड़ी कर दी. गाड़ी जहाँ पार्क की थी, ठीक वहाँ से चढ़ाई की शुरुआत होती थी. कार में कुल आठ लोग थे. ड्राइवर ने गाड़ी बंद कर दी. इससे पूर्व कि लोग गाड़ी से बाहर निकल पाते, कार बन्द स्थिति में ही तेजी से चढ़ाई चढ़ने लगी. एक यात्री ने जल्दी से छलांग लगायी और थोड़ी दूर पर स्थित नल से पानी भर लाया और कार के सामने उँडॆल दिया कि शायद उससे पहिए फ़िसलने लगे और वह ऊपर न चढ़ पाए, पर इसके उपरान्त जो कुछ भी हुआ, उससे सभी अचम्भे में पड़ गए. पानी स्वयं भी ऊपर चढ़ने लगा. लोगों को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ. उन्होंने बार-बार अपनी आँखें मली, किन्तु दृष्य यथावत बना रहा. इस अलौकिक पहेली को उनमें से कोई सुलझा न सका.
विश्व के कई स्थानों में ऎसी विचित्रता देखी गई है. एक ऎसा ही स्थान कनाडा के न्यू ब्रून्सविक, मोंक्टन नामक स्थल पर “ मेग्नेटिक हिल” है. जनश्रुति के अनुसार इस जगह की विलक्षणता का पता पहली बार 1930 में तब चला, जब एक दूध बेचने वाला गाड़ीवान उक्त पहाड़ी की तलहटी में गाड़ी खड़ी कर ग्राहकों को दूध देने गया. जब वह वापस लौटा तो नजारा देखकर आश्चर्यचकित रह गया. गाड़ी आधी चढ़ाई चढ़ कर दूर जा रुकी थी, जबकि घोड़ा लगभग उसी स्थान पर अब भी चर रहा था, जहाँ वह छोड़ गया था. पहले तो उसने किसी की शरारत समझा, अतः उसने विशेष ध्यान नहीं दिया, पर जब प्रायः प्रतिदिन ऎसा होने लगा, तो उसे चिन्ता हुई. उसने शरारती का पता लगाने का विश्चय किया.
एक दिन उक्त स्थान पर गाड़ी खड़ी करके उसने घोड़ों को खोल दिया और स्वयं एक झाड़ी के पीछे छिप गया. अभी कुछ क्षण बीते ही थे कि हवा चलने लगी और इसी के साथ गाड़ी चढ़ाई पर तेजी से चढ़ने लगी. वह स्तब्ध रह गया. उसने बहुत माथा-पच्ची की. स्थानीय लोगों से भी पूछताछ की लेकिन कोई हल नहीं निकला. अन्ततः उसने उस स्थान को रहस्यमयी मानकर सन्तोष कर लिया.
इन्हीं विलक्षणताओं में क्रोय ब्राई, आयर-स्ट्रेथक्लाइड, स्टाकलैण्ड का दृष्टि-भ्रम. जब कोई मोटर गाड़ी इस रास्ते से होकर गुजरती है, तो उसका चालक बहुत उलझन में पड़ जाता है और गाड़ी को वहाँ से सुरक्षित निकाल ले जाने में मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. इस स्थान पर जब उत्तर की दिशा से कोई मोटर आती है, तो उसके चालक को बड़ी अद्भुत अनुभूति होती है. वह संभ्रम में पड़ जाता है. रोड वहाँ ढलवाँ दिखाई पड़ती है. चालक जब उसकी गति धीमी करता है, तो गाड़ी ढलान में तेजी से लुढ़कने की बजाय धीरे-धीरे रुक जाती है और फ़िर तेजी से पीछे की ओर लुढ़कने लगती है.
इसी प्रकार जब गाड़ी दक्षिण दिशा से आती है, तो चालक रास्ते की चढ़ाई को देखकर गति तीव्र कर लेता है, पर होता यह है कि गाड़ी की जितनी गति बढ़ाई गई थी, उससे भी कहीं तेज रफ़्तार से वह दौड़ने लगती है और चालक विस्मय-विमूढ़ बना रहता है.
कुल मिलाकर इन सब स्थलों में स्थिति महाभारत के “जल में थल और थल में जल” जैसी ही है, जहाँ दुर्योधन को काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. विशेषज्ञ बताते हैं कि जहाँ हमारी आँखें चढाई पर गाड़ी चढ़ती देखती हैं, वस्तुतः वह चढ़ाई न होकर ढलवाँ सड़क होती है, किन्तु किसी कारणवश हमारी इन्द्रियाँ वहाँ चढ़ाई को ढलवाँ और ढलवें को चढ़ाई देखने का अनुभव करने लगती हैं, इसी कारण प्रत्यक्ष और परोक्ष में वह विरोधाभास पैदा होता है. आम जन तो क्या वैज्ञानिक भी इस नैसर्गिक कौतुक की विज्ञानसम्मत व्याख्या कर पाने में विफ़ल रहे हैं. हाँ उन्होंने इस संबंध में तरह-तरह के अनुमान अवश्य लगाए हैं. एक अनुमान के अनुसार, ऎसा उन क्षेत्रों की स्थानीय चुम्बकीयता में विविधता के कारण है. यह भू-चुम्बकीय भिन्नता सम्भवतः हमारी इन्द्रियों को प्रभावित करती है, फ़लस्वरुप उन-उन भागों में हमारी दृष्टि और अनुभूति परिवर्तित हो जाती है. दूसरी सम्भावना के बारे में विशेषज्ञ वहाँ की विशिष्ट टॊपोग्राफ़ी (स्थानाकृति-विज्ञान) को जिम्मेदार ठहराते हैं, किन्तु यह सब सम्भावना मात्र है, यथार्थ रहस्य का उद्घाटन तो तभी हो सकेगा, जब प्रकृति के गर्भ में प्रवेश कर सकने की सामर्थ्य हम पैदा कर लेंगे.
१०३, कावेरी नगर,छिन्दवाड़ा (म.प्र.) 480001 गोवर्धन यादव. 9424356400