पृथ्वी से परे भी जीवन विध्यमान है (गोवर्धन यादव)
मनुष्य सृष्टि के जिस छॊटॆ से घटक पृथ्वी पर निवास करता है, प्राणियों का अस्तित्व इसी तक सीमित नहीं है. अनन्त अन्तरिक्ष में अनेकानेक ग्रहों, उपग्रहों, नीहारिकाओं तथा मंदाकिनियों की परिस्थितियाँ, जलवायु एवं वातावरण ऎसा है, जहाँ जीवन की सम्भावना से इनकार नहीं किया जा सकता. वैज्ञानिक अनुसंधानों से जो तथ्य सामने आए हैं, उनसे स्पष्ट होता है कि हमसे भी कहीं अधिक बुद्धिमान स्तर का जीवन, समाज और सभ्यता अन्य ग्रहों पर विध्यमान है.
अन्तरिक्ष में उन्नत सभ्यता के अवस्थित होने का प्रमाण प्रस्तुत करते हुए वैज्ञानिकों ने कहा है कि न केवल मनुष्य उनसे सम्पर्क साधने का प्रयास कर रहा है वरन लोकान्तरवासी भी पृथ्वी के साथ सम्पर्क करने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील हैं. इसका अनुमान धरती पर उड़नतश्तरियों के आवागमन से सहज ही लगाया जा सकता है. सन १९४७ से अब तक हजारों उड़तश्तरियाँ सामान्य जनो, वैज्ञानिकों, अंतरिक्ष विज्ञानियों द्वारा आकाश में मंडराते एवं धरती पर उतरते देखी गई हैं. इनके अनेकों प्रमाण भी मौजूद हैं.
. राडारों एवं फ़ोटो केमरों द्वारा भी इनकी पुष्टि की जा चुकी है
आस्ट्रेलियन अंतरिक्ष विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर रोनाल्ड ब्रेसवेल ने अपने अनुसंधान निष्कर्ष में बताया है कि उड़नतश्तरियाँ वस्तुतः दूसरे ग्रहों के सर्वेयान है जो पृथ्वी की उन्नत सभ्यता और विज्ञान का पता लगाने के लिए यहाँ आते हैं. ये संकेतों सूत्रों के माध्यम से यहाँ की जानकारी अपने देश को भेजते हैं. फ़्रेंच परमाणु वैज्ञानिक जैक्स बल्ली का कहना है कि ब्रह्माण्ड की सर्वोत्कृष्ट शक्तियाँ इन तश्तरियों के द्वारा मानव से सम्बन्ध स्थापित करने आती हैं.
इनके संचालक कद में इतने छॊटॆ होते हैं किन्तु इनकी बुद्धि प्रखर है. इनकी भाषा हमारे समझ में नहीं आती फ़िर भी उनकी सभ्यता हमारे लिए अनुकरणीय है. इवान सैंडर्सन एवं अमेरिका के एलन हाइनेक जैसे मूर्धन्य वैज्ञानिकों ने इन्हें उच्च मनःशक्ति सम्पन्न एवं अतीन्द्रीय सामर्थ्ययुक्त माना है. इंग्लैण्ड के गार्डन क्रीटर ने लोकान्तर वासियों से घनिष्ट सम्पर्क स्थापित करने को बहुत महत्त्वपूर्ण माना है.
प्राचीन काल में लोकान्तरवासियों का सीधा सम्बन्ध धरतीवासियों से था. पृथ्वीवासियों से सम्पर्क साधने एवं ज्ञान-विज्ञान के आदान-प्रदान के लिए वे अपने विशेष यानो-विमानों में बैठकर आते-जाते रहे हैं. इसके अनेकों प्रमाण आज भी विश्व के विभिन्न भागों में जहाँ-तहाँ बिखरे पड़े हैं. वर्तमान में धरती पर उतरने वाली उड़तश्तरियाँ अन्तर्ग्रही आवागमन के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं.
वैदिक ग्रन्थों में देवी-देवताओं का विमानों में सवार होकर आकाश गमन का वर्णन मिलता है. सुमेरु पर्वत, विन्ध्याचल, हिमालय की घाटियों में देवयानों के उतरने का भी उल्लेख मिलता है. ऋग्वेद में एक ऎसे रथ का वर्णन है, जो पृथ्वी, जल और आकाश तीनों में चलता था. अश्विनी कुमारों का चित्रक रथ अश्व के बिना ही अंतरिक्ष में भ्रमण करता था. महर्षि भारद्वाज ने “यन्त्र सर्वस्व” में बिजली, वाष्प, सौर ऊर्जा, जल, वायु-तेल और चुम्बक से चलने वाले विमानों का वर्णन किया है. रामायण में पुष्पक विमान, गरुड़ विमान, “यन्त्र कल्पतरु” में व्योम विमान, महाभारत में शाल्य के विमान का उल्लेख मिलता है. प्राचीन चीनी लोक-कथाओं में भी आकाश गमन करने वाले विमानों का वर्णन मिलता है. बाइबिल में कहा गया है कि उत्तर दिशा से एक प्रकाश का बवंडर उत्पन्न हुआ जिसमें से एक विमान प्रकट हुआ. उसके अन्दर चार सजीव प्राणी थे जिनकी आकृति मनुष्यों जैसी थी.
यूनानी कथाओं में आकाश गमन करने वाले देवी-देवताओं का वर्णन मिलता है. मिस्त्र और बेबीलोन की प्राचीन सभ्यता में भी ऎसे अनेक प्रमाण मिले हैं, जिसमें अन्तर्ग्रही विमानों के आवागमन का वर्णन सही सिद्ध होता है.
स्विट्जरलैण्ड के सुप्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता एरिकफ़्राम के अनुसार प्रागैतिहासिक काल में बाह्य अन्तरिक्ष से यात्री यानों में बैठकर आते थे. इस कथन की पुष्टि मूर्धन्य वैज्ञानिक डा.पीटर कोलोसिमो ने भी की है. इनका कहना है कि कभी-कभी तो अन्तरिक्ष यात्री धरतीवासियों से विवाह सम्बन्ध बनाकर घर बसा लेते थे और गृहस्थी का सुख भोगकर लम्बे समय बाद अन्तरिक्ष में लौट जाते थे.
विश्व के अनेक भागों—जैसे उत्तरी अमेरिका, पेरू तथा चिली आदि की गुफ़ाओं में ऎसे अनेक भित्ति चित्र मिले हैं, जिनसे प्रकट होता है कि पुरातन काल में इस धरती पर दूर ग्रहों के उन्नत सभ्यता वाले लोग आते रहे हैं. इसकी पुष्टि आस्ट्रेलिया में सिडनी के पास गुफ़ा में शिला पर अंकित सुसज्जित स्पेश शूट पहने उस अन्तरिक्ष यात्री से भी होती है, जिसके सिर पर पृथ्वी से अन्य लोकों के संकेत सूत्र भेजने वाले एन्टिनायुक्त उपकरण बने हैं.
पेरू के पर्वतीय प्रदेश में “नाजका” नामक एक अति प्राचीन किन्तु सुविकसित नगर के ध्वंसावशेष पाये गए हैं. इस क्षेत्र का निरीक्षण करने पर पार्श्व की पाल्पाघाटी में ज्यामितीय ढंग से विनिर्मित एवं एक-दूसरे के समानान्तर अनेकानेक हवाई पट्टियाँ पायी गई हैं. ये पट्टियाँ ४० मील लम्बी तथा एक मील चौड़ी सपाट-समतल भूमि पर बड़े ही व्यवस्थित क्रम से बनी हुई हैं. जिस तरह इन पट्टियों का आकस्मिक शुभारम्भ होता है, ठीक उसी तरह एकाएक अंत भी होता है. अतः इन्हें सामान्य आवागमन के मार्ग अथवा सड़क नहीं कहा जा सकता.
लीमा के दक्षिण में एक पर्वत शृंखला पर ८२० फ़ुट ऊँचा प्रस्तर का एक विशालकाय त्रिशूल खड़ा है जिसे जमीन पर १२ मील की दूरी से एवं अंतरिक्ष में उतुंग ऊँचाई से देखा जा सकता है. इसी तरह उत्तर चिली के तारापाकार मरुस्थल के बगल में स्थित एक पहाड़ी पर ३३० फ़ुट ऊँची एक मानव मूर्ति खड़ी है. इस प्रतिमा का आकार आयताकार है किन्तु उसका सिर वर्गाकार है जिसमें समान लम्बाई के बारह एन्टिना लगे हैं. मूर्ति के कटि प्रदेश में सुपरसोनिक फ़ाइटर्स की भांति त्रिभुजाकार पंख लगे हैं.
सन १९६८ में चिली में ही एक अन्य रहस्यमय पठार का अन्वेषण किया गया. ”एन्ला डिल्लोडॊ” नामक दो मील लम्बे एवं ८५० गज चौड़े एक पठार पर सर्वत्र १२ से १६ फ़ुट ऊँचे और २० से ३० फ़ुट लम्बे शिलाखण्ड बिछॆ हुए हैं. एक अन्य गवेषण में “ नाजका ” शहर से एक सौ मील की दूरी पर विशालकाय पत्थरों पर पशु-पक्षियों के चित्र-विचित्र रेखांकन मिले हैं. इनमें से एक चित्र ३०० गज लम्बा है.
उपरोक्त तथ्यों का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों की मान्यता है कि इन पट्टियों का उपयोग प्राच्यकाल में हवाई पट्टियों के रूप में किया जाता था. इन स्थलों का निरीक्षण करने वाले प्रख्यात विद्वान “एरिक वान डैनिकेन” का कहना है कि- ये स्थान अवश्य ही अंतरिक्ष से आने वाले वायुयानों के अवतरण क्षेत्र रहे होंगे जिनका उपयोग अन्य ग्रहवासी अपने यानों को उतारने के लिए करते रहे होंगे. विशालकाय त्रिशूल, मानव प्रतिमा एवं पशु-पक्षियों के चित्र हवाई पट्टी के संकेत के रूप में प्रयुक्त होते रहे होंगे जिन्हें देखते ही विमान चालकों को हवाई पट्टियों का सही-सही अनुमान प्राप्त होता होगा.
प्रसिद्ध पुस्तक “ चैरियट्स आफ़ गाड्स” में डेनिकेन ने एक ऎसे नक्शे का वर्णन किया है जिसमें भूमध्य सागर, मृत सागर, उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका के साथ-साथ अन्टार्कटिका के कुछ प्रांत स्पष्ट दिखाये गए है. यह नक्शा टोपकाशी पैलेस में मिला है, जो किसी अन्य ग्रहवासियों द्वारा वायुयान से खींचा गया है.
वैज्ञानिकों ने अन्य कई ऎसे प्रामाणिक तथ्य ढूँढ निकाले हैं जिनसे स्पष्ट होता है कि कभी धरती पर अन्य ग्रहों से लोग आते थे. डा.पीटर कोलोसिमो ने तिब्बत के मठों में सुरक्षित रखे हुए कुछ शवों का वर्णन किया है जो अन्तरिक्ष शूट पहने हुए हैं. पीटर के अनुसार ये शव उन लोकान्तरवासियों के हैं जिनके अन्तरिक्ष यान में खराबी आ गई थी और वे वापस अपने लोक को नहीं लौट सके. उन्होंने मय सभ्यता कालीन एक खण्डहर में ऎसी समाधि का भी उल्लेख किया है जो किसी यान आकृति की है और उसके अन्दर अन्तरिक्ष यात्री बैठा है.
वैज्ञानिक निरन्तर इसी दिशा में प्रयत्नशील है कि अन्य ग्रहों में जीवन की खोज की जाए. अब तक जो भी अनुसंधान इस सम्बन्ध में हुए है, इनसे स्पष्ट संकेत मिलता है कि आकाशगंगा में ऎसे अनेक ग्रह होने चाहिए, जिनमें विकसित सभ्यता का निवास हो सकता है. मूर्धन्य वैज्ञानिक डा. बिली के अनुसार हमारी आकाशगंगा में ऎसे ग्रहों की संख्या बीस हजार होनी चाहिए जिनमें पृथ्वी जैसे बुद्धिमान प्राणी निवास करते हैं.
यों उलकाएँ जो पृथ्वी पर आती रहती हैं, इनके धूलिकणों का अन्वेशन करने से भी प्रतीत होता है कि सौर-मण्डलीय धूलि में भी जीवन तत्व मौजूद हैं, भले ही वह अविकसित रूप में ही क्यों न हों? उलकाओं में जीवित एवं मृतक बैक्टीरिया तथा दूसरे तरह के जीवन चिन्ह पाए जाते हैं. इस आधार पर अनुमान लगाया जाना असंगत नहीं है कि पृथ्वी पर पाया जाने वाला जीवन बहुत करके अन्तरिक्ष से उतरा है और इनसे सम्बन्ध स्थापित करने के लिए ही अंतरिक्षवासी यहाँ आते रहे हैं.
उडनतश्तरियों तथा अन्य दृष्य-अदृष्य माध्यमों से यह आवागमन अभी भी किसी रूप में चल रहा हो तो आश्चर्य नहीं. सौर-मण्डल के ग्रह-उपग्रहों की खोज में यों मनुष्य जैसे विकसित प्राणियों का पता नहीं चला है, तो भी यही माना जाना चाहिए कि उनमें जीवन का सर्वथा अभाव है. फ़िर यह भी हो सकता है कि सौर-मण्डल से बाहर के जीवाधारी, प्रकृति नियमों से भिन्न, चेतना नियमों के आधार पर, पृथ्वी के साथ भूतकाल में अधिक सम्बन्ध बनाये रहे हों और अब यहाँ की स्थिति काम चालाऊ देखकर, अन्य किसी उपयुक्त ग्रह को विकसित करने में लग गए हों और यदा-कदा यहाँ की भी खोज खबर लेते रहते हों.