संयोगवश घटी घटनाएँ
कई बार संयोगवश ऎसी घटनाएँ घटित हो जाती हैं, जिनकी न तो कभी कल्पना ही की गयी थी और न ही कोई अपेक्षा की गई थी. व्यवहारिक जीवन में कई बार ऎसी घटनाएँ होती रहती हैं, पर अनेक बार यह विचित्रता विज्ञान जगत में भी परिलाक्षित हो जाती हैं. वैज्ञानिक किसी विषय पर प्रयोग-परीक्षण कर रहे होते हैं, वे बनाना कुछ और चाहते हैं,लेकिन बन कुछ और जाता है. पिछले दिनों ऎसे अवसरों पर अनेक नए पदार्थों-सिद्धांतों का आविष्कार हुआ, जिन्हें आज के परिप्रेक्ष्य में मानवोपयोगी और अत्यन्त महत्वपूर्ण कहा जा सकता है.
कृत्रिम रेशम का अनुसंधान एक फ़ांसीसी वैज्ञानिक डा. शेरडोन्ने ने फ़ोटोग्राफी के दौरान किया था. एक दिन वे एक फ़ोटॊग्राफ़ी प्लेट पर “कोलोडियन” नामक तत्व की पुताई कर रहे थे कि अचानक मेज हिल जाने से “कोलोडियन” से भरी पूरी बोतल फ़र्श पर गिर गयी. दुःख एवं क्रोध के आवेश में शिरडोन्ने उसे ज्यों का त्यों छॊडकर घर चले आए. दूसरे दिन जब वे प्रयोगशाला की सफ़ाई करने लगे तो जमीन पडा हुआ “कोलोडियन” रेशम जैसे पतले धागों में परिणत हो गया था. इन धागों से ही सर्वप्रथम 1811 में कृत्रिम रेशम का कपडा बनाया गया तथा उसे प्रदर्शित किया गया था.
यदि डा.शेरेडोन्ने के साथ यह आकस्मिक घटना नहीं घटी होती, तो सम्भवतः आज हम कृत्रिम रेशम का उपयोग नहीं कर रहे होते.
इसी प्रकार एक बार दो वैज्ञानिक इरारेमसिन एवं बाल्वर्क अपनी प्रयोगशाला में कोलतार पर गन्धक का प्रभाव देख रहे थे कि अचानक बाल्वर्क का हाथ होंठॊं से टकराया, जिससे उन्हें मिठास का अनुभव हुआ. घर जाकर उन्होंने हाथ धोकर खाना खाया तो भी बाल्वर्क का हाथ इतना मीठा था कि पूरा भोजन ही मीठा हो गया. दूसरे दिन बाल्वर्क ने पुनः प्रयोगशाला में जाकर जब अवशिष्ट पदार्थ का स्वाद लिया, तो उन्हें बेहद मीठा पाया. यही तत्व “सैकरिन” था, जो आज मधुमेह रोगी के लिए अनुदान एवं शक्कर का विकल्प बन गया है.
एलोपैथिक दवाओं में एण्टीबायोटिक पेनिसिलिन का आविष्कार महत्त्वपूर्ण माना जाता है. इसकी भी खोज संयोगवश ही हुई थी.
एक बार “सर अलेक्जेण्डर फ़्लेमिंग” अपनी प्रयोगशाला में हानिकारक कीटाणुओं की उत्पत्ति के कारणॊं पर प्रयोग कर रहे थे. प्रयोग के मध्य उन्होंने देखा कि वाच ग्लास की तली में हरे रंग का पदार्थ जमा हुआ है. सूक्ष्मदर्शी यन्त्र से देखने पर डा.फ़्लेमिंग ने पाया कि उस पदार्थ के चारों ओर हजारों की संख्या में जीवाणु मरे हुए चिपके हैं. अनुसंधान के बाद यही पदार्थ पेनेसिलीन साबित हुआ, जो आगे की चिकित्सा की आधारशिला बना.
तब पेनेसिलीन इतनी दुर्लभ चीज थी कि रोगी को दिए जाने के बाद औषधि उसके मूत्र से वापस निकाल ली जाती थी, ताकि उसका दुबारा प्रयोग किया जा सके, पर अब जबकि इसके अद्गम-स्त्रोत का व्यापारिक उत्पादन कर बडॆ पैमाने पर पेनिसिलीन तैयार की जाती है. इसी कारण आज यह इतनी कम कीमत पर सरलतापूर्वक सभी को उपलब्ध हो जाती है. गुप्त रोगियों के लिए यह दवा रामबाण सिद्ध हुई है.
विल्हेल्म जर्मनी के जाने-माने वैज्ञानिक थे. सन 1895 के एक सर्द दिन वे निर्वात नलिका ( वैक्यूम ट्यूब) के साथ कुछ प्रयोग कर रहे थे. नलिका चारों ओर से एक काले मोटे गत्ते से इस प्रकार ढकी थी कि कोई किरण उससे बाहर न आ सके. अब वे नलिका से उच्च वेल्टेज की विद्युत धारा प्रवाहित करने लगे. उन्होंने देखा कि जब-जब नलिका से होकर विद्युत धारा गुजरती थी, सामने रखा कागज जिस पर प्रतिदीप्तिकारक रसायन का लेप चढा हुआ था, अँन्धेरे में चमकने लगता था. विद्युत धारा बन्द होते ही कागज का चमकता बन्द हो जाता था, उन्होंने यह भी देखा कि जब दोनो के बीच हथेली रखी जाती, तो उसकी हड्डियों की छाया कागज पर स्पष्ट उभर आती थी.
घटना विलक्षण थी, अस्तु उनकी अभिरुचि इसके प्रति बढी. उन्होंने गहराई से इसका अध्ययन किया और अन्ततः इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि नलिका से एक अदृष्य किरण निकलती है,जो कागज से टकराने पर प्रदीप्ति का कारण बनती है. इसका नाम उन्होंने “एक्स किरण” रखा. अपनी वेधक प्रकृति के कारण चिकित्सा जगत में इसे इतना महत्त्वपूर्ण स्थान मिल सका और टूटे-फ़ूटे अंगों की जाँच-परख में इसका प्रयोग किया जाने लगा.
सामान्य-सी लगने वाली यह घटना अपने प्रयोग के दौरान अनेक वैज्ञानिकों ने देखी थी, जिनमें प्रख्यात भौतिकविद जे,जे.थामसन भी थे, परन्तु उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया. सौभाग्यवश रोएण्टजन ने इसमें रुचि दिखायी, जिससे चिकित्सा जगत को एक अत्यन्त उपयोगी और महत्वपूर्ण किरण की जानकारी मिली. अन्यों की तरह यदि उसने भी उसकी उपेक्षा कर दी होती, तो उपचार जगत इसकी बहुमूल्य सेवाओं से वंचित रह जाता
कई बार ऎसे अवसरों पर भौतिक्शास्त्र के अनेक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत वैज्ञानिकों के हाथ लगे. आर्कमिडीज का सिद्धान्त ऎसा ही एक सिद्धांत है.
सिराक्यूज के राजा ने एक बार यह घोषणा करवायी कि उसके सोने के मुकुट के असली-नकली होने की पहचान जो बता देगा, उसे भारी इनाम दिया जाएगा. आर्कमिडीज ने भी इस घोषणा को सुन रखा था. एक बार जब वह तालाब में स्नान कर रहा था. तो उसने देखा कि डुबकी लगाने के बाद उसके भार में एक आंशिक कमी आ जाती है और हल्कापन महसूस होने लगता है. एक क्षण तक उसने इस विलक्षणता पर विचार किया. सोचा कि असली-नकली सोने के विशिष्ट घनत्व में कमी-वेशी के आधार पर इस विधा द्वारा खरापन सिद्ध किया जा सकता है. बस फ़िर पागलों की तरह “ यूरेका-यूरेका”( पा लिया, पा लिया) चिल्लाते हुए वह राजा के पास पहुँचा, अपनी बात उसे बतायी और दोनों मुकुटों में विभेद कर देने का दावा प्रस्तुत किया. राजा ने कुछ दिनों का समय देते हुए, निश्चित अवधि में काम पूरा कर लाने का आदेश दिया. आर्कमिडीज ने उसी सिद्धान्त का प्रयोग करते हुए खरे-खोटे सोने की पहचान कर ली. बाद मे यही घटना “ आर्कमिडीज सिद्धांत” के नाम से प्रसिद्ध हुई.
देखा जाए तो यह सामान्य-सी घटना थी, जो प्रायः प्रत्येक व्यक्ति नहाते समय अथवा कुँए से पानी खींचते वक्त अनुभव करता है, पर इससे पहले किसी ने इस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया. संयोगवश आर्कमिडीज ने इस पर विचार किया,तो विज्ञान का एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त हाथ लगा.
आइजक न्यूटन एक दिन अपने बागीचे में सेब के पेड के नीचे बैठे हुए थे, कि अचानक उनके सिर पर सेब का एक फ़ल गिरा. वह सोचने लगे कि आखिर यह फ़ल नीचे ही क्यों गिरा ?,ऊपर क्यों नहीं गया ?. गहन चिन्तन के उपरान्त उसने निष्कर्ष निकाला कि पृथ्वी में निश्चित रूप से किसी न किसी प्रकार की आकर्षक शक्ति है. जो वस्तुओं को अपनी ओर खींचती है. कालान्तर में यही शक्ति पृथ्वी की “ गुरुत्वाकर्षण शक्ति” कहलायी और यह प्रसिद्ध सिद्धान्त : गुरुत्वाकर्षण सिद्धान्त” के नाम से जाना गया, अब इसी सिद्धान्त का प्रयोग कर बडी-बडी भौतिक एवं खगोलीय गणनाएँ की जाती है.
ऎसी अनेक घटनाएँ हमारे दैनिक जीवन में घटती हैं, जिसमें बडॆ महत्त्वपूर्ण सूत्र-सिद्धान्त छिपे रहते हैं, पर उन्हें हम तुच्छ समझकर नजरान्दाज कर देते हैं, किन्तु वैज्ञानिक स्तर के व्यक्ति उन्हीं छॊटी घटनाओं में से बडी-बडी खोजें कर लेते हैं. इससे उन्हें जहाँ एक ओर स्वतन्त्र चिन्तन का अवसर मिलता है , वहीं दूसरी ओर वे नये आविष्कारों के श्रेयाधिकारी बनते हैं. वस्तुतः अविज्ञात का भण्डार अत्यन्त विराट एवं अपरिमित है. इसमें डुबकी लगाकर, अन्तर्मुखी होकर बहुमूल्य मणि-मुक्तक खोज निकाले जा सकते हैं. महत्त्वपूर्ण आविष्कारों का इतिहास इन्हीं सम्भावनाओं को उजागर करता है.