देवमानवों का धरती पर आगमन
(गोवर्धन यादव)
हमारे धार्मिक ग्रंथों में समय-समय पर देवी-देवताओं के धरती पर आगमन की कथाएं पढने को मिलती है. एक सुन्दर कल्पना के अनुसार उनकी गिनती तैतीस कोटि बतलाई गई है. जितने देवता,उतने ही उनके अलग-अलग वाहन. ब्रह्मलोक के भगवान ब्रह्माजी का वाहन श्वेत हंस है तो वहीं विष्णुलोक के स्वामी विष्णुजी का गरूड, इंद्रलोक के देवता इंद्र का ऎरावत हाथी, हिमालय के उत्तुंग शिखर कैलाश पर निवास कर रहे शिवजी का नंदी(बैल), विद्या की देवी का हंस, और मां दुर्गा का सिंह,तो श्री गणेश का वाहन चूहा है. इन वाहनों के नाम भले ही पशु-पक्षियों के नाम पर रखे गए हों,लेकिन ये उत्तम कोटि के विमान ही रहे होंगे.
इसी तरह धरती से स्वर्ग की यात्रा करने वालों के अनेक दृष्टांत हमें पढने को मिलते है. भगवान श्री राम के पिता राजा दशरथजी, देवताओं के मित्र थे. देव और दानवों के युद्ध के समय उन्होंने देवताऒं की ओर युद्ध लडा था. नारद मुनि अपनी वीणा बजाते हुए एक लोक से दूसरे लोक में भ्रमण किया करते थे, बाली रोज पृथ्वी के इक्कीस चक्कर लगाता था. लंकापति रावण पुष्पक विमान पर सवार होकर कैलाश जाता था. वीर हनुमान हवा में उडा करते थे. त्रिशंकु सशरीर स्वर्ग जाना चाहता था, लेकिन उसे स्वर्ग से निकाल बाहर कर दिया गया तो ब्रह्मर्षि विश्वामित्र ने उसके लिए अलग से एक लोक की स्थापना कर दी थी. रंभा-मेनका आदि अप्सरायें पर धरती पर आयी थीं. इन उदाहरणॊं से इस बात की पुष्ठि होती है कि धरती पर भी उन्नत किस्म के उपग्रह आदि उस युग में भी बनाए जाते रहे हैं और लोक लोकान्तरों में उनका आना-जाना रहा है.
वाल्मिक रामायण के अयोध्याकांड में सती अनसूया द्वारा सीता को दिव्य-वस्त्र देने,( जो न तो कभी पुराने पडते थे और न ही उसे अग्नि जला पाती थी)(श्लोक ११), ऋषि विश्वामित्र ने श्रीराम को बला और अतिबला नामक विद्या देने का प्रमाण मिलता है.(बालकाण्ड,त्रयोविश सर्ग श्लोक ११-१२) और आगे के श्लोकों में उसके बल और प्रभावों के बारे में बतलाया गया है. अरण्यकांड द्वादश सर्ग में अगस्त्य ऋषि द्वारा श्रीराम को दिव्यास्त्र देने (श्लोक-३२ से ३६), रावण अपने मामा मारीच को आकाशमार्ग में उडने वाला दिव्य विमान देता है(अरण्यकांड द्विचत्वारिश सर्ग :श्लोक-७), मारीच का सोने के मृग का रूप धारण करना (श्लोक १५..१८), किष्किन्धाकाण्ड में हनुमानजी द्वारा विराट रूप धारण करना. राम-रावण युद्ध में अनेकानेक अस्त्रों-शस्त्रों के प्रयोग की बात आती है. महाभारत के युद्ध के समय भी तरह-तरह के अस्त्र-शस्त्रों के प्रयोग की जानकारी मिलती है. इन सारी बातों से ज्ञात होता है कि उस समय टेक्नोलाजि अपने चरम पर थी. लोगों का एक लोक से दूसरे लोक में आना-जाना और मन चाहा रूप धारण कर सकने की क्षमता विद्यमान थी. संभवतः महाभारत के युद्ध के साथ ही सारी टेक्नोलाजी नष्ट हो गई,ऎसा माना जाना चाहिए.
भले ही कुछ लोग इसे कोरी कल्पना कहें या कुछ और लेकिन इन अनन्त अंतरिक्ष में अनेकानेक ग्रहों, उपग्रहों, निहारिकाओं की परिस्थितियां, जलवायु एवं वातावरण कुछ ऎसा है कि जहाँ पर इनकी संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता. वैज्ञानिक अनुसंधानॊं से जो तथ्य हमारे सामने आए हैं, उनसे तो स्पष्ट होता है कि हमसे भी कहीं अधिक बुद्धिमान स्तर का जीवन, समाज और सभ्यता अन्य ग्रहों पर विद्यमान है.
अमेरिका के मेरीलैंड विश्वविद्यालय के रासायनिकि विकास संस्थान के निर्देशक डा.सिरिल पोन्नेमपेरुपा, जो लोकान्तर स्थित बुद्धिमान प्राणियों का पता लगाने और उनसे सम्पर्क साधने के लिए जाने जाते हैं, के अनुसार हमारे नभ मण्डल में दस लाख सभ्यताएं अस्तित्व में हैं. उनका अध्ययन करने के लिए विभिन्न देशों में विशालकाय रेडियो, टेलिस्कोप, कम्प्यूटर आदि लगाए गए हैं तथा उनसे संदेश प्राप्त करने का निरन्तर प्रयास चल रहा है. रेडियो एस्ट्रोनामी के विकास ने हमारे लिए सुदूर ग्रह-नक्षत्रों के प्राणियों से संबंध स्थापित करने एवं उनके विचारों का आदान-प्रदान करने की एक नयी खिडकी खोल दी है.
पश्चिमी वर्जीनिया स्थित ग्रीन बैंक की “नेशनल रेडियो एस्ट्रोनामी आब्जरवेट्री” का शुभारंभ 1959-60 में मूर्धन्य वैज्ञानिक डा.ग्रैक ड्रैक की देखरेख में शुरू किया गया था. इस योजना का नाम “प्रोजेक्ट ओजमा” रखा गया. इसके साथ ही वैज्ञानिक फ़िलिप मोरीसन के निर्देशन में नासा प्रोजेक्ट कमेटी, मीशाचुसेट्स इन्स्टीट्युट आफ़ टेक्नोलाजी की स्थापना की गई. इन वैज्ञानिकों ने शोध परीक्षणॊं के पश्चात जो प्रतिवेदन प्रस्तुत किया उसमें कहा गया कि इस दिशा में अभी और अत्यधिक शक्तिशाली रेडियो, कम्प्यूटर, टेलीविजन आदि की आवश्यकता पडॆगी, जिसके आधार पर दूरस्थ प्राणियों से आदान-प्रदान की सम्भावना साकार हो सके.
न्यूयार्क के इटाहका शहर स्थित “नक्षत्र मण्डल अध्ययन प्रयोगशाला” के निर्देशक प्रख्यात वैज्ञानिक कार्ल सैगन ने खगोल विद्या के अति महत्वपूर्ण पक्षों पर प्रकाश डलते हुए प्रतिपादित किया है कि हमारी पृथ्वी की सभ्यता से अन्तरिक्ष स्थित ग्रह-नक्षत्रों की सभ्यता कहीं अधिक उन्नतशील है. उन्होंने अपनी अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुस्तकों “ दि ड्रैगन्स आफ़ ईडन”, ब्रोकास ब्रेन” तथा “कास्मास” में भी इसी प्रकार का वर्णन किया है. उनका कहना है कि आकाशगंगा में दस लाख तकनीकी सभ्यताएँ निवास कर रही हैं. यदि उनसे किसी प्रकार का सम्बन्ध जोडा जा सके और आदान-प्रदान का क्रम चल पडॆ तो मनुष्य उन्नति के पथ पर कहीं से कहीं पहुँच सकता है.
विश्व की सबसे बडी बेधशाला पोर्टारिको में स्थित है. उसमे अन्तर्ग्रही ध्वनि प्रवाहों के संकेत प्राप्त किए गए हैं और संख्याओं के अंक भी नोट किए गए हैं. वैज्ञानिकों के अनुसार सम्भवतः ये अन्तरिक्षीय लोकों के बुद्धिमान प्राणियों के संकेत सूत्र हैं,जिनके माध्यम से वे अपनी उपस्थिति की जानकारी देते है, साथ ही पृथ्वीवासियों से सम्पर्क साधने का प्रयत्न करते हैं. इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिकों ने अंक गणितीय संख्याओं के संक्षिप्त सूत्र बनाकर, उनके विचार विनिमय के लिए भेजे हैं. कम्प्यूटर के माध्यम से प्राप्त किए गए आंकडों से स्पष्ट हो चुका है कि वहां पांच रासायनिक तत्त्वों जैसे हाइड्रोजन, मीथेन, नाइट्रोजन, आक्सीजन तथा फ़ास्फ़ोरस विशेष मात्रा में विद्यमान है. इसके अतिरिक्त कार्बन तथा अमोनिया की मात्र भी अधिक है.
अन्तरिक्षीय अन्तर्ग्रही सभ्यताओं और पृथ्वी की सभ्यता के मध्य अत्यधिक दूरी का अन्तर है, परन्तु यदि प्रकाश से अधिक तीव्र गति से चलने वाले फ़ोटॊन प्रवाह पर नियत्रण किया जा सके तो उसके माध्यम से यह दूरी कुछ ही वर्षों में पूरी की जा सकती है. इस संदर्भ में भौतिकी के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक श्री वैलेस सालीवाल ने एक पुस्तक लिखी-“ हम अकेले नहीं हैं”. इसमें ब्रह्माण्डव्यापी संचार व्यवस्था पर बल देते हुए उन्होंने एक नई वेवलेंथ प्रस्तुत की है जो प्रकाश गति से कई गुनी तीव्र बताई गई है. यह वेवलेंथ पद्दति 1420 मेगासाइकिल्स वेवलेंथ के रेडियो कम्पनों पर आधारित है. अणु विकिरण की यह स्वाभाविक गति है. अन्तरिक्ष संचार व्व्यवस्था में इस गति को अपनाया जा सके तो अन्य लोकों के प्राणियों से आसानी से सम्पर्क साधा जा सकता है. हमारे लिए जो दूरी पार करना सम्भव नहीं, अन्तरिक्षवासी सम्भवतः इस गति को प्राप्त कर चुके हैं तभी वे ऎसे यान बनाने में सफ़ल हुए हैं.
अन्तरिक्ष में उन्नत सभ्यता के अवस्थित होने के प्रमाण प्रस्तुत करते हुए वैज्ञानिकों ने कहा है कि न केवल मनुष्य उनसे सम्पर्क साधने का प्रयत्न कर रहा है वरन लोकान्तरवासी भी पृथ्वी के साथ सम्पर्क स्थापित करने के लिए निरन्तर प्रयत्नशील हैं. इसका अनुमान धरती पर उड्नतश्तरियों के आवागमन से सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है. सन 1947 से अब तक हजारों उडनतश्तरियां सामान्य जनों ,वैज्ञानिकों, अंतरिक्ष वैज्ञानियों द्वारा आकाश में मंडराते एवं धरती पर उतरते देखी गई हैं. इनके अनेकों प्रमाण भी मौजूद हैं. राडारों एवं फ़ोटॊ कैमरॊं द्वारा इनकी पुष्टि की जा चुकी है.
आस्ट्रेलियन अंतरिक्ष विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर रोनाल्ड ब्रेसवेल ने अपने अनुसंधान निष्कर्ष में बताया है कि उडनतश्तरियाँ वस्तुतः दूसरे ग्रहों के सर्वेयान हैं जो पृथ्वी की उन्नत सभ्यता और विज्ञान का पता लगाने के लिए यहाँ आते हैं. वे संकेतसूत्र के माध्यम से यहां की जानकारी अपने देश में भेजते हैं. फ़्रेंच परमाणु वैज्ञानिक जैक्स बल्ली का कहना है कि ब्रह्माण्ड की सर्वोत्कृष्ट शक्तियां इन तश्तरियों के द्वारा मानव से सम्बन्ध स्थापित करने आती हैं. इनके संचालक छॊटॆ कद के होते हैं किंतु इनकी बुद्धि प्रखर है. इनकी भाषा हमारी समझ में नहीं आती फ़िर भी उनकी सभ्यता हमारे लिए अनुकरणीय है. इवान सैंडर्सन एवं अमेरिकन एलन हाइनेक जैसे मूर्धन्य वैज्ञानिकों ने इन्हें उच्च मनःस्थिति सम्पन्न एवं अतीन्द्रिय सामर्थ्ययुक्त माना है, इंग्लैण्ड के गार्डन क्रीटर ने लोकान्तर वासियों से घनिष्ट सम्पर्क स्थापित करने को बहुत महत्त्वपूर्ण बताया है.
प्रख्यात मनोवैज्ञानिक कार्लजुंग का कहना है कि उडनतश्तरियां अन्य ग्रहों से आने वाले अद्भुत शक्ति सम्पन्न लोगों के यान हैं. ये अनेक प्रकार की होती है और विश्व के सभी देशों में देखी गई हैं. सन 1958 के एक लेख में उन्होंने कहा है कि सारा संसार इनकी यथार्थता को अब मानने लगा है. ये चेतना के अज्ञात रहस्यों के द्योतक हैं. इन्हें एकता, मित्रता एवं सहानुभूति का द्योतक माना जा सकता है. सुविख्यात वैज्ञानिक विशेषज्ञ डेबिड टान्सले के अनुसार “ ये तश्तरियां मनुष्य को दूसरे लोकों की समर्थता एवं रहस्यों का बोध कराती हैं. मानवी चेतना में नये भाव एवं विचार पैदा करके मानसिक एवं भौतिक उन्नति करने को प्रेरित करती हैं.”
मनोवैज्ञानिकों का मत है कि मानव जाति दूसरे ग्रहों के अनुदान से जीवित हैं. अपनी प्रजा के सुख-दुख एवं उन्नति का पता लगाने के लिए ये ग्रहवासी उड्नतश्तरियों से पृथ्वी का भ्रमण करते हैं. जर्मन वैज्ञानिक एरिक वान डानिकेन ने अपनी पुस्तक “रिटर्न टू दि स्टोर्स” एवं “चैरियट्स आफ़ द गाड्स” में ऎसे अनेकों प्रमाण प्रस्तुत किए हैं जिनसे प्रतीत होता है कि अन्य ग्रहों में उन्नत सभ्यता वाले बुद्धिमान प्राणी विद्यमान हैं जो समय-समय पर धरतीवासियों की सहायता के लिए आते हैं. मनीषियों की मान्यता है कि निकट भविष्य में अन्तरिक्षवासियों के साथ हमारे सम्बन्ध जुडॆंगे और प्रतिभा के आदान-प्रदान का एक नया युग आरम्भ होगा.