रहस्यमय ध्वनियाँ -----------------
सृष्टि कि उत्पत्ति ही शब्द-ब्रह्म से हुई बताई जाती है और कहा जाता है कि तभी से यह सूक्ष्म नाद इस विश्व-ब्रह्ममाण्ड में गुंजायमान होता है. साधना विज्ञान के पथिक साधना के उच्च सोपानमें चढकर इस नाद को पकडते, सुनते एवं विभिन्न प्रकार की जानकारियाँ अर्जित करते हैं, पर कई बार इस प्रकार की भौतिक ध्वनियाँ न जाने कहाँ से उत्पन्न होती, लोगों को सुनाई पडती और थोडी देर पश्चात स्वतः विलीन हो जाती है., जबकि सब कुछ आश्चर्यजनक लगता है. आये दिन इस प्रकार की घटनाएँ घटती रहती है. बताया जाता है कि मध्य एशिया के आठ लाख किमी. क्षेत्र में फ़ैले हुए गोबी मरुस्थल के तकलामारान प्रदेश के अन्दास पारसा नामक स्थान पर यदा-कदा ऎसी ही मधुर ध्वनि निनादित होती है. स्थानीय लोगों द्वारा सुनी जाती है. इसकी अवधि 15-20 मिनट तक होती है. तत्पश्चात स्वतः बंद हो जाती है. एक अमेरिकी रेडियो कम्पनी ने टेप करके इस संगीत को रेडियो से प्रसारित किया, तो कितने ही श्रोताओं की आँखों से अनायास आँसू बहने लगे. कहा जाता है कि यह ध्वनि इतनी कारुणिक है कि अन्तस्तल को छू जाती है. इस संगीत के रहस्य का पता लगाने का प्रयास तब से अब तक अनेकों बार किया जा चुका है, पर हर बार विफ़लता ही हाथ लगी है. एक बार इस पूरे क्षेत्र का कई दिनों तक आडियो रिकार्डिंग व वीडियो कैमरा लगा कर फ़िल्माकंन किया गया, किन्तु फ़िर भी रहस्य पर से पर्दा न हट सका.
“वण्डरबुक आफ़ दि स्ट्रेंज फ़ैक्टर्स” नामक पुस्तक में नील नदी के तट पर स्थित कारनक के खण्डहरों में दो विशालकाय प्रतिमाओं की चर्चा की गई है. इनकी परस्पर दूरी 1(एक) किमी है. इन दोनो में से एक विग्रह तो पत्थर की सामान्य प्रतिमा जान पडती है, पर दूसरी के निकट जाने से बोलने की कुछ अस्फ़ुट ध्वनियाँ सुनाई पडती है. ऎसा लगता है मानो आगन्तुक से वह कुशलक्षेम पूछ रही हो. जब से यह घटना प्रकाश में आयी है, तब से विश्व के कई शोध दलों ने वहाँ पहुँचकर इसका कारण जानने का प्रयास किया है, पर अब तक उन्हें निराशा ही हाथ लगी है. मूर्ति के भीतर छुपाये गए किसी सम्भावित रेडियो सेट का पता भी लगाने का प्रयास किया गया, किन्तु कोई सूत्र-संकेत हाथ नहीं लगा, जिसमें ऎसा अनुमान लगाया जा सके.
इस प्रकार की एक घटना चेकोस्लोवाकिया के उस नदी तट पर घटित हुई, जो देश के मध्यवर्ती भाग से होकर बहती है. हुआ यों कि सन 1980 की एक शाम कुछ लोग नदी के किनारे सैर कर रहे थे. अभी 15 मिनट भी नहीं बीते थे कि पास से ही एक सुरीली धुन आती सुनाई पडी. पहले तो पर्यटकों ने सोचा कि कोई पर्यटक अपनी बाँसुरी बजा रहा है, मगर आस-पास जब कोई अन्य दिखाई नहीं पडा तो वे आश्चर्य में पड गए. खोजबीन के लिए ध्वनि-स्त्रोत की ओर बढे, पर वह क्या ! ज्यों-ज्यों वे स्त्रोत की ओर आगे बढते, त्यों-त्यों वह खिसकता चला गया. इस क्रम में वे अन्ततः नदी तट पर जल में पहुँच गए. अब संगीत, नदी के जल के अन्दर से आता सुनाई पडने लगा. कुछ ही दिन पूर्व कुछ सिपाही मारे गए थे. वे इसे उन्हीं मृतात्माओं की कारस्तानी समझ कर डरकर भाग गए, पर अब भी आधिकारिक रुप से यह नहीं कहा जा सकता कि यह किन्ही भूतों का कौतुक है.
कबाई टापू हवाई द्वीप के अन्तरगत आता है. होनोलूलु से लगभग 12 किमी दूरी पर स्थित इस टापू पर एक 20 मीटर ऊँची पहाडी है, जो रात के समय अजीबो-गरीब ध्वनियाँ पैदा करती है. उस सुनसान पहाडी के आस-पास मीलों दूर तक कोई गाँव नहीं है. वहाँ जब रात का अँधेरा घिरता है, तो कुत्तों के भौंकने की आवाजें आने लगती हैं. दिन के उजाले में उस पहाडी पर चढ कर कई खोजी दलों ने घूम-घूम कर कुत्तों को ढूँढने का प्रयास किया, पर प्रयत्न निष्फ़ल गया. वहाँ कुत्ते तो क्या, कोई जानवर भी दिखायी नहीं पडॆ.
अफ़गानिस्तान में काबुल के निकट एक रेगिस्तानी मैदान है. उस मैदान से दिन के समय जब सूर्य अपनी प्रचण्ड किरणें बिखेर रहा होता है, ऎसी आवाजें आती हैं, मानो कई घुडसवार एक साथ शनैः-शनैः निकट आते जा रहे हों, जबकि वास्तविकता यह है कि उस रेतीले मैदान में घुडसवार कभी जाते ही नहीं. ऊँटॊं की सवारी भी उस क्षेत्र में नहीं की जाती, क्योंकि उसके आगे दूर-दूर तक का क्षेत्र जनहीन है. ऎसे में ध्वनि का होना निश्चय ही आश्चर्य है.
न्यूयार्क में एक बार लोग रेडियो प्रसारण सुन रहे थे. कॊई बडी अच्छी धुन आ रही थी. सभी उसमें खोये हुए थे, तभी अचानक संगीत बंद हो गया और नारी स्वर में ऎसी अबूझ आवाजें आने लगीं, जिन्हें कोई नहीं समझ सका. बाद में जब रेडियो स्टेशन से पत्र-व्यवहार कर उक्त घटना की जानकारी चाही गई, तो अधिकारियों ने ऎसी किसी विचित्र स्वर के बारे में अपनी अनभिज्ञता प्रकट की. उन्होंने कहा कि उस दिन कोई ऎसा रिकार्ड बजाया ही नहीं गया था एवं संगीत कार्यक्रम के दौरान केवल धुनें ही बजायी गयी थीं.
इजराइल के सिनाई अंचल में स्थित पहाडी से रह-रह कर घण्टियों की आवाज आती है. इसी कारण उसका नाम “बैल माउण्ट” रख दिया गया है. घण्टियों के बजने का कारण अब तक अविज्ञात है और न ही यह ज्ञात हो सका, कि यह आवाजें पर्वत से कैसे, क्यों और कहाँ से उत्पन्न होती हैं.
इराक में जहाँ दजला नदी पहाडी भाग से गुजरती है, वहाँ से करीब दो किलोमीटर दूर एक गुफ़ा है. बताया जाता है कि यह कन्दरा उस समय की है, जब कभी यहाँ सभ्यता का विकास हुआ था. इस गुफ़ा की विशेषता यह है कि इसमें सदा एक प्रकार की सुमधुर ध्वनि निनादित होती रहती है, जिसे सुनने के लिए लोग समय-समय पर इकठ्ठा होते रहते हैं. कन्दराएँ तो इस क्षेत्र में कई हैं, पर संगीत लहरियाँ सिर्फ़ एक ही से निकलती हैं. इसकी इसी विशेषता के कारण लोग “म्यूजिकल केव” के नाम से पुकारते हैं.
प्रसिद्ध अँग्रेज लेखक और पर्यटक पाल ब्रण्टन ने अपनी पुस्तक “इन सर्च आफ़ एन्शियेण्ट इजिप्ट” में एक स्थान पर लिखा है कि नील नदी में 20 मील उत्तर में एक अत्यन्त प्राचीन खण्डहर है. यह कोई एक चौथाई किमी क्षेत्र में फ़ैला हुआ है. रात को कोई वहाँ जाता है, तो बच्चों के खिलखिलाने की आवाजें सुनाई पडती है. ज्ञातव्य है कि वह स्थान पाँच मील की परिधि में जनहीन है. अतः रात के समय वहाँ किसी के आ पहुँचने की सम्भावना नगण्य जितनी दीखती है और यदि इसे सही मान भी लिया जाए, तो प्रतिदिन रात के समय यह घटना वहाँ कैसे घट सकती है ?. मजे की बात यह है कि दिन में वहाँ सब कुछ सामान्य रहता है.
यह रहस्यमय ध्वनियाँ क्यों व कैसे उत्पन्न होती हैं एवं इनका स्त्रोत क्या है? यह अब तक अविज्ञात है और पदार्थ विज्ञान के लिए इनका उद्घाटन चुनौतीपूर्ण बना हुआ है,. सम्भव है, मनुष्य जब अध्यात्म विज्ञान का अवलम्बन लेकर सामान्य से ऊपर के आयामों में पहुँचेगा, तो वह न सिर्फ़ इन भौतिक ध्वनियों के रहस्य को अनावृत कर सकेगा, वरन उस अभौतिक एवं सूक्ष्म दिव्य ध्वनियों को भी सुनने, समझने और लाभ उठाने में सफ़ल-समर्थ बन सकेगा, जो अनादिकाल से इस विश्व-ब्रह्माण्ड में तरंगायमान है, और सुपात्रों को समर्थ सहयोग प्रदान करने के लिए आकुल-व्याकुल भी.
पहाड से सोना बरसता है और सोने से शैतान ---------------------------------
आइलीन बीवर के जीवन का वह सबसे आधिक रोमांचक दिन था जब उसने किसी पहाड को स्वर्ण जैसी चमकती हुई धातु उगलते देखा. खेमे पहाडी के कुछ ही दूरी पर थे. जहाँ बीवर के अन्य सब सहकर्मी प्रगाढ निद्रा में सो रहे थे. बीवर अकेले ही उठकर गया और धातु का एक टुकडा हाथ में लेकर देखा तो विस्मित रह गया. शत-प्रतिशत शुद्ध सोना था. जल्दी-जल्दी में उसने काफ़ी टुकडॆ इकठ्ठे किए और पडाव की ओर चलने के लिए खडा हुआ तभी उसके पैरों के नीचे की जमीन धँसती हुई जान पडी. उसने देखा खेमे का कहीं पता भी नहीं है. वह जली हुई राख की ढेरी में परिवर्तित श्मशान जैसा लग रहा है.
बीने हुए सोने के ढेर सारे टुकडॆ वहीं बिखर गए. भय से शरीर काँप उठा. बात क्या है यह समझने के लिए उसने फ़िर दृष्टि पीछे घुमाई तो एक और विलक्षण दृष्य देखाई दिया. पर्वत की चोटी पर से हजारों छायाएँ उतर रही थीं और भयंकार आवाज के साथ उसी ओर सेना के सिपाहियों की तरह दौडी आ रही थी. बीवर चिल्लाया और अचेत होकर वहीं गिर गया. चेतना वापस लौटी तब वहाँ कुछ भी नहीं था. अब उसे भागते ही बना. बीवर ने फ़िर कभी उधर जाने की हिम्मत नहीं की.
सोलह वर्ष बाद ठीक वैसी ही घटना मैक्सिको के युवक पैरेलटा के साथ घटी. उसके भी सभी साथी इस अभियान में मारे गए थे, वह तो उसका भाग्य था जो किसी तरह वह स्वयं शैतानी शिकंजे से बचकर निकल आया.
पाइलीन बीवर और डान पैरेलटा दोनों ने अपने-अपने संस्मरण छपवाये तब लोगों को सोना बरसाने वाले इस अद्भुत पहाड का पता चला. जिसके बारे में यह कहा जाता है कि आज तक वहाँ सोने के लालच में जो भी गया जीवित नहीं लौट पाया, जो जिन्दा लौटा वह सोने का एक कण भी नहीं ला पाया है, हाँ, वह भय अवश्य लाया जिससे बाद में फ़िर उसने उधर जाने की कभी भी हिम्मत नहीं की. यह पहाड अमेरिका के अरिजोना प्रांत में पाया जाता है और आज तक वह प्रकृति के एक विलक्षण आश्चर्य के रुप में विद्धमान है. अरिजोना रुस के साइबेरिया प्रांत जैसा क्षेत्र है, जिस तरह साइबेरिया अत्यन्त विकिरण वाला क्षेत्र है वैसे ही यह भी विचित्र आश्चर्यों से परिपूर्ण है. एक मील लम्बा और 600 फ़ीट गहराई वाला बहुत बडा क्रेटर जो किसी उल्का पिण्ड के आघात से बना बताया जाता है, यहीं पर है. इससे बडा छः मील लम्बा और सात सौ फ़ीट वाला क्रेटर केवल कनाडा में है और कहीं इतना बडा क्रेटर नहीं है.
डान पैरालटा की यात्रा के दो वर्ष बाद सोने के लालच में दुनिया के सैंकडॊं लोगों ने अरिजोना की यात्रा की, इसमे अमेरिका के ही युवक सबसे अधिक संख्या में गए और अपने प्राणॊं की आहुति चढाकर शांत हो गए.
एक बार अमेरिका के प्रसिद्ध डाक्टर लवरेन रोअली भी उधर पहुँच गए. लालच चाहे जिसे पागल कर सकता है. लवरेन किसी प्रकार पहाडी के पास तक पहुँचने में सफ़ल हो गए, पर घूर्णन जैसी एक भयंकर आवाज और सैंकडॊं मायाविनी छायाओं ने घेर लिया. थॊडी देर में उनका शरीर मृत होकर पडा था. इस मृत्यु ने अमेरिका में खलबली मचा दी. डाक्टरी जाँच से पता चला कि रोअली का रक्त चूस लिया गया है, पर कैसे, यह पता किसी भी तरह नहीं चल पाया. तब से इस पहाड का एक नाम “ खूनी पहाड” भी पड गया.
इस पहाड के बारे में विचित्रताएँ हैं, वह यह कि वह निश्चित समय पर ही सोना बरसाता है, उसी प्रकार वहाँ पर जितनी भी हत्याएँ अब तक हुई, वह दिन के ठीक चार बजे हुई. चार बजे ही इस चोटी की परछाई पृथ्वी को छूती है. मरने वालों के शरीरों का एफ़.बी.आई. द्वारा जाँच की गई, उनसे पता चलता है कि यहाँ आकर जिस की भी हत्या हुई, उसकी मृत्यु रक्त चूस लेने के कारण हुई, जबकि किसी भी शव में घाव या चोट का कोई निशान नहीं मिलता. आस्ट्रेलिया के युवक फ़ैंज हेर होमर तथा होनोलूलू के कई व्यापारियों की हत्याएँ इसी पहाड के किन्हीं तांत्रिक रहस्यों द्वारा ही हुई. सबसे रोमांचक प्रसंग जर्मनी के इंजीनियर वाल्ज का है. बाल्ज इस पहाड के रहस्यों का पता भले ही नहीं लगा पाया हो पर उसकी खोज में संघर्ष का तथा सोना प्राप्ति का सबसे अधिक आनन्द उसी ने पाया.
वाल्ज इंजीनियर बनकर एरिजोना की खानो में काम कर रहा था तभी इसके मन में सोना बरसाने वाले पहाड के रहस्य जानने की तीव्र जिज्ञासा जाग्रत हुई. वाल्ज का अनुमान था कि पहाडी का रहस्य अपैची कबीले के प्रमुख तान्त्रिक के हाथ में ही हो सकता है, क्योंकि वही लोग उसके आस-पास बसे हैं. श्वेतों से उन्हें बडी घृणा होती है. कई बार अमेरिकियों ने उनका विधिवत संहार किया था, जिससे उनके मन में गोरों के प्रति और भी तीव्र घृणा के भाव हैं. 1872 का “अपैची लीप” विश्व प्रसिद्ध है, जिसमें जान वाकर ने अपैचियों को बुरी तरह काटा था. इसके बाद अपैचियों के सरदार गैरोनियो ने गोरों पर गोरिल्ला धावे किए, उन्हें नष्ट करने के लिए 1886 में जनरल नेल्सन ने युद्ध किया था और उन्हें पीछे धकेल दिया था, तब से यह तान्त्रिक इसी पहाडी पर शरण लिए हुए हैं. जो भी आज तक वहाँ गया जीवित वापस नहीं लौट सका.
वाल्ज ने चतुराई से काम लिया. उसने एक अपैची युवती के.टी. से प्रेम किया और उसी से शादी कर ली. आदिवासियों का सदभाव प्राप्त करने के लिए यह एक बडी बात थी जिससे वाल्ज को पहाड तक आने-जाने का रास्ता खुल गया. उसने केन.टी. से रहस्य जानने के प्रयास किए पर उसे शीघ्र ही मालूम हो गया कि के.टी. क्या तमाम आदिवासियों से कुछ ही तान्त्रिक ऎसे हैं, जो इस रहस्य को जानते हैं, सब नहीं.
उसने पहले तो केन.टी. के सहयोग से काफ़ी सोना इकठ्ठा किया. फ़िर जैकब विजनर नामक युवक से मित्रता करके इस पहाड के अन्तरंग रहस्यों का पता लगने का काम शुरु किया. वह कई बार सामने से पहाड की ओर गया पर हर बार उसकी भयावनी छायाऎँ उसकी ओर झपटी. हर बार उसे जान बचाकर भागना पडा, इन्हीं प्रयत्नों में केन.टी. का अपहरण कर लिया गया और अपैचियों ने उसकी जीभ काट ली. अन्ततः निराश वाल्ज ने रास्ता बदला और लम्बा रेगिस्तान पार कर वह पीछे से पहाडी के पास पहुँचने में सफ़ल हो गया.
रेगिस्तानी मैदान में तम्बू गाडकर वालज जैकब के साथ बाहर निकला. अभी वह कुछ ही दूर जा पाया था कि उसे आग की चिन्गारियाँ अपनी ओर बढती दिखाई दी. रात थी, पर देखते-देखते दिन का सा प्रकाश फ़ैल गया. उस प्रकाश में विचित्र भयंकरता थी. दोनो ने भागते-भागते एक पत्थर को छुआ तो देखा वह बिल्कुल ठण्डा था. वह रुक गया. पीछे मुडकर देखा अब बरसने वाली लपटॆं भी शान्त हो चली थीं, इसलिए वह फ़िर पहाड की ओर लौट पडा. उसे केन.टी. से इतना मालूम हो गया था कि पहाड पर अन्दर जाने के लिए एक सुरंग जाती है. वाल्ज कुछ देर के परिश्रम से सुरंग का दरवाजा पा गया. सहमता हुआ भीतर घुसा. वहाँ उसे कुछ कमरे और हजारों की संख्या मे नर-कंकाल बिछे मिले. देखने से लगता था यह कंकाल हजारों वर्षॊं पूर्व तक के हैं. आगे बढने पर उसे वह खड्ड भी दीख गया जहाँ सोने का लावा निकलता था, पर सोने के वास्तविक स्त्रोत का उसे पता नहीं चल सका, न ही आगे का रास्ता मिल सका. वहाँ की भीषण गर्मी के कारण आगे बढना कठिन हो गया. दलदल के पास उन्हें बहुत-सा सोना भी मिला पर लौटते समय तान्त्रिकों ने उन्हें देख लिया. जैकब तो वहीं मार दिया गया. वाल्ज किसी तरह बच निकला. 1891 में उसकी मृत्यु हो गयी. उसकी डायरी के सहारे बरेनी आदि ने भी यात्राएँ कीं, पर सोना बरसाने वाले इस पहाड के मूल स्त्रोत का कोई पता न लगा सका. 1959 में स्टेनले फ़र्नेण्ड तथा फ़रेश ने पुनः इस पहाड के रहस्यों का पता लगाने का प्रयत्न किया, जिसमें फ़रेश तो मारा गया और स्टेनले फ़िर निराश लौट आया. इस तरह आज तक सोना बरसाने वाले इस पहाड की वास्तविकता पर पर्दा ही पडा हुआ है, न कोई मृत्यु के कारणों को जानता है, न सोने के मूल स्त्रोत को.