प्राणियों को मिला प्रकृति का अद्भुत अनुदान
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यह निर्विवाद सत्य है कि अन्य प्राणियों की तुलना में मनुष्य को बुद्धि की मात्रा अधिक मिली है. इसका मतलब यह नहीं है कि अन्य जीव-जन्तु सर्वथा असहाय हैं. इनमें से अनेकों को ऎसी विशेषताएँ प्राप्त हैं, जिसके लिए मनुष्य को ईर्ष्या भी हो सकते है. निःसन्देह कितनी ही विशेषताएँ अन्य प्राणियों को ऎसी उपलब्ध है कि यदि वे मनुष्य के शरीर के अनुपात में उन्हें भी मिली होती तो वह कल्पित देव-दानवों जैसा समर्थवान होता.
रेगिस्तान में पानी का इतना अभाव है कि मनुष्यों के लिए भी दुर्लभ है तो ऊँट को कहाँ से उपलब्ध करवाया जाए ?.किन्तु वह एक ही समय में सत्तर लीटर तक पानी पी जाता है. इतना पानी वह अपने भीतर की थैली में सुरक्षित रखता है जिसका उपयोग वह कडी धूप में किया करता है.
जंगल का राजा कहलाने वाला शेर यों तो किसी का भी आसानी से शिकार कर लिया करता है. किन्तु जिराफ़ उसे पाँच मील दूर भी दीख जाए तो वह पास के अन्य शिकार को छॊडकर उसे मारने दौड पडता है क्योंकि जिराफ़ का माँस उसे किसी गुलाब जामुन या रसगुल्ले सा स्वादिष्ट लगता है. किन्तु प्रकृति ने जिराफ़ की खाल कुछ इस प्रकार बनाई है कि वह पेडॊं के बीच ऎसे छिप जाता है कि पास होने पर भी शेर उसे पहचान नहीं पाता.
साँप और नेवले की दुश्मनी से सभी परिचित हैं. सर्प के आक्रमण के समय नेवला सतर्कता से एक ओर हट जाता है. वह बार-बार ऎसा करता है और सर्प को थका डालता है फ़िर थके सर्प की खोपडी कुचल देता है.
जुगनू की जगमगाहट सर्वविदित है. अपने विशेष अवयव से वह प्रकाश को टार्च के तरह जला-बुझा सकता है. उसके शरीर की लगी विशेष ग्रंथी लुसिफ़ेरिन में प्रकाश-रसायन होता है जिसे वह आक्सीजन की मदद से जगमगाहट पैदा करता है.
वेस्टाइंडीज में पाया जाने वाला कीडा जिसे “मोटर कीडा” के नाम से लोग जानते हैं, के उदर में पीतवर्ण प्रकाश निकलता है. उसके मुँह में दो दीपक एक साथ प्रज्जवलित होते हैं.
अपने अंडॊं के संरक्षण के लिए मछलियाँ पानी की सतह पर घर बनाती हैं. स्ट्रीकलबैंक नामक मछली के नर माह मई-जून में रस्सी के छॊटॆ टुकडॊं को तथा समुद्री सेवार को लेकर अपने भीतर निकाले गए धागों से बुनते हुए घर बनाते है जिसमें मादा मछली अण्डॆ देती है.
क्वींसलैण्ड की वरनेट नदी में” इरियस’ नामक मछलियाँ करीब बीस इन्च व्यास वाला गहरा वृत्त बनाकर अपने अण्डॆ देती है. ’अभियाकाभा’ नामक मछली अपने प्रजनन काल में गहरे पानी से उथले में जाकर सेवार के कोमल पौधे ढूँढती है तथा उन्हें तोडकर घोंसले जैसा बनाकर अण्डॆ देती है. ’ट्राइनकोस्टर’ मछलियाँ छोटॆ-छॊटॆ पौधों को तोडकर, हवा के बुलबुलों के साथ एक तैरता हुआ टापू बनाकर उसमें अण्डॆ देती है. ’गरई’ नामक भारतीय मछली छॊटॆ पौधों, हवा के बुलबुलों तथा अपने मुँह की लार से घर बनाकर अण्डॆ देती है. ’ह्वे” एक खतरनाक मछली है जो अपने प्रचण्ड प्रहार से बडॆ-बडॆ जलयानों को उलट देती है. यदि कोई मनुष्य धोके से उसके करीब पहुँच जाए तो वह उसके चीथडॆ मचा देती है.
इसी तरह ’शार्” मछलियाँ भी काफ़ी खतरनाक होती हैं. उनके दाँत किसी तलवार से कम नहीं होते. एक ही वार में वह अपने दुश्मन को ठिकाने लगा देती है, लेकिन कछुए की खोल पर उसके दाँतों का कोई असर नहीं होता.
’प्लूरोटैटिक्स’ नामक मछली रंग परिवर्तन में कुशल होती हैं. सागर में रहने वाली “कटिल” नामक मछली विपत्ति का आभास पाते ही अपने वातावरण व निवास-स्थल जैसा ही रंग बदल लेती है.
विपत्ति पडने पर गिरगिट अपना रंग बदल लेता है. तोते हरी शाखाओं के बीच, सफ़ेद भालू बर्फ़ के बीच, टिड्डियाँ हरी घास के भीतर इस तरह छिप जाते हैं कि उन्हें पहिचान पाना कठिन होता है.
छिपकली विपत्ति आने पर अपनी पूँछ तोडकर अलग कर देती है जिससे उसका शत्रु भ्रम में पड जाता है. लोमडी चकमा देने में माहिर मानी जाती है. शत्रु के आक्रमण से पहले ’सीही’ अपने शरीर के काँटॊं को खडा कर लेता है .कछुआ अपने हाथ-पैर अपनी खोल में छिपा लेता है. चीतल काकड और बन्दर आदि शेर या किसी अन्य खतरनाक जीव को देखकर चीख-चीखकर सबको सतर्क कर देते हैं. बबून नामक बन्दरों मं एक बन्दर खेत की मेड पर सन्तरी बनकर बैठ जाता है और खतरा देखते हे समूह को सतर्क कर देता है.
प्रकृति अपने अनुदान से केवल मनुष्य जाति को ही नहीं बल्कि सभी जीव-जन्तुओं को अपनी-अपनी आवश्यक्ता के अनुसार लाभान्वित करती है. उसकी नजरों में भले ही मनुष्य महत्वपूर्ण हो सकता है पर अन्य प्राणी तुच्छ एवं नगण्य है ऎसा नहीं सोचा जाना चाहिए.