हिममानव
क्या आपने ऎसे भीमकाय मानव को देखा है जिसकी आँखें डरावनी और लाल-लाल हों, बड़े-बड़े दाँत हों, जीभ 7 से इंच 8 लंबी हो और जिसके शरीर में बीसियों आदमियों के बराबर ताकत हो?. इस महामानव के बारे में अनेक प्रकार की काल्पनाएं की गईं. यह जीव न केवल भारत में वरन सारे संसार के लिए ज्ञान-विज्ञान की नई पहेली के रूप में उभरा. इसके अस्तित्व के बारे में किसी को शंका नहीं है पर बर्फ़ में रहने वाला यह हिममानव कौन है? क्या करता है और उस क्षेत्र में जहाँ जीवन के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती किस प्रकार नग्न शरीर विचरण करता है, यह प्रश्न आज तक कोई भी हल नहीं कर पाया है.
हिमालय पर रहने वाले हिममानव की जीवनचर्या भी कम रहस्यमय नहीं है. यह प्राणी मनुष्य जैसी आकृति-प्रकृति का है, उसे रीछ और मानव का सम्मिश्रण कह सकते हैं. यह अत्यन्त शीत भरे हिम-आच्छादित प्रदेश में इतनी ऊँचाई पर रहता है, जहाँ साँस लेने के लिए आक्सीजन के सिलेण्डर पीठ पर बाँधकर पर्वातारोही जाया करते हैं और खुली हवा में साँस लेना मृत्यु को निमन्त्रण देना मानते हैं. लंबे समय से वह एकाकी जीवन जीता चला आ रहा है. युगीन सभ्यता से कोसों दूर रहते हुए भी उसने अपने रहस्यमय जीवानाक्रम को किसी प्रकार अक्षुण्य बनाए ही रखा है.
हिमालय के उत्तुंग शिखरों पर रहने वाला हिममानव अपने अस्तित्व के समय-समय पर अगणित परिचय देता रहा है, पर अभी तक उसे पकड़ने के प्रयास सफ़ल नहीं हो सके. इस अद्भुत प्राणी के सम्बन्ध में अधिक जानने के लिए उसे निकट से देखना, समझना आवश्यक है. यह तभी संभव है जब वह पकड़ में आवे किन्तु अति बुद्धिमान समझे जाने वाले मनुष्य को भी हिममानव अभी तक चकमा देता आया है.
उसके पकड़ने के प्रयासों को निष्फ़ल ही बनाता आया है. उतने पर भी हिममानव का अस्तित्व प्रायः असंदिग्ध ही समझा जाता है.
इसके अस्तित्व को लेक्र लोग शंका भी करते थे और उसे भारतीयों का अन्धविश्वास भी कहा करते थे. चिरकाल से चले आ रहे वर्णन जो किंवदन्तियों के रूओ में चले आ रहे थे पहली बार उस समय सत्य प्रमाणित हुए जब सुप्रसिद्ध पर्वतारोही तेनसिंह और एडमण्ड हिलेरी ने 1954 में हिमालय की चढ़ाई की. एडमण्ड हिलेरी ने 19 हजार फ़ुट की उँची योयांग घाटी पर अपना खेमा गाड़ रखा था. उस समय की बात है, एक दिन जब वे उस क्षेत्र का निरीक्षण करने के लिए अपने तंबु से बाहर निकले और बर्फ़ पर चलते हुए काफ़ी दूर निकल गए, तब एकाएक उन्हें बर्फ़ पर बने हाल ही के पदचिन्हों ने चौंका दिया. हिमालय की लोककथाएँ उन्होंने अवश्य सुनी थी, यह भी सुन रखा था कि यह प्राणी उस दुर्गम क्षेत्र में रहता है, जहाँ मनुष्य पहुँच भी नहीं सकता पर जहाँ पहुंचने के लिए उन्हें अपने जीवन के रक्षार्थ करोड़ॊं रुपयों की लागत के उपकरण ले जाने पड़ते थे. पदचिन्हों का पीछा करते हुए वे काफ़ी दूर निकल गए पर कहीं न कुछ दिखा और न ही कुछ मिला.
इसके बाद हिममानवों की खोज का सिलसिला चल पड़ा. उसके बारे में नई-नई विस्मयबोधक जानकारियाँ मिलीं. लेकिन अब तक कोई भी उनका फ़ोटॊ लेने में सफ़ल नहीं हो पाया. कुछ लोगों का कहना है कि वे शरीर से असाधारण क्षमता वाला होते है, वे किसी भी स्थान में अन्तर्धान हो सकते हैं, जिस तरह कोई मनुष्य पानी में डुबकी लगाकर दूसरे स्थान पर जा निकलता है, उसी प्रकार वे भी लुप्त होकर कहीं भी प्रकट भी हो सकते हैं. यदि ऎसा नहीं होता तो हिमालय की निचली तराइयों में जहाँ आबादी रहती है, वहाँ वे कैसे उतर आते हैं और रात के आन्तर से ही जो यात्रा कई महीनों में सम्पन्न हो सकती है उसे पूरा करके तुरन्त ही बीस हजार फ़ुट से अधिक उँचाई पर कैसे भाग जाते ?.
डा. ईजार्ड का कहना है कि वे माँसाहारी होते हैं, उसके प्रमाण में वे बताते हैं कि मैंने उसके मल (यतीज ड्रापिंग्स) का रासायनिक विश्लेषण कर लिया है पर अन्य लोगों का कथन है कि वे पूर्ण शाकाहारी होते हैं और उनके शरीर में मल बनता ही नहीं है. उनके शाकाहारी होने के प्रमाण तराई क्षेत्रों में प्रचलित लोकगीतों और कथाओं में भी मिलता है. रात को जब स्त्रियाँ सोने की तैयारी करती हैं तो घर की बड़ी-बूढ़ी माताएँ बहुओं को हिदायत देती हैं कि देखो बहू चक्की में आटा या गेहूँ पड़ा न रह जाए, नहीं तो हिममानव आएगा और उसे खा जाएगा.
103, कावेरी नगर, छिन्दवाड़ा(म.प्र.) ४८०-००१ गोवर्धन यादव.