सौभाग्य की तरह दुर्भाग्य का भी अस्तित्व है
सौभाग्य की तरह दुर्भाग्य का भी अपना अस्तित्व है. व्यक्ति अपने पराक्रम और बुद्धि से अनेकों प्रकार की संपदाएँ-सफ़लताएं प्राप्त करता है. ठीक उसी तरह मनुष्य के सन्मुख ऎसा दुर्भाग्य भी प्रकट होते देखा गया है कि सही प्रयास करने के बावजूद भी उन्हें असफ़लता का मुँह देखना पडा है
दुर्भाग्य जैसी दुर्घटना का कारण अविज्ञात है. पूर्व जन्म या संचित कर्मफ़ल, ग्रहदशा, देवी प्रकोप अथवा भाग्य विधान मानकर इन प्रसंगों का निमित्त कारण समझने का प्रयास किया जाता है, फ़िर भी इतने भर से संतोष नहीं होता. अभी उन वास्तविक कारणॊं का जानना शेष है, जो सौभाग्य और दुर्भाग्य की तरह प्रकट होते और अप्रत्याशित परिणितियाँ प्रस्तुत करते हैं.
संसार में विभिन्न अवसरों पर घटित होने वाले योजनाबद्ध दुर्भाग्य में से कुछ विशेष रूप में विचारणीय है.
प्रथम विश्व युद्ध के आरम्भ होते ही फ़्राँस के इण्टेलिजेन्स विभाग के एक जर्मन जासूस पेटर कार्पिन को देश में प्रवेश करते ही गिरफ़्तार कर लिया गया. सन 1917 में छद्द्मवेश बनाकर फ़्राँस की जेल से पेटर भाग निकला. इससे पूर्व उसने एक जाली दस्तावेज बनाकर अपने अधिकारियों को इस आशय का पत्र भेजा, जिसमें उसने अपने ऊपर किए जा रहे व्यय को बन्द कर देने और उससे एक वाहन खरीदने के लिए आवेदन किया था. सन 1919 में रूहर में एक सडक दुर्घटना में उसी वाहन से एक व्यक्ति कुचल कर मर गया. अब तक यह फ़्राँस के अधिकार में था. जाँच-पडताल करने पर पाया गया कि यह वही पेटर कार्पिन था, जिसने तीन वर्ष पूर्व फ़्राँस की सरकार की आँखों में धूल झोंकी थी.
मिशीगन की विशालकाय झील मे मुसाफ़िरों और सामान को ढोने के लिए सन 1888 में एक स्टीमर बना. इसका आदि, मध्य और अन्त सभी दुर्भाग्यपूर्ण रहा. जल-प्रवेश के एक साल के भीतर यह क्षतिग्रस्त हो गया. 1890 में डूबकर तली में बैठ गया. बडी कठिनाइयों के बाद इसे निकाला गया. काफ़ी परिश्रम के बाद इसे काम लायक बनाया गया. सन 1893 और 1902 में फ़िर से डूबते-डूबते बचा. 1917 में एक पुल से जा टकराया. 1920 में एक बर्फ़ीली चट्टान से जा टकराया. हैरान और परेशान इसके मालिक ने 1921 में इसे कबाडियों को बेच दिया.
सन 1685 की बात है. जापान के एक फ़ेन्सी ड्रेस विकेता ने एक बहुत ही बहुमूल्य परिधान तैयार किया. इसे देखने अनेकों लडकियां आयीं,लेकिन कीमत ज्यादा होने से खरीद नहीं पायीं. एक धनी लडकी ने इसे खरीदा. घर ले जाने के बाद वह उसे पहनने भी नहीं पायी थी कि उसकी मृत्यु हो गयी. घर वालों ने कुछ कम मूल्य पर उसे दूकानदार को लौटा लिया. दूसरी बार उसे जिसने भी खरीदा, वह भी इसी तरह मरी और पोषाक वापस लौटी. तीसरी बार भी यही हुआ. इस अभागे परिधान की सुन्दरता, कीमत के साथ-साथ उसके अभागे होने की चर्चा पूरे जापान में फ़ैल गई. देखने कौतूलहवश बहुत लोग आते, पर उसे खरीदना तो दूर, कोई छूता तक नहीं था.
मामला राज दरबार तक पहुंचा. पोषाक कचहरी में पेश की गई. विवरण सुनने के बाद धर्मगुरू ने उसे आग के हवाले कर देने की दण्डता सुना दी. जिस समय परिधान जलाया जा रहा था, उसी समय भयंकर आंधी आयी. चिनगारियां उड-उडकर दूर-दूर तक जा पहुंची और उससे भयंकर अग्निकांड खडा हो गया. इस अग्निकाण्ड में 61 पुल, 300 मन्दिर, 500 शाही महल और 9000 स्टोर और हजारों झोपडियां और घर स्वाहा हो गए. इतना ही नहीं इस अग्निकाण्ड में एक लाख मनुष्य भी जलकर खाक हो गए.
पेरू की सेन्ट्रल रेल्वे का एक इन्जन जिस दिन से बना उसी दिन से दुर्घटना करने लगा. आए दिन कभी अपने कलपुर्जे तोड लेता, कभी दूसरों के प्राण संकट खडा करता. वह पांच बार पटरी से उतरा, जमीन में घुसा और क्रेन पर लादकर यथास्थान लाया गया. इस दुर्भाग्य को मिटाने के लिए उसके संचालकों को एक उपाय सूझा. उसका नम्बर 37 से बदलकर 33 कर दिया. नम्बर प्लेट सहित सारे कागजाद भी बदल दिए गए. फ़िर भी उसका दुर्भाग्य नहीं छूटा. वह और उग्र हो गया. उसका ब्रेक फ़ेल हुआ और वह दूसरी ट्रेन से जा टकराया. टक्कर बहुत भयानक थी, उसने समूचे रेल के पुल को ही उखाड दिया और नीचे नदी में जा गिरा जिससे जन-धन की बहुत क्षति हुई.
ब्रिटेन के एक अपराधी के घर से एक ऎसा चित्र बरामद हुआ जो बिल्ली का था तथा नीले पेपर पर काले चाक से बनाया हुआ था. ध्यान से देखने पर इस अस्पष्ट चित्र में खूंखार जानवर की आंखें चमकती दिखाई देती थीं. इसे सर्वप्रथम वन विभाग के एक अधिकारी ने प्राप्त किया और उसे अपने शयन-कक्ष में लगा लिया. कुछ ही दिन बीते होंगे कि उस अधिकारी ने आत्महत्या कर ली. चित्र आकर्षक था, पर उसे दुर्भाग्यशाली जानकर उसकी पत्नि ने एक व्यक्ति को बेच दिया, जिसे उसने अपने ड्रेसिंग रूप में सजाया. जब भी वह इस चित्र को देखता उसे दो हिंसात्मक आंखें घूरती दिखाई पडती. एक दिन विक्षिप्तावस्था में उसने स्वयं को गोली मार ली. इसी चित्र ने अपना तीसरा शिकार उसके युवा पुत्र को बनाया. जब वह इस चित्र को ध्यानमग्न होकर देख रहा था. उसने महसूस किया कि किसी व्यक्ति की खूनी आंखें उसे घूर रही है. असन्तुलन की स्थिति में उसने भी आत्महत्या कर ली. चौथा शिकार उस युवक का एक रिश्तेदार बना. चित्र की पेंटिंग बनाने के लिए वह उसे अपने घर ले आया. दूसरे दिन वह अपने बिस्तर पर मृत पाया गया. इसके साथ ही अचानक वह रहस्यमय चित्र, न जाने कहां गायब हो गया.
इटली का एक जहाज द्वितीय विश्वयुद्ध के समय महासागर से होकर जा रहा था. सागर की लहरों पर नाविकों को कोई चीज तैरती दिखाई दी. जाल डालकर खींचने पर वह काठ की एक आदमकद युवती की प्रतिमा निकली. नारी सौंदर्य की इतनी सुन्दर प्रतिमा देखकर सभी दंग रह गए. प्रतिमा की चौकी पर उसका नाम अंकित था” एटलांश”. प्रतिमा पर आसक्त दो नाविक अपना मानसिक संतुलन खो बैठे और दोनो ने समुद्र में छलांग लगा दी. नाव के कप्तान ने इस आकस्मिक घटना के फ़लस्वरूप प्रतिमा को केबिन में मजबूत ताला जडकर बंद कर दिया. इटली बन्दरगाह पर पहुंचकर कप्तान ने उस प्रतिमा को एक अजायबघर को सौंप दिया. प्रतिमा में आकर्षण इतना अधिक था कि वहां दर्शकों की भीड उमड पडी. कितने ही व्यक्ति उसे देखकर पागल हो गए. जर्मन के एक लेफ़्टिनेण्ट ने प्रतिमा के समक्ष सीने में गोली मारकर आत्महत्या कर ली. अजायबघर के अधिकारियों ने यह स्थिति देखकर विचार किया कि इस प्रतिमा को हटा देना ही उचित होगा, पर दुर्लभ एवं अमूल्य कलाकृति होने के कारण उसे हटाया न जा सका. हाँ, अधिकारियों ने उसके प्रदर्शन पर रोक अवश्य लगा दी. प्रतिमा के कलाकार का नाम तो मालूम नही पडा, पर ऎसा अनुमान लगाया गया कि प्रतिमा किसी द्वीप की राजकुमारी की है जो अपने समय की अद्वितीय सुन्दरी थी एवं यौवनकाल में ही राजकीय दुष्चक्रों के कारण उसकी मृत्यु हो गई थी.
ब्रिटिस म्यूजियम में एक अभिशप्त ममी रखी हुई है. यह ममी सन 1864 में अरब देश की एक खुदाई में प्राप्त हुई थी. इसके आकर्षण से प्रभावित होकर बाबसिसारो नामक एक पूंजीपति ने उसे खरीद लिया. दो माह के भीतर उस व्यापारी को इतना बडा घाटा हुआ कि वह अपने को सन्तुलित नही र सका और हृदयाघात से उसकी मौत हो गई. ममी की देख-रेख करने वाले दो नौकर बिना किसी रोग के बिस्तर पर सोए हुए मृत पाए गए. उस व्यापारी का एकलौता बेटा ट्रक दुर्घटना की चपेट में आ गया और उसे अपनी दोनों टांगे कटानी पडी. अभिशाप्त जानकर घरवालों ने बिना कोई मूल्य लिए एक फ़ोटॊग्राफ़र को वह ममी सौंप दी. फ़ोटॊग्राफ़र जे.एस.सैक्सन ने अधिक कीमत प्राप्त करने के उद्देश्य से अमी का फ़ोटॊ लेना चाहा, जिससे विभिन्न पत्रिकाओं में उसे प्रकाशन के लिए दिया जा सके. फ़ोटॊ साफ़ करने पर वह यह देखकर विस्मित रह गया कि उसमें मिस्र की अधेड महिला का स्पष्ट चित्र आ गया है. चित्र लेने के दूसरे दिन ही वह पागल हो गया और कुछ दिन बाद मर गया. उसकी पत्नि ने परेशान होकर लन्दन स्थित व्रिटिश म्यूजियम को ममी को वापस कर दिया. ममी को म्यूजियम तक पहुंचाने वाले दो मजदूरों में से एक तो एक सप्ताह के भीतर ही मर गया, जबकि दूसरा कार दुर्घटना में अपने हाथ-पैर गवां बैठा. म्यूजियम पहुंचने के बाद भी अभिशप्त ममी का प्रकोप कम नहीं हुआ
शहर के मशहूर फ़ोटोग्राफ़र डब्ल्यू.ए.मैनसल ने इस ममी का चित्र लेने का प्रयास किया. कंपनी मालिक का लडका परिक्षण करने आया. लौटते समय उसकी गाडी संतुलन खो बैठी और उसका हाथ टूट गया. एक लडका खिडकी के पास ही बैठा था, खिडकी का कांच टूटकर उसके ऊपर गिर पडा. दूसरे दिन म्यूजियम से फ़ोटॊग्राफ़र चित्र खिंचकर लौट रहा था कि गाडी का कांच टूटकर उसकी नाक से टकराया और उसकी नाक कट गई. उक्त संकटॊं के देखकर म्यूजियम के अधिकारियों ने ममी का इतिहास का पता लगाने का कार्य पुरात्ववेत्ताओं को सौंपा. मालूम हुआ कि ताबूत मिस्र की एक ऎसी महिला का है जो अथाह संपत्ति की मालकिन थी. अनैतिक कार्यों से उसने यह सम्पत्ति एकत्रित की थी. जीवन के अन्तिम दिनों में कुछ व्यक्तियों ने उसके साथ षडयंत्र करके सम्पत्ति लूट ली. वह विक्षिप्त अवस्था में मरी. विशिष्ट सूत्रों से ज्ञात हुआ कि इससे पूर्व भी अनेकों लोगों की मृत्यु का कारण बन चुका है. उसकी आत्मा निरन्तर ताबूत के साथ बनी रही जो भी उसे छूता अथवा छॆडछाड करने का प्रयास करता, उसे कोप का भाजन बनना पडा.