प्रकृति की अद्भुत कारीगरी भूमध्य सागर में सारडीनिया नामक एक द्वीप है. उसके उत्तर-पूर्व में कैपोडी ओरसो अर्थात “भालू अन्तरीप” स्थित है. जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है इस अन्तरीप का मुख्य आकर्षण वहाँ की भालूनुमा एक विशाल रंरचना है. जब भी कोई पर्यटक इस “केप अन्तरीप” की चोटी तक पालू गाँव के रास्ते आता है तो वह इस अद्भुत कारीगरी को देखकर आश्चर्य में पड जाता है. भालू एक विशाल चट्टान से विनिर्मित है, जिसे पास से देखने पर ऎसा प्रतीत होता है, मानो वह उस टापू और समुद्र के विहंगम दृष्य को देखने में निमग्न है.
प्रकृति की इंजीनियरी का ऎसा ही एक नमूना दक्षिणी चीन के युन्नान प्रान्त में देखने को मिलता है. उक्त प्रान्त की राजधानी कुनमिंग से लगभग ६० मील दक्षिण-पूर्व में एक ऊँचे पठार पर पत्थरों का एक सघन जंगल है. पत्थरों के इस जंगल को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. “पत्थरों का जंगल” इस नाम से तनिक आश्चर्य अवश्य होता है, किंन्तु उसे देखने के बाद नाम की सार्थकता सत्य जान पडती है. वस्तुतः वह हरीतिमा रहित अरण्य है. जब कोई पर्यटक दूर से अकस्मात उस ओर दृष्टि दौडाता है, तो ऎसा प्रतीत होता है, जैसे कोई विस्तृत वन सामने फ़ैला हुआ हो.-ऎसा वन जिसमें पेडॊं की टहनियाँ और पत्ते न हों, सिर्फ़ तने शेष रह गए हों. भिन्न-भिन्न आकार और ऊँचाई वाले पाषाण-स्तम्भों से युक्त यह प्रथम दृष्टि में किसी वन का भ्रम पैदा करता है.
थीसली, ग्रीस में पिण्डस पर्वत की तराई में एक छोटा सा शहर है- “कलाम्बका”. इसकी पृष्ठभूमि में उत्तर की ओर विशाल चट्टानी स्तम्भों के तीन समूह हैं. ये विशाल स्तम्भ देखने में ऎसे प्रतीत होते हैं, मानो कोई बौद्ध स्तूप हों. इनमें से दो पहाडियाँ, यात्रियों का ध्यान विशेष रुप से अपनी ओर आकर्षित करती हैं. ये हैं वहाँ के विशाल स्तूप एवं अगणित कँगूरे वाली गडीयाँ. और उन्हीं के निकट उनके पृथक-पृथक शिक्षाओं और सिद्धांतों का उद्घोष करते उनके अपने-अपने स्तम्भ. इस विशाल प्रस्तर रचना को “मिटिओरा” के नाम से पुकारा जाता है. ग्रीक में इसका अर्थ “गगनचुम्बी” होता है. स्तम्भों में से कई-कई तो १८०० फ़ुट ऊँचे हैं.
प्रकृति के वास्तुशिल्प का एक अच्छा उदाहरण “फ़्रसासी गुफ़ाओं” के रुप में देखा जा सकता है. ये कन्दराएँ इटली में एसीनो नदी से लगे पहाड पर स्थित है. इन गुफ़ाओं की सबसे बडी विशेषता उनमें स्थित अनेकानेक कक्ष हैं. हर कक्ष की अपनी-अपनी विशिष्ठताएँ हैं. उन्हीं के आधार पर उनका नामकरण किया गया है. उदाहरण के लिए, उसका एक भाग ऎसा है, जिसमें सिर्फ़ चमगादड रहते हैं. इस आधार पर उस प्रकोष्ठ का नाम “ ग्रोटाडिले नोटोले” अर्थात “चमगादडॊं की गुफ़ा”रखा गया है. उसके एक अन्य कक्ष का नाम “ग्रोटॊ ग्रेण्डॆ डेल वेण्टॊ” अर्थात “ग्रेट केव आफ़ विण्ड” है. कन्दरा के इस भाग में अनेकों प्रकोष्ठ है. इनका आकार-प्रकार इतना बडा है कि उनमें बडॆ-बडॆ मठ समा जायें. विशाल गुफ़ा का यह प्रकोष्ठ “साला डिले कैण्डॆलाइन” कहलाता है. उक्त नाम उस हिस्से में स्थित उन अगणित छोटे-छोटे मोमबत्तीनुमा निर्माणॊं की ओर इंगित करता है जो देखने में ऎसे प्रतीत होते हैं, मानो वही जल-जलकर उस भाग को प्रकाशित कर रहे हों. इस कारण उसका नाम “मोमबत्ती वाला कमरा” रखा गया है.. एक अन्य कक्ष “साला डेल इनफ़िनिटॊ” या “ रुम आफ़ इनफ़ाइनाइट” कहलाता है. इस प्रकोष्ठ में बडॆ एवं विशाल सुसज्जित स्तम्भ हैं, जो गुफ़ा की छत को सँभाले हुए हैं. इन्हें देखने पर ऎसा लगता है, जैसे प्रकृति ने विशाल खम्भों का निर्माण कर विस्तृत छत को दृढता प्रदान की हो, ठीक वैसे ही जैसे मानवी निर्माणॊं में देखा जाता है. इनमें से अकेले ग्रोटा ग्रेण्डे डॆल वेण्टॊ की लम्बाई आठ मील है. उल्लेखनीय है कि फ़्रासासी गुफ़ाओं के प्रत्येक कक्ष एक दूसरे से सम्बद्ध हैं,उसी प्रकार जिस प्रकार विशाल इमारतों में कमरे परस्पर जुडॆ होते हैं.
संयुक्त राज्य अमेरिका में कोलोरैडी नदी के तट पर उसके दक्षिण-पूर्व में “ उटाह” नामक स्थान है. यहाँ एक नेशनल पार्क है, जो “मेहराबों वाला पार्क” के नाम से प्रसिद्ध है. इस पार्क की विशेषता है यह है कि यहाँ छॊटॆ-बडॆ कितने ही आकर्षक पत्थरों के मेहराब हैं. इन्हें देखने पर प्रकृति की कलाकारिता पर आश्चर्य होता है, जिसने कुशलतापूर्वक इन्हें गढकर खडा किया. इनमें से कई इतने नाजुक और पतले हैं, कि विश्वास नहीं होता कि लम्बे समय से ये अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं. इस पार्क का सबसे लम्बा मेहराब “लैण्डस्केप आर्च” है. विश्व का यह अपने प्रकार का सबसे बडा आर्च है,जिसकी लम्बाई २९१ फ़ुट है.
प्रकृति की कृतियों में कांगो(दक्षिण अफ़्रीका) की कन्दराओं की चर्चा न की जाए, तो उल्लेख अधूरा होगा. माना जाता है कि कन्दरा प्रस्तर युग में आदि मानवों का निवास रही होगी. यह अनुमान उनकी दीवारों पर उत्कीर्ण तस्वीरों के आधार पर विशेषज्ञ लगाते हैं, किन्तु जिन कारणॊं से यह विश्व-प्रसिद्ध बनीं, वे कारण मानवीकृत चित्र नहीं है, वरन प्रकृति की विलक्षण कारीगरी है. विशेष दर्शनीय है वहाँ के “क्रिस्टल पैलेस”, “डेविल्स वर्कशाप” एवं तहखाना. इसमें कहीं पर्दे की आकृति जैसी रचना है, तो कहीं बडॆ-बडॆ बबूले जैसा निर्माण, कहीं बाँसुरी, तो कहीं लम्बी-लम्बी सुइयाँ. एक स्थान पर ड्रमों जैसी ध्वनि भी निरन्तर निकलती रहती है, जैसे यह सभी पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए परस्पर प्रतिस्पर्धा कर रहे हों.
कैलोफ़ोर्निया में नेवादा के निकट एक घाटी है “डॆथ वेली” या मृत्य घाटी. इस घाटी का आकर्षण वहाँ की भूमि में विनिर्मित सुन्दर बिहड हैं. इसे देखने से ऎसा आभास होता है, जैसे किसी कुशल शिल्पी ने अपने सधे हाथॊ से इसे तराशा हो. इसका नाम “मृत्यु घाटी” इसलिए रखा गया है, क्योंकि गर्मियों में वहाँ का तापमान अति उच्च हो जाता है. बावजूद इसके छोटॆ-छॊटॆ जीवधारी वहाँ मजे से रहते हैं.
प्रकृति की ये रचनाएँ अपनी मूक वाणी में मनुष्य को यह शिक्षा देती है कि वह अपने सृजन और सृजनात्मक गतिविधियों में चाहे तो समाज का नवनिर्माण कर सकते हैं, पर दुःख की बात है कि निःसर्ग के इस महत्वपूर्ण सन्देश की उपेक्षा करते हुए इन दिनों निर्माण में न जुटकर, ध्वंस को गले लगाते हुए ऎसे कार्यों में संलग्न है, जो थके मन को कुछ राहत देने की तुलना में विषाद का हलाहल पिलाने में व्यस्त है. हम संहारक नहीं सर्जक बनें--दुखद समाज को सुखद संसार में बदलने का यही एकमत्र उपाय है.
१०३,कावेरी नगर,छिन्दवाडा(म.प्र.) ४८०००१ गोवर्धन यादव ०९४२४३५६४००