प्रकृति का अनुदान.
कई जीव-जंतु देखने में तुच्छ लगते हैं. उन्हें मनुष्य की तुलना में बुद्धि भी नहीं मिली है और न ही उनकी इन्द्रियाँ उतनी विकसित है. लेकिन बारीकी से देखने पर प्रतीत होता है कि उनमें ऎसी कितनी ही विशेषताएँ हैं, जिनमें मनुष्य काफ़ी पिछड़ा हुआ है. यदि ये क्षमाताएँ मनुष्य जाति को मिली होतीं तो तुच्छ समझे जाने वाले पशु-पाक्षियों को प्राप्त है तो वह तथाकथित देवताओं के वैभव से कही अधिक ऊँची स्थिति में रहा होता.
१)-गरुड की चाल साधारणतथा ६५ से ११० मील प्रति घण्टा की होती है, पर जब वह शिकार पर झपटता है तो उसकी चाल २०० मील की हो जाती है. यों तो गरुड़ का वजन पाँच से दस किलो तक का होता है, पर वह अपने ड्योढ़े वजन का शिकार पंजों में दबाकर घोंसले की ओर लम्बी उड़ान उड़ता चला जाता है.
२)- वृक्षों पर रहने वाला आस्ट्रेलिया का टॆडीवियर अपनी पीठ पर आधे दर्जन तक बच्चों को लादे फ़िरता है और चढ़ने-उतरने में ऎसी सावधानी बरतता है कि कोई बच्चा गिरने न पाये.
३) अमेरिका के ओपासय चूहों के आठ-दस बच्चे अपनी माँ के पीठ पर लदे फ़िरते हैं. ये बच्चे इतने चतुर होते हैं कि अपनी पूँछ माता की पूँछ से लपेटकर जंजीर-सी बना लेते हैं और गिरने के खतरे से बचकर सवारी का आन्नद लेते हैं.
४) शरीर के अनुपात से संसार में सर्वाधिक शक्तिशाली चिड़िया “ हमिंग वर्ड “ मैक्सेको की खाड़ी और पनामा नहर के तटॊं पर पायी जाती हैं. इसकी जिजीविषा देखते ही बनती है. शरीर के लम्बाई ३ इंच किंन्तु चोंच पाँच इंच की. इतनी पेठू कि निरन्तर खाती ही रहती है. अपने शरीर के वजन से वह तीन गुना आहार एक दिन में करती है. इसी अनुपात में यदि मनुष्य को तत्पर रहना पड़े तो उसे सामान्य शक्ति व्यय की अपेक्षा ४५० गुनी शक्ति खर्च करनी होगी. इसकी नींद कुम्भकरण की तरह ही होती है कि कोई चाहे तो इसे ढेले की तरह उठा ले.
हैलिकाप्टर के सिद्धान्त पर उसके पंख अन्य चिड़ियों की अपेक्षा कुछ अलग ही ढंग के बने होते हैं. वह आगे-पीछे, तिरछी जमीन से सीधी आकाश को, आकाश से जमीन पर उड़ सकती है. हवा में स्थिर रह सकती है. फ़ूलों की डालियाँ, पेड़ों की शाखों पर जब वह आहार ले रही होती है, तब भी बैठती नहीं वरन उड़ती ही रहती है. उस समय भी उसके पंख एक सैकिण्ड में पाँच बार की आश्चर्यजनक गति से हरकत कर रहे होते हैं. इसके कारण एक फ़ुट तीव्र दृष्टि अपनी जाति के पक्षियों में सबसे आगे होती है.
५)-शुतुरमुर्ग अब सिर्फ़ अफ़्रीका में ही पाया जाता है. इसकी उँचाई प्रायः ६ फ़ुट, वजन ३०० पौंड, रफ़्तार ४० मील. बीच में वह १५-१५ फ़ुट की ऎसी छलाँगे लगता है कि घुड़सवार को भी हार माननी पड़े. इसकी लात से घोड़े की टाँग टूट सकती है.
६) ध्रुव प्रदेशों मे पाया जाने वाला ६ फ़ुट ऊँचा, २०० पौंड भारी पेनगुई-मनुष्य की तरह खड़ा होकर दो पैरों से चलता है. समुद्र जल में तैरते और शीत सहन करने की उसकी अपनी विशेषता है. तेज ठंड के दिन्दों में वह ३-४ महीने बिना खाए ही गुजार लेता है. बर्फ़ पर फ़िसलने का खेल उसे बहुत भाता है. इस जाति के सभी पक्षी प्रायः पति-पत्नि का जोड़ा बनाकर रहते हैं.
६) केकड़ा कभी-कभी शंखों के खोल में गुस जाता है और उनके वजन को ढोता हुआ समुद्र में इधर-उधर यात्रा करता रहता है. हर वर्ष वह दस मील की यात्रा कर लेता है और अपने वजन से दस-बारह गुना तक वजन ढो लेता है.
७) बया का लटकता हुआ घोंसलाहर किसी को आश्चर्य में डाल देता है कि वह कितनी सुन्दरता और सुघढ़ता के साथ बनाया गया है. दक्षिण अफ़्रीका की बया वे तो एक कदम और भी आगे बढ़ाया है. वह घोंसले के तिनकों को न केवल मजबूती से सटाती है वरन बालों का फ़ंदा लगाकर इस तरह कस देती है कि फ़िर आँधी-तूफ़ान उसका कुछ भी बिगाड़ न सके. इस तकनीक में वह भेड़ों की ऊन, घोड़े-गधों के बाल भी काम में लाती है, पर अधिकतर प्रयोग अधिक लम्बे और मजबूत बालों का ही करती है.