अन्तरिक्ष के अविज्ञात जासूस.
इन दिनों असाधारण वस्तुएँ अन्तरिक्ष में उड़ते हुए दिखाई देती हैं. इनके अस्तितव को यूंहि नकारा नहीं जा सकता, परन्तु इनके बारे में इतना अनुमान तो अवश्य ही लगाया जा सकता है कि जो घटना-क्रम सहस्त्राब्दियों से दृष्टिगोचर नहीं हुए, वे अब इन दिनों क्यों बहुलता के साथ प्रकट हो रहे हैं.
आरम्भ में उन्हें उड़नतश्तरी ( यू.एफ़.ओ.) नाम दिया गया था. .गोल चमकदार वस्तु के रूप में आकाश में इन्हें मंडराते हुए देखकर किसी चक्र आकृति का बोध होता था. इसी कारण इन दृष्य पदार्थों को वह नाम दिया गया था. अब अनेकानेक आकृतियाँ देखी गई हैं. इनका पुराना क्रम भी अब नहीं रहा कि प्रकट होकर लुप्त हो जाया करती थी. वे अब लुप्त नहीं होतीं और अपने लक्ष्य के अनुसार काम करती रहती हैं. उनकी आकृति एवं चाल भी ऎसी उलटी-सीधी देखी गई हैं, जिससे उनका पीछा किसी विशाल प्रक्षेपाशास्त्र से नहीं किया जा सकता.. अब ये अनचिन्हीं वस्तुएँ वैज्ञानिकों के लिए गुत्थी बन गई हैं.
अन्य लोकों से आने वाले अन्तरिक्षयान, जिन्हें हम आमतौर पर “उड़नतश्तरी” कहते हैं हमारे मानव रहित शोध राकेटॊं की तरह नहीं होते, वरन उनमें जीवित प्राणी रहते हैं, इस बात के भी प्रमाण मिले हैं..ये प्राणी हमारी धरती की परिस्थितियों का अध्ययन करते हैं और आवश्यक सूचनाएँ अपने लोकों में भेजते रहते हैं. इतना ही नहीं, वे यहाँ के मनुष्यों से भी सम्पर्क स्थापित करते हैं, ताकि उनकी जानकारियों का आधार विस्तृत एवं प्रामाणिक बन सके.
“निकैप” नामक एक उड़नतश्तरी अनुसन्धान संस्था है जो ऎसी अनेक घटनाओं का विवरण प्रकाशित करती है, जिसमें अन्य लोकों के प्रबुद्ध व्यक्तियों का अपनी धरती पर आना सिद्ध होता है. मई 1967 में कालरैडॊ हवाई अड्डॆ से उड़नतश्तरी के आगमन की जो सूचना प्राप्त हुई थी उसे झुठलाना उनसे भी नहीं बन पडा, जो उड़नतश्तरी मान्यता का उपहास उड़ाते थे. अमेरिकी सरकार ने इस सन्दर्भ में एक अनुसंधान समिति की स्थापना की थी. उसके एक सदस्य जेम्स मेकोन ओल्ड ने दल की रिपोर्ट से प्रथम अपनी पुस्तक लिखी—“उड़नतश्तरियाँ”. उन्होंने इस मे उन यानों की सम्भावनाओं का समर्थन किया है.
अन्तरिक्ष विज्ञानी डा.फ़ानवन का कथन है कि इस विशाल ब्रह्माण्ड में ऎसे प्राणियों का अस्तित्व निश्चित रूप से विद्यमान है जो हम मनुष्यों की तुलना में कहीं अधिक समुन्नत हैं.
डा. ले. के. अनुसार अन्तरिक्ष में 1000 अरब तारें हैं, उनमें से एक करोड में जीवित प्राणियों के रह सकने योग्य अवश्य होंगे.
डा. एस. मिलर और डा. विलीले का कथन है—“इस विशाल ब्रह्माण्ड में एक लाख से अधिक ऎसे ग्रह पिण्ड हो सकते हैं जिनमें प्राणियों का अस्तित्व हो. इनमें से सैकडॊं ऎसे भी होंगे जिनमें हम मनुष्यों से अधिक विकसित स्तर के प्राणी रहते हों. हम पृथ्वी वासियों के लिए आक्सीजन और नाइट्रोजन गैसें आवश्यक हो सकती हैं, पर अन्य लोकों के प्राणी ऎसे पदार्थों से बने हो सकते हैं, जिनके लिए इन गैसों की तनिक भी आवश्यकता न हो. इसी प्रकार जितना ताप-शीत हमारे शरीर सह सकते हैं, उसकी तुलना में हजारों गुने शीत- ताप में जीवित बने रहने वाले प्राणियों का अस्तित्व होना भी पूर्णतया सम्भव है. हम अन्न-जल-वायु के जिस आहार पर जीवन धारण करते हैं अन्य लोकों के निवासी अपनी स्थानीय उपलब्धियों से भी निर्वाह प्राप्त कर सकते हैं.”
कैलिफ़ोर्निया के रेडियो एस्ट्रानामी इन्स्टीट्युट के डायरेक्टर डा.रोनाल्ड एन.ब्रेस्वेल.के अनुसार अन्य ग्रह-तारकों में समुन्न्त सभ्यता वाले प्राणी निवास करते हैं और वे अपनी पृथ्वी के साथ सम्पर्क स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील हैं. वे इस प्रयोजन के लिए लगातार संचार उपग्रह भेज रहे हैं. ये उपग्रह फ़ुटबाल की गेंद जितने होते हैं. उनमें कितने ही रेडियो यन्त्र और कम्प्युटर लगे रहते हैं और सचेतन जीव सत्ता भी उपस्थित रहती है जो बुद्धिपूर्वक देखती-सोचती और निर्णय लेती है. इन उपग्रहों द्वारा पृथ्वी निवासियों के लिए कुछ विशेष रेडियो सन्देश भी प्रेषित किए जाते हैं जिन्हें हम सुन तो सकते हैं पर समझ नहीं पाते.
यह आवश्यक नहीं है कि अन्य ग्रहों पर निवास करने वाले प्राणी हमारी जैसे आकृति-प्रकृति के ही हों, वे कृमि-कीटक, झाग, धुँआ जैसे भी हो सकते हैं और महादैत्यों जैसे विशालकाय भी. जिस प्रकार की इन्द्रियाँ हमारे पास हैं, उनसे भी सर्वथा भिन्न प्रकार के ज्ञान तथा कर्म साधन उनके पास हो सकते हैं.
उड़नतश्तरियों के क्रिया-कलाप में मनुष्य जाति को अधिक दिलचस्पी लेना शायद उनके संचालकों को पसन्द नहीं आया है अथवा वे प्राणी एवं वाहन ऎसी विलक्षण शक्ति से सम्पन्न हैं जिनके सम्पर्क आने पर मनुष्य की सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न हो जाता है.
24 जून 1967 को न्यूयार्क के उड्नतश्तरी शोध सम्मेलन चल रहा था. उसी समय सूचना मिली कि इस रहस्य की अनेकों जानकारियाँ संग्रह करने वाले फ़ैंक एडवर्ड का अचानक हार्ट अटैक से निधन हो गया. इसी दिन उन्होंने इस शोधकार्य को अपने हाथ में लिया था. 24 जून ऎसा अभागा दिन है जिसमें इस शोध कार्य में संलग्न बहुत से वैज्ञानिक एक-एक करके मरते चले गए. अकेले फ़्रेक एडवर्ड ही नहीं क्वीनथ अरनोल्ड, आर्थर व्रायेट, रिचर्ड चर्च, फ़्रेक सकली वेले ली आदि सब इसी तारीख को मरे हैं. दस वर्षों में 137 उड़नतश्तरी विज्ञानिकों का मरना अत्यन्त आश्चर्यजनक है.
जार्ज आदमस्की ने कैलोफ़ोर्निया के दक्षिण में एक उड़नतश्तरी देखी. दर्शकों में एक प्रत्यक्षदर्शी जार्ज विलियमसन भी थे. वे इस घटना का विस्तृत विवरण प्रकाशित कराने में संलग्न थे. इतने में आदमस्की की दृदयगति रूकने से मौत हो गई और हेट न जाने कहाँ गुम हो गया. उस हेट का फ़िर अता-पता नहीं मिल पाया. ट्रमेन वैथाम अपनी आँखों देखी गवाही छपाने की तैयारी कर ही रहा था कि अपने बिस्तर पर ही अचानक लुढककर मर गया. ऎसी ही दुर्गति वर्नी हिल नामक गवाह की भी हुई.
डा.रेमण्ड बर्नाड ने उड़नतश्तरियों पर कई पुस्तकें लिखीं. अचानक एक दिन उनकी मृत्यु हो गई. कोई नहीं जान पाया कि वे कब मरे, कहाँ मरे और कैसे मरे?. सन्देह है कि वे जीवित हैं, पर कोई नहीं जानता कि वे कहाँ है? इसी विषय पर एक अन्य पुस्तक प्रकाशित करने वाले डा.मौरिस केजेसप ने खुद ही आत्महत्या कर ली. अपने मोजों से गला घोंट कर आत्महत्या करने वाली “डोली” के बारे में कहा जाता है कि एक उड़नतश्तरी के चालकों से भेंट के उपरान्त उन्हें ऎसा निर्देश मिला था जिसे वे टाल नहीं सकीं. केप्टन एडवर्ड रुपेल्ट और विलवर्ट स्मिथ अपनी मौत के स्वयं उत्तरदायी थे. राष्ट्रसंघ के प्रमुख डाग हेयर शोल्ड का वायुयान 19 सितम्बर 1961 को जलकर नष्ट हुआ था और वे उसी में मरे थे. दुर्घटना के प्रत्यक्षदर्शी टिमोथी मानास्का ने शपथ पूर्वक कहा था कि उसने उस यान पर एक चमकदार तश्तरी झपट्टा मारती देखी थी. ये सभी लोग उस उड़नतश्तरी का पता लगाने के सम्बन्ध में गहरी दिलचस्पी ले रहे थे. ग्रे वारकर इस विषय पर एक पुस्तक प्रकाशित कर रहे थे कि उनके दरवाजे पर एक पर्चा चिपका मिला “ उडनतश्तरियों के बारे में चुप रहो, नहीं तो बेमौत मारे जाओगे.” एक वैज्ञानिक राबर्ट एल.ईसले 25 फ़रवरी 1968 को इस विषय पर भाषण देकर लौट रहे थे कि किसी दिशा से उनकी कार पर दनादन गोलियाँ बरसने लगीं. घर पहुँचते ही फ़ोन पर उन्होंने किसी का सन्देश सुना-“आगे से इस विषय पर कुछ मत बोलो नहीं तो दुरस्त कर दिए जाओगे.”
23 अगस्त 1983 को स्टाक होम से प्रकाशित “आकलैण्ड स्टार” नामक पत्र में स्वीडन के कैप्टन लेनर्ट स्टोर्म की उड़नतश्तरी सम्बन्धी एक आँखों देखी घटना प्रकाशित हुई थी. उन्होंने 17 सितम्बर 2982 की संध्या 5 बजे एक विचित्र दृष्य देखा. पृथ्वी की ओर गतिशील एक चपटा सा यान तेज चमचमाते प्रकाश के साथ उनके सामने से गुजरा व लगभग तीन किमी.दूर जंगल में जाकर रुक गया. प्रारम्भ में उन्होंने मिलिट्री ट्रान्सपोर्ट हेलिकाप्टर समझा, किन्तु ध्वनि रहित इस यान को देखकर आश्चर्यचकित रह गए. जब उसमें से दो छॊटॆ-छॊटॆ यान निकलकर उनके समीप से गुजरे कुछ दूर रुक गए. थॊड़ी देर में वहीं रहकर दोनो यान मूल यान से जुडकर दूर आकाश में उड़ गए. केप्टन का कहना है कि “मेरी आँखें 25 वर्षों का सेना का अनुभव होने के कारण धोखा नहीं खा सकतीं. स्पष्ट है कि दूरस्थ आकाशगंगा से आयी हुई एक उड़नतश्तरी है जो संभवतः जीवन के चिन्ह तलाशने यहाँ आयी थी.
25 अगस्त 1976 को अमेरिका के नार्थ डकोटा प्रान्त के एक वायु सेना अधिकारी को रेडियो तरंगों द्वारा सन्देश भेजने में अचानक बाधा का सामना करना पडा. खोजबेन करने के बाद पता चला कि इसी समय एक उड़नतश्तरी गहरे लाल रंग के प्रकाश बिखेरती ऊपर नीचे उड़ रही थी. इसी समय राडार ने भी दस हाजार मीटर की ऊँचाई पर उडती हुई एक गोल तश्तरी की सूचना दी. थॊडी देर बाद उड़नतश्तरी दक्षिण को मुड गई और यह अनुमान लगाया गया कि कोई मील की दूरी पर वह पृथ्वी पर उतर गई है. उस स्थान पर वायु सेना की टुकडी पहुँची तो वह आठ मिनट पहले ही वहाँ से गायब हो चुकी थी. इस बीच दूसरी तश्तरी उत्तर की ओर दिखाई दी, उसे भी राडार पर ने देखा पर जब तक दस्ता उधर दौडॆ वह भी गायब हो गई.
24 अक्टूबर,1977 की शाम को कनाडा के समुद्री तट पर शागहार्बर के सैकडॊं निवासियों ने आकाश में कोई चमकदार उड़ती हुई वस्तु देखी. देखते-देखते ही वह समुद्र सतह पर जाकर विलीन हो गई. बीस मिनट के भीतर ही पुलिस कर्मचारी एक जहाज और आठ नावों सहित उस स्थान का निरीक्षण करने पहुँच गए, जहाँ उड़नतश्तरी विलीन हुई थी. वहाँ सर्चलाइट के तेज प्रकाश में वे केवल समुद्र के एक स्थान से पीला झाग निकलता देख सके. दो दिनों तक सैनिक गोताखोर उस स्थान पर गोता लगाते रहे पर वहाँ किसी वस्तु या उड़नतश्तरी का कोई प्रमाण नहीं मिला.
13 मई, 1917 को फ़ातिमा नगर लिस्बन(पुर्तगाल) से कोई 62 मेल दूर “कारवाँ द इरिया” नामक झरने के समीप तीन बालक लुसिया, फ़्रकिस्कोमार्तो और जेसिन्तोमार्तो अपने जानवर चरा रहे थे कि यान से अन्तरिक्ष यात्री उतरे और उन बालकों से बातचीत की. बालक भाषा तो न समझ सके. याह घटना उन्होंणे अपने अभिभावकों को सुनाई किन्तु इससे वे सहमत न हुए. किन्तु ठीक एक माह उपरान्त 13 जून को फ़िर से एक अन्तरिक्ष यान आया. उसमें से कुछ यात्री उतरे. अब की बार सम्मोहन किरणॆं जैसी फ़ेंकी. बालकों से कुछ कहा. बालक समझे तो नहीं पर हाव-भाव से ऎसा लगा कि कह रहे हों “कि तुम बहुत अच्छे लगते हो”. फ़िर तेरह जुलाई को इसी प्रकार पुनरावृत्ति हुई. अब यह बात सारा नगर जान चुका था. जो हजारों दर्शक उस स्थान पर जमा हो गए थे, उन्हें निराशा ही हाथ लगी. कुछ दिखाई नहीं दिया. अब अगली तेरह तारीख के इन्तजार में 70,000 हजार नगर निवासी नदी के किनारे जमा हो गए. थॊडी ही देर में बादलों के बीच से कोई चौंधियाने वाली वस्तु आकाश से पृथ्वी की ओर आती दिखाई दी. वह तेज घूमती तश्तरीनुमा कोई चाँदी धातु से निर्मित वस्तु थी. भीड के समक्ष वह ठहरी नहीं. सूरज के तरफ़ जाकर लुप्त हो गई. देखने वालों का कहना था कि उसकी गति प्रकाश से भी अधिक थी.
सन 1930 में प्लूटॊ ग्रह की खोज करने वाले अन्तरिक्ष विज्ञानी क्लाइड डब्ल्यू टाम्बा ने कहा था कि” मैंने और मेरी पत्नि ने उड़नतश्तरियाँ आकाश में उड़ती देखी हैं. “मैं उन पर अन्तर्ग्रही सभ्यता के अस्तित्व पर पूरा विश्वास रखता हूँ.” इंग्लैण्ड के अन्तरिक्ष विज्ञानी एच.पार्सी विल्किस ने भी 1935 में 500 फ़ीट व्यास की उड़नतश्तरी देखने के विवरण “साईंस पत्रिका” मे दिया था.
सन 1947 में अमेरिका के पश्चिमी तट रार्कामा के निकट मोटार बोट में बैठे दो रक्षक एच.डहल तथा झेड.एल.कैसवेल समुद्रा तट की निगरानी कर रहे थे. अचानक आकाश में दो हजार फ़ुट की उँचाई पर गोल आकृति की प्रकाशमान छः मशीनें दिखाई दीं. पाँच मशीन एक के चारों ओर घूम रही थी. धीरे-धीरे नीचे उतरकर 500 फ़ुट की उँचाई पर रूक गईं. तभी डहल ने अपने कैमरे निकाल फ़ोटॊ लेने के लिए कैमरे का स्विच दबाया ही था कि अचानक बीच वाली मशीन फ़ट गई. दोनों अंगरक्षक तुरन्त छलांग लगाकर पास की एक गुफ़ा में घुस गए पर उनके साथ का कुत्ता वहीं मर गया. कुछ देर बाद बाहर निकलने पर देखा कि विस्फ़ोट से फ़टे मशीन के टुकडॆ तट पर बिखरे थे, जो चमकीले और गरम थे.
निरीक्षक दल ने वाशिंगटन के उक्त टापू पर फ़ैले बीस टन धातु के टुकडॊं को एकत्र कर परीक्षण किया तो ज्ञात हुआ ये टूकडॆ सोलह धातुओं के सम्मिश्रण से बने हैं जिन पर कैल्सियम की मोटी चादर चढी है. वैज्ञानिकों के लिए आश्चर्य यह रहा कि इन सोलह धातुओं में से एक भी धातु पृथ्वी पर नहीं पायी जातीं. वे इसका नाम तक बता पाने में असमर्थ रहें एवं अभी तक उनका विश्लेषण सम्भव नहीं हो पाया है.
मेलबोर्न-24 अक्टूबर 1978 को बीस वर्षीय युवा विमान चालक फ़्रेडरिक. वाके. च. ने आस्ट्रेलिया एवं तस्मानियां के बीच उड़ान भरी. विमान जब 137 मीटर ऊपर उड़ रहे विमान के ऊपर से बहुत तेज गति से एक तश्तरी जैसी आकृति उड़ रही थी, जिसमें से हरा प्रकाश आ रहा था. इसके संपर्क में आने से विमान के इंजिन में रुकावटें आने लगी और विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया.
आज वैज्ञानिकों के पास अन्तरिक्ष के बारे में पर्याप्त जानकारियां उपलब्ध हैं. अपने सौर-मण्डल में विद्यमान अनेक ग्रहों पर वे जीवन की सम्भावनाएं बताते हैं. यह अकारण नहीं हो सकता कि विकसित सभ्यता वाले अन्यान्य ग्रहवासी इस छॊटॆ से ग्रह पृथ्वी के बारे में जानने को उत्सुक न हों. जब मनुष्य चन्द्रमा पर जा सकता है, मंगल ग्रह पर जा धमकता है तो अन्य ग्रहों के निवासी अपने यान यहाँ क्यों नहीं भेज सकते?
कुछ भी हो, हमें अपने अकेले के ही सौर-मण्डलवासी होने का गर्व नहीं करना चाहिए, अभी जानकारी नहीं मिली तो यह अर्थ तो निकलता नहीं कि ऎसी एक और पृथ्वी का या कई जीवनधारी ग्रहों का अस्तित्व नहीं है,ये घटनाएँ इसी की साक्षी देती हैं.
यों उड़नतश्तरी अभी भी एक रहस्य ही है और उनके संचालकों का क्रिया-कलाप और भी अधिक विचित्र है. फ़िर भी यह विश्वास किया जाता है कि कल नहीं तो परसों, उन रहस्यों पर से पर्दा उठेगा और हम ऎसे युग में प्रवेश करेंगे जिसमें क्षुद्र संकीर्णता से ऊपर उठकर हमें विस्तृत, अत्यन्त सुव्यवस्तित कार्यक्रमों को ध्यान में रखकर सोचना पडॆगा और उसी आधार पर अपनी गतिविधियों का निर्धारण करना पड़ेगा.