संयोगों के विचित्र किन्तु व्यवस्थित घटनाक्रम
वैज्ञानिकों के लिए संयोग सदा ही चुनौतियों का विषय रहा है और वे इसे चमत्कार की श्रेणी में रखकर स्वयं को नासमझ और पिछडा हुआ घोषित करना नहीं चाहते फ़िर भी उन्हें झुठला नहीं पाते. इसी कारण अपवाद कहकर बहुधा उन्हें टाल दिया जाता है. प्रसिद्ध लेखक,दार्शनिक आर्थर कोस्लर ने संयोगों को अद्भुत चमत्कार मानते हुए कहा है, कि वे दैनान्दिन जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं, जिन्हें नकारा नहीं जाना चाहिए.
पिछले दिनों प्रकाशित ऎलन वान की पुस्तक “इनक्रेडिबल कोइन्सीडेन्ट” में कोस्लर की मान्यताओं का प्रतिपादन करते हुए संयोग समन्धित ऎसी एक सौ बावन घटनाओं का उल्लेख किया गया है, जिनका प्रत्यक्षतः ढूँढने पर कोई कारण नहीं मिलता.
“इन्क्रेडिबल कोइन्सीडॆन्ट” पुस्तक में ऎलन वान ने एक घटना का उल्ल्ख किया है. प्रिंस एडवर्ड द्वीप के निवासी कोगलान की, टैक्सास स्थित गाल वेस्टन नामक स्थान पर सन 1899 में एक यात्रा के दौरान मृत्यु हुई. उसे वहाँ के मकबरे में सीसों की पर्तों में मढे हुए एक ताबूत में दफ़ना दिया गया. एक वर्ष भी पूरा नहीं हुआ था, कि सितम्बर 1900 में गाल वेस्टन द्वीप में भीषण तूफ़ान आया और पूरे कब्रस्तान में पानी भर गया. तूफ़ान की स्थिति में ही कोलगान का ताबूत मकबरे से निकलकर बहता-बहता मैक्सिको की खाडी जा पहुँचा. वहीं से वह ताबूत फ़्लोरिडा का चक्कर काटकर अटलांटिक महासागर में आ गया. क्रमशः पानी का प्रवाह उसे उत्तर दिशा में ले गया. आठ वर्ष बाद अक्टूबर 1908 में प्रिंस एडवर्ड द्वीप के मछुहारों ने तूफ़ानी लहरों के बीच पडॆ डिब्बे को पानी में तैरता पाया, तो उत्सुकतावश किनारे लाकर खोलकर देखा. कोगलान का नाम अंकित देख वे उसे तुरन्त पहचान गए. यह समुद्री किनारा उसके गाँव से कुछ मील दूरी पर था. कोगलान के शव को उचित सम्मान के साथ उसे गिरजे के कब्रस्तान में पुनः दफ़ना दिया. यह ताबूत भटकते-भटकते किस प्रकार आठ वर्ष बाद मृतक के जन्म स्थान पर पहुँच गया, इस पर आश्चर्य होना स्वाभाविक है.
आर्थर कोस्लर ने ऎसी अनेकों घटनाओं के विश्लेषण के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि “जीव-विज्ञान और भौतिक विज्ञान सम्बन्धी आधुनिक खोजें प्रकृति की उस मूल शक्ति की ओर संकेत करती है जो अव्यवस्था में भी व्यवस्था बनाए रखती है. इसी को देखकर लगता है कि हमारे ज्ञान से परे कोई शक्ति काम कर रही है.”
अपनी पुस्तक “ द रुट्स आफ़ कोइन्सीडेन्स” में कोस्लर ने स्पष्ट लिखा है कि हम निःसंदेह संयोगपरक चमत्कारों से घिरे है, जिन्हें अस्तित्व की अब तक हम उपेक्षा करते रहे हैं. यही कारण है कि इन्हें अन्धविश्वास से अधिक कुछ माना नहीं गया है. यह रहस्य मनुष्य सदियों तक नहीं समझ पाया कि सूक्ष्म जगत कितना अद्भुत तथा विलक्षण है, ऎसी कितनी ही घटनाएँ इसकी साक्षी हैं.
प्रसिद्ध लेखक रिचर्ड बाक 1966 में अमेरिका के मध्य पश्चिम क्षेत्र में दो फ़लक वाले एक विमान में यात्रा कर रहे थे. यह विमान दुर्लभ प्रकार का था, क्योंकि 1929 में निर्मित डॆट्राइट—पी-2 ए टाइप के विमान केवल आठ ही बने थे और इतने ही विश्व में थे. विस्कान्सिन स्थित पायीरो नामक स्थान में रिचर्ड ने यह विमान अपने को-पायलट साथी मित्र को चलाने के लिए दिया. विमान उतारते समय मित्र से थोडी भूल हो गई और विमान क्षतिग्रस्त हो गया. “नथिंग वायचांस”(कुछ भी अनायास नहीं) नामक पुस्तक में रिचर्ड बाक स्वयं लिखते हैं, कि “हमने दबाव को रोकने वाले एक पुर्जे को छॊडकर शेष हर पुरजे की मरम्मत कर दी थी. इस पूर्जे की मरम्मत इसलिए न हो सकी कि उसके दुर्लभ होने से वह भाग कहीं भी मिलना सम्भव न था, तभी एक व्यक्ति आया जिसने स्वयं ही उत्सुकतावश उनकी परेशान पूछी, संयोगवश उसकी विमानशाला में उस विमान के उपयुक्त 40 वर्ष पुराना पुर्जा मिल गया तथा हम विमान को फ़िर चला पाने में समर्थ हो गए. यह एक संयोग ही था कि उस अपरिचित इलाके में ठीक वही पुर्जा मिल गया, जिसे खोजकर हम हार गए थे.
फ़ैलमाऊथ ( मेन-यू.एस.ए.) के अडविन राबिन्सन नाम व्यक्ति की आँखों की ज्योति 9 वर्ष पूर्व एक सडक दुर्घटना में चली गई थी. उसके चिकित्सक विलियम टेलर ने परीक्षोपरान्त बताया कि अब इसका आना सम्भव नहीं. संयोगवश 1982 के जुलाई में वे अकेले घर लौटते हुए भयंकर वर्षा वाले तूफ़ान में फ़ँस गए. पेड के नीचे शरण पाने के लिए उन्होंणे अपनी धातु की छडी का प्रयोग किया. तभी जोरों से विद्युत गर्जन हुआ और उन्हें लगा कि कहीं समीप ही बिजली गिरी है. वे धक्का-खाकर गिर पडॆ, लेकिन 5 मिनट बाद जब किसी तरह उठे तो पाया कि उनका श्रवण यन्त्र तो बेकाम हो गया, लेकिन वे इसके बिना भी सुन सकते हैं. आँखों से उन्हें सब कुछ दिखाई भी दे रहा है. प्रसन्न मन से वे वापस घर लौटे. चिकित्सकों के अनुसार यह विज्ञान की समझ में न आ पाने वाले कई वैचित्रयपूर्ण संयोगों में से एक है, जिसका कोई समाधान नहीं दिया जा सकता.
न्यूजीलैण्ड के कुक जलडमरुमध्य में दो शौकिया नाविक महिलाएँ अपना साप्ताहान्त बिता रही थीं. इसी बीच उनकी नाव एक समुदी चक्रवात में फ़ँसकर उलट गयी. दोनों महिलाएँ कुछ दूर तक तो तैरीं, पर किनारा मीलों दूर था. नजदीक कोई सधन नहीं. इस बीच एक मृत मछली की लाश तैरती उनके समीप लहरों के साथ आयी. वे उस पर चढकर उसे नाव की तरह खेती हुई किनारे पर आ गई और सकुशल घर पहुँच गईं.
मेरी गैलेण्ट प्रान्त के फ़ांसीसी गवर्नर की तीन वर्षीय पुत्री एक समुद्री यात्रा के समय पिता के साथ थी. रास्ते में बीमार पडी और मर गई. उसकी लाश बोरे में सीकर बन्द कर दी गई, ताकि उसे जल में उपयुक्त स्थान पर डाला जा सके. उसके कुछ उपरान्त देखा गया कि जहाज में पालतू बिल्ली लाश के पास चक्कर काट रही है. आमतौर पर बिल्ली लाश से दूर रहती है. सन्देह हुआ कि बच्ची जीवित तो नहीं है. चौबीस घंटे बीत चुके थे, फ़िर भी बोरा खोला गया तो देखा कि लडकी की हल्की-हल्की साँसें चल रही है. उसको उपचार मिला और वह ठीक हो गई. बडी होने पर उसका विवाह फ़्रांस के राजा लुई चौदहवें के साथ हुआ और वह 84 वर्ष की आयु तक जीवित रही.
सन 1825 में पश्चिमी जर्मनी के बाइक कस्बे के समुद्र तट पर भयावह समुद्री तूफ़ान आया. असंख्य परिवार उसमें डूब गए, फ़िर भी पालने में बँधे दो बच्चे जीवित अवस्था में किनारे पडॆ पाए गए. किसी माता ने इन बच्चों के तैरने की सुविधा सोचकर पालने से बाँध दिया होगा. वे डूबे नहीं, किनारे आ लगे. उन्हें एक समुद्री जहाज के मालिक ने उठाया और पाल लिया. बडॆ होने पर वे उस पालने वाले के उत्तराधिकारी बने और जहाज के मालिक कहलाए. जिन्दगी उन्होंन समुद्र में ही बितायी और अन्ततः किसी समुद्री तूफ़ान में फ़ँसकर जहाज समेत समुद्र के गर्भ में समा गए.
पन्द्रहीं शताब्दी में लन्दन के समीपस्थ शापहान कस्बे की घटना है. यहीँ एक चर्च है, जिसमें एक लकडी का पुतला विद्यमान है.उसके नीचे उसका नाम लिखा है-फ़ेरीवाला जान चैपमेन. सारे गाँव में इसकी उदारता के चर्चा होती रहती है. प्रसंग यह है कि चैपमेन को रात्रि में एक स्वपन में संकेत मिलता है कि “तुम लन्दन जाओ. वहाँ थेम्स नदी के पुल पर एक आदमी तुम्हें मिलेगा जो गढे खजाने के सन्दर्भ में तुम्हें बताएगा. उसका उपयोग सत्कार्यों में ही करना.”
नींद खुलने पर चैपमेन ने निश्चय किया कि यदि स्वप्न सच है तो वास्तविकता का पता अवश्य लगाया जाना चाहिए. वह पैदल ही लन्दन के लिए रवाना हो पाँच दिन बाद थेम्स के पुल पर पहुँचा. तीन दिन तक वह टहलता रहा, किन्तु संकोचवश किसी को स्वप्न के बारे मं नहीं बता पाया. उसी समय एक व्यापारी ने उसे पुल पर बार-बार टहलते देखकर पूछा कि तुम्हें क्या परेशानी है ?. चैपमेन ने स्वप्न का जिक्र कह सुनाया. व्यापारी हँसकर बोला कि गाँव के लोग बडॆ भोले होत हैं एवं बेकार ही स्वप्न पर विश्वास कर लेते हैं. आगे उसने कहा-“ मुझे भी तीन रात पूर्व सपने में संकेत मिला था कि यहाँ से सौ मील दूर शापहान कस्बे में चैपमेन नामक व्यक्ति मिलेगा. उसके घर के पीछे पेड के नीचे एक खजाना गढा हुआ मिलेगा. लेकिन मैं तुम्हारी तरह बेवकूफ़ नहीं हूँ कि ऎसे ही स्वप्न पर विश्वास कर चैपमेन को ढूँढूँ और खजाने का पता लगाऊँ ?.´चैपमेन को इस वार्तालाप से खजाने का संकेत मिल गया. वह चुपचाप वहाँ से अपने गाँव आ गया व अपने घर के पिछवाडॆ के पेड के नीचे जमीन खोदना आरम्भ किया. दो घण्टे के परिश्रम के बाद उसे एक बडॆ बर्तन में गढे हुए सोने व चाँदी के सिक्के मिले. उसने यह धन परिवार के लिए तो खर्च किया ही, लेकिन मुक्त-हस्त से गाँव वालों को भी सम्पत्ति वितरित की. उसने एक चर्च और अस्पताल बनवाया. उसकी मृत्यु के बाद वहाँ के लोगों ने उसका लकडी का पुतला बनाकर चर्च में लगाया, ताकि उसकी स्मृति अक्षुण्य बनी रहे.