लघुत्तम मानव जीवन और महत्तम संसार. ब्रह्माण्ड का विस्तार इंच, फ़ुट,गज और मीलों में नहीं नापा जा सकता. उसे केवल समय ही माप सकता है, क्योंकि वह जब एक मूल निन्दु से विकसित होना प्रारंभ हुआ था, तब से आज तक बढता ही जा रहा है. प्रकाश एक सेकेण्ड में 1,86,000 मील चलता है. एक वर्ष में वह 1,86,000 x 60 x 24 x 365.1/4 मील = 5869713600000 मील चलता है. इतनी दूरी को एक प्रकाशवर्ष कहते हैं. पृथ्वी सौर-मंडल का एक अति छोटा सा ग्रह है. इससे पहले और बाद का विस्तार तो इससे भी अरबों गुणा अधिक है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह ब्रह्माण्ड 50 करोड वर्ष के घेरे में है. 10 करोड निहारिकाएं हैं जो अनेक सौर मंडलों को जन्म दे चुकी है और दे रही हैं. पीले रंग का हमारा सूर्य एक प्रकाशोत्पादक आकाशीय पिण्ड-तारा माना गया है. इसके मुख्य 9 ग्रह, लगभग 1000 अवान्तर ग्रह, अनेक पुच्छल तारे एवं उलका समूह है. इस सबके द्वारा सूर्य को चारों ओर से घेरा गया आकाश, सब मिलाकर सौर-मंडल कहलाता है. भारतीय मत के अनुसार जहाँ तक सूर्य की किरणें गमन कर सकती है, वह सब सौर-मंडल का विस्तार है. इस विस्तार का अनुमान करना ही कठिन है, जबकि सौर-मंडल सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में ऐसा है, जैसे 10 करोड मन गेहूँ के ढेर में पडा हुआ, गेहूँ का एक छोटा सा दाना. एटलस में सारी पृथ्वी का नक्शा निकालकर अपने गांव के घर की जगह ढूंढे तो उसकी माप ही नहीं निकाली जा सकेगी. ऐसी ही नगण्य स्थिति सौर-मंडल की इस विराट ब्रह्माण्ड मे है. यहाँ इस सूर्य जैसे करोडॊं सूर्य और अरबों चन्द्रमा दिन-रात प्रकाश करते रहते हैं. किंतु हमारी दृष्टि में यह विस्तार ही अलौकिक है. सौर-मंडल के विस्तार का छोटा सा अनुमान नवग्रहों के विस्तार से लगाया जा सकता है. 3000 मील व्यास वाला बुध ( मरकरी ) सूर्य से 3 करोड 60 लाख मील दूर है. यह 88 दिन में सूर्य की परिक्रमा कर लेता है. 7800 मील व्यास का शुक्र ( वीनस ) सूर्य से 67000000 मील दूर है. 224.1/2 दिन में यह सूर्य की परिक्रमा करता है. इसके बाद कहीं 7920 मील व्यास की हमारी पृथ्वी है, जो सूर्य से 93000000 मील दूर है और 335.1/4 दिन में सूर्य की परिक्रमा लगाती है. सूर्य का घेरा डालाने वाला अगला ग्रह मंगल ( मार्स ) है. इसका व्यास पृथ्वी से छोटा कुल 4200 मील है, पर यह सूर्य से 141000000 मील दूर और 687 दिन में सूर्य की परिक्रमा पूरी करता है. ब्रहस्पति (जुपीटर) का व्यास 87000 मील है और सूर्य से 483000000 मील दूर है तथा 12 वर्षॊं में सूर्य की परिक्रमा करता है. 74000 मील व्यास वाला शनि, सूर्य से 886000000 मील दूर है और 29.1/2 वर्ष में सूर्य की परिक्रमा लगाता है. वारुणी(यूरेनस) 31000 मील, वरुण (नेप्च्यून) 33000 मील व्यास वाले सूर्य से 180 करोड और 280 करोड मील दूर पृथ्वी की 84 वर्ष और 164.1/2 वर्ष में परिक्रमा लगाते हैं. सबसे अधिक दूरी का ग्रह यम(प्लूटॊ) सूर्य से 370 करोड मील दूर है. 3000 मील व्यास वाले इस बुध के समान छोटॆ से ग्रह को सूर्य की परिक्रमा करने में 248 वर्ष लग जाते हैं. बेचारा यम, जब तक एक चक्कर पूरा करके, फ़िर उसी स्थान पर पहुंचता होगा,तब तक पृथ्वी पर, कम से कम 3 पीढियां जन्म लेकर मर चुकी होती है. वे अनुमान भी नहीं लागा पाते होंगे कि क्या यह वह पृथ्वी है ,जिसे पहले चक्कर में कुछ और ही ढंग और तरीके से देख गए थे.
ये नौ तो प्रमुख ग्रह हैं,उन्हीं का विस्तार इतना विशाल है. अभी तो 500 करोड और भी तारे, धूमकेतु और क्षुद्र ग्रह हैं, जिनके व्यास 10 मील से लेकर कई-कई हजार मील के हैं. सारा सौर-मंडल महादानव की तरह है. यदि कहा जाए तो तो वह हजार भुजाओं वाले सहस्त्र-बाहु, अनेक मुँह वाले दशानन और अपने पॆट में सारी सृष्टि भर लेने वाले लम्बोदर की तरह विकराल हैं और मनुष्य इस तुलना में रेत के एक कण, सूई के अग्रभाग से भी हजारहवें अंश जितना छोटा. जब वह चलता है तो मनुष्य को वह चींटी, मच्छरों की तरह नगण्य मानकर ,मारता-कुचलता निकल जाता है, उसे कभी ध्यान ही नहीं आता कि इतने छॊटॆ कोई जीव हैं. उसी प्रकार सौर-मंडल की यह अदृष्य शक्तियां, हमें कुचलती और क्षुद्र दृष्टि से देखतीं निकल जाती होगीं, और हम उनका कुछ बिगाड नहीं सकते हैं?. चन्द्रमा सबसे पास का उपग्रह है. यहाँ थोडॆ से लोग हो आए हैं. बुध तक पहुँचने में 210 दिन, शुक्र तक 292, मंगल तक 598 ,ब्रहस्पति तक 2724, शनि तक 4416, यूरेनस ,नेपच्यून तथा यम तक पहुँचने मे क्रमशः 32 वर्ष, 61वर्ष और 92 वर्ष चाहिए,जबकि मनुष्य की अधिकतम आयु 100 वर्ष है. अर्थात यदि कोई बाल्यावस्था में चले तो यम का चक्कर लगाकर आए तो वह बीच में ही मर जाएगा. अपनी सीमित भौतिक शक्ति, परिस्थिति और अपनी लघुत्तम क्षमता लेकर मनुष्य अपने सौर-मण्डल के विस्तार को ही नाप सकने में समर्थ नहीं है तो फ़िर विराट ब्रह्माण्ड को जान लेना उसके लिए कहां संभव है ?.