भारत में सबसे बडा—सबसे छॊटा—सबसे ऊँचा तथा सबसे लम्बा ------------------------------------------------------------------------------------
सबसे ऊँचा पर्वत के-2 (8611 मीटर)
सबसे लम्बी नदी गंगा नदी (2510 किमी)
सबसे ऊँचा झरना जोग या गरसोप्पा (290 मीटर)
सबसे बडी झील बूलर झील(कश्मीर)
सबसे बडा राज्य (क्षेत्रफ़ल के अनुसार) राजस्थान (3,42,239 वर्ग किमी)
सबसे बडा राज्य(जनसंख्या के अनुसार) उत्तरप्रदेश
सबसे अधिक आबादीवाला नगर *मुंबई 12,655,220 (2014 के अनुसार)*
सबसे घनी आबादी वाला राज्य *प.बंगाल (904 व्यक्ति प्रतिवर्ग किमी=2001 के अनुसार)
सबसे लम्बा पुल महात्मा गांधी सेतु (गंगा-पटना-5,575 किमी)
सबसे ऊँचा दरवाजा बुलन्द दरवाजा,फ़तेहपुर सीकरी(आगरा)54 M
सबसे लम्बी सुरंग जवाहर सुरंग( जम्मु-कश्मीर 1.1/2किमी)
सबसे बडा अजायबघर कोलकाता
सबसे बडा चिडियाघर जूलोजीकल गार्डान्स, कोलकाता
सबसे लम्बी सडक ग्रांड ट्रंक रोड(2400किमी)
सबसे बडा डेल्टा सुन्दर वन (12,872 वर्ग किमी)
सबसे ऊँची मीनार गोल गुम्बज बीजापुर
सबसे बडी मस्जिद जामा मास्जिद, दिल्ली
सबसे बडा रेल्वे पुल सोन नदी का पुल (बिहार)
सबसे ऊँचा बाँध भाखडा बाँध (सतलज नदी पर)
सबसे लम्बी ट्र्रेन(विद्धुत) राजधानी एक्सप्रेस(दिल्ली से कोलकाता)
सबसे बडा लीवर पुल हवडा ब्रिज, (कोलकाता)
सबसे बडी कृत्रिम झील गोविन्द सागर, भाखरा
सबसे अधिक वर्षा का स्थान मासिनराम( मेघालय)
सबसे अधिक वनों का राज्य मिजोरम( 75.5% वनाच्छादित)
सबसे बडा रेगिस्थान थार (राजस्थान)
सबसे ऊँची मूर्ति ऋषभ देव (खरगोन.म.प्र.)84मीटर
सबसे बडा गुफ़ा मन्दिर कैलाश मन्दिर, एलोरा
सबसे बड कारीडोर रामेश्वर मन्दिर (12.1 मीटर)
सबसे बडा पशुओं का मेला सोनपुर मेला (बिहार)
(10) मरियम के आँसू व अन्य अनसुलझी पहेलियाँ
हम संसार के बारे में कितना जानते है? शायद नहीं के बराबर. फ़िर भी जितना हम उसे अब तक ज्ञात कर सके हैं,उससे कहीं ज्यादा वह अविज्ञात है. जितना भी हम अब तक जान पाए हैं,उन्हें लौकिक की श्रेणी में रख दिया गया और जिनके रहस्य जानना बाकी है, उन्हें या तो आश्चर्य की श्रेणी में अथवा अचम्भा, अनबूझ, अज्ञात, अलौकिक न जाने कितने ही नामों से पुकारा जाने लगा. ऎसे अनेकानेक रहस्यों में प्रकृति और ब्रह्माण्डगत पहेलियों से लेकर जड़ जगत के जड़ पिण्डॊं की अद्भुतताएँ सम्मिलित हैं. यही अद्भुतताएँ यदा-कदा प्रकट होकर हमें चमत्कृत करती रहती है.
एलेन डेमेट्रियस नामक एक व्यापारी जो पिट्सवर्ग का रहने वाला था. उसकी आर्ट गैलेरी में अनेक पेंटिंग्स एवं प्रतिमाएँ रखी हुई थीं. इन्हीं प्रतिमाओं में जापानी लड़की की एक काँसे की प्रतिमा भी थी. एक दिन अचानक यह मूर्ति रोने लगी. रोती हुई प्रतिमा को देखकर उसने सोचा शायद पानी के झींटॆ पड़ जाने के कारण ऎसा कुछ हुआ होगा. उसने एक कपड़े से उसे पोंछ दिया, लेकिन आश्चर्य कि वह प्रतिमा पुनः गीली हो गई.. डेमेट्रियस से उसे खूब रगड़कर साफ़ किया, उसे सुखाया, किन्तु कुछ क्षण पश्चात वह पुनः नम हो गई. इस प्रकार कई प्रयासों के बाद डेमेट्रियस को यह निश्चय हो गया कि आँखों से लुढ़कने वाला तरल असावधानी वश पड़ने वाला कोई जल-बिन्दु नहीं वरन उस मूर्ति के रूदन की परिणति है.
नेत्रों से बहने वाला पानी आँसू ही है—इसकी पुष्टि के लिए उसने रसायनवेत्ताओं को जाँच के लिए आमन्त्रित किया. कई मूर्धन्य रसायनज्ञों ने इसकी अलग-अलग जाँच-पड़ताल की, पर सभी का निष्कर्ष एक ही था कि चक्षु से बहने वाला तरल मानवी आँसू ही है. उल्लेखनीय है कि प्रतिमा ने उसी दिन से रोना आरम्भ किया, जिस दिन हिरोशिमा में अणु बम गिराया गया था. विलाप के कारण का पता तो अब तक नहीं चल सका. सम्भव है कि अगणित दिवंगत लोगों की प्रतिमाएँ अपनी सम्वेदना प्रकट कर रही हों.
आइलैण्ड पार्क, न्युयार्क के कैटसोनिस दम्पत्ति से जुड़ी एक अन्य विलक्षण घटना देखने में आयी. गृहस्वामिनी पगोना धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी. वह प्रतिदिन सोने से पहले मरियम की मूर्ति के सामने खड़ी होकर प्रार्थना किया करती थी. उसकी यह दिनचर्या लम्बे समय से चली आ रही थी.
एक दिन, वह मरियम की मूर्ति के समक्ष खड़ी प्रार्थना में लीन थी. उसकी आँखें मरियम की मूर्ति पर टिकी हुई थी. तभी अकस्मात प्रतिमा की आँखों से आँसू झरकर कपोलों पर बहने लगे. यह देखकर उसे आश्चर्य हुआ. उसने अपना हाथ बढ़ाकर उन बिन्दुओं को स्पर्ष कर देखा. सचमुच में वे अश्रु-कण ही थे. उसने अपने पति पैगियोनाइटिस को आवाज देते हुए बुलाया और रोती हुई प्रतिमा के बारे में कह सुनाया. पैगियोनाइटिस खुद एक रसायनशास्त्री थे. उन्हें भी यह देखकर आश्चर्य हुआ कि एक निर्जीव प्रतिमा आखिर रो कैसे सकती है ?. उन्होंने नेत्रों से बह रहे आँसू की कुछ बूंदे इकठ्ठी कीं और प्रयोगशाला में ले गए. जाँच के पश्चात उन अश्रु-कणॊं में वे सारे गुण विद्यमान थे, जो मानवी आँसू में पाए जाते हैं.
मरियम की वह मूर्ति पूरे एक सप्ताह तक रोती रही. यह बात पूरे शहर में फ़ैल गयी. अब दर्शकों का लम्बा ताँता वहाँ लगने लगा. लोगों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए उन्होंने उस मूर्ति को सैण्ट पाल गिरजाघर में रखवा दिया.
इसी तरह की एक विचित्र घट्ना सन 1920 में आयरलैण्ड में दिखाई पड़ी. राष्ट्रवादी आन्दोलन सिन-फ़िन को अवैध घोषित कर ब्रिटिश सरकार ने उस पर निषेध लगा दिया था. इससे क्रुद्ध होकर आन्दोलनकारियों ने वहाँ नियुक्त सैनिकों से गुरिल्ला युद्ध छॆड़ दिया. भयंकर मार-काट मची. सैकड़ॊं की जाने गईं. और करोड़ों की सम्पत्ति बर्बाद हो गई. अराजकता अपने चरम पर थी. क्रुद्ध भीड ने टेम्प्लीमोर के टाउनहाल को जलाकर राख कर दिया. इसके साथ ही अन्य इमारतें भी भस्म कर दी गईं.
इस अग्निकाण्ड के ठीक एक सप्ताह बाद वहाँ के एक धार्मिक नेता टामस ड्वान के घर रखी महापुरुषॊं , सन्तों और देवियों की सभी मूर्तियों से अचानक खून बहने लगा. लगातार एक महिने तक चलने के बाद रक्त-स्राव स्वतः बंद हो गया. पत्थर की मूर्तियों से मानवी रक्त निकलने के रहस्य का किसी भी प्रकार से पता नहीं लगाया जा सका. उक्त प्रकरण का उल्लेख करते हुए चार्लस फ़ोर्ट ने अपनी पुस्तक “ दि कम्पलीट बुक्स आफ़ चार्ल्स फ़ोर्ट” में लिखा कि जितने दिन ड्वान के घर की मूर्तियाँ में रक्त-स्राव जारी रहा, उतने दिन वहाँ एक अलौकिक शक्ति की अनुभूति होती रही. वहाँ कोई लाचार-बीमार व्यक्ति आता, वह आश्चर्यजनक ढंग से स्वस्थ हो जाता था. लोग इसे संत प्रतिमाओं का आशीर्वाद मानते और स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर फ़ूले नहीं समाते थे.
इसी तरह की एक अजीबो-गरीब घट्ना सन 1968 में ब्राजील के “पोर्टॊ एलिगर गिरजाघर” में प्रकाश में आयी. उस चर्च में करीब तीन सौ वर्ष पुरानी ईसा मसीह की लकड़ी की एक क्रूस मूर्ति रखी हुई है. अकस्मात उस मूर्ति से रक्त बहने लगा. कुछ ही समय में ईसा के हाथ-पैर, कंधे रक्त-रंजित हो उठे. खून की परीक्षा करवाने पर मानवी रक्त पाया गया. आशंका-निवारण के लिए कई विशेषज्ञों ने काष्ट-प्रतिमा की गहराई से छानबीन की, किंतु किसी तरह के सन्देह की कोई गुंजाइश नजर नहीं पायी गई. यह रहस्य अब तक अविज्ञात ही बना हुआ है.
इससे मिलता-जुलता एक प्रकरण उत्तरी स्पेन के सैनटैण्डर शहर के नजदीक “लिम्पियास चर्च” का है. इस गिरजाघर में ईसा मसीह की लकड़ी में उत्कीर्ण एक सुन्दर क्रूस-प्रतिमा है. अचानक इस मूर्ति ने अद्भुत चेष्टाएँ करनी प्रारम्भ कर दी. कभी ईसा के नेत्र-गोलक दाएँ से बाएँ घूमते प्रतीत होते, तो कभी विपरीत दिशा में. कभी गर्दन में हलचल होती तो, यदा-कदा भौंहें गतिशील दिखाई पड़तीं. कभी चेहरे की भंगिमा बदलती रहती. कभी करूणा उमड़ पड़ती, तो कभी कठोरता. कभी गम्भीरता का पुट विराजमान होता, तो कुछ पल बाद ही अधरों पर मृदु-हास्य खेलता रहता, अगले ही पल उसमें एक अजीब भाव-शून्यता भी नाचने लगती.
इस घटना की खबर पूरे शहर में आग की लपटॊं की तरह फ़ैल गई. लाखों की संख्या में लोग देखने आने लगे. सबके अपने-अपने अनुभव थे. इस भीड़ में एक चिकित्साशात्री डा.मैक्सीमिलयन ओर्ट्स भी थे. उन्होंने ईसा के चेहरे का, सात गज दूर से, एक बायनाकुलर्स के माध्यम से, कई घण्टॆ तक अध्ययन किया. जैसे ही उन्होंने अपना यन्त्र प्रतिमा के चेहरे पर केन्द्रित किया, एक ताजा खून की बूँद दाहिने नेत्र से ढुलकते हुए कपोलों पर छलक आयी. डाक्टर ने अपनी आँखों से यन्त्र हटाया, रक्तस्राव अब भी यथावत हो रहा था. उन्होंने गहराई से निरीक्षण किया और इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि उन शोणित बिन्दुओं में जीवन है.
विलक्षणताएँ रहस्य परिधि में तभी तक बंधी रहती है, जब तक उसका कारण न जाना गया हो. कारण जान लेने के बाद फ़िर वह अनबूझ या अज्ञात नहीं रह जातीं. ज्ञात से अज्ञात एवं स्थूल से सूक्ष्म की ओर बढ़ने का हमारा क्रम लंबे समय से चला आ रहा है और अनन्त काल तक चलता रहेगा, किंतु भौतिक स्तर पर होने वाले प्रयासों की भूमिका फ़िर भी स्थूल बनी रहेगी. आज के विज्ञान ने निश्चित ही अधिक गहराई और अधिक सूक्ष्मता से प्रवेश किया है, इसके बावजूद उसका स्तर स्थूल बना हुआ है. प्रयास तब तक भौतिक स्तर पर जारी रहेंगे, रहस्यों को समझ पाना असम्भव बना रहेगा.