दृष्य की अपेक्षा अदृष्य रहस्यमय होता है.
दृष्य की अपेक्षा अदृष्य जितना रहस्यमय होता है, उतना ही सामर्थवान भी. जड़ की तुलना में चेतन अधिक शक्ति सम्पन्न होता है. जड़ जगत की हलचलें भी उसी की शक्ति से प्रेरित है. दोनों के परस्पर तालमेल एवं सहयोग से ही संसार का चक्र अविराम गति से गतिशील है. इन दोनों से भी विलक्षण है, वह सूत्रधार जो सृष्टि का नियन्ता या संचालक है. मनुष्य तो अभी जड़ प्रकृति में ही उलझा पड़ा है. पदार्थ की शक्ति को प्राप्त कर ही गर्व करने लगा है. जिस दिन चेतना की अकूत सामर्थ्य और जड-चेतन की सामर्थ्यों के आदि केन्द्र सृष्टा के वास्तविक स्वरूप का भान होगा, सचमुच ही वह दिन मनुष्य जाति के लिए सर्वाधिक सौभाग्य का होगा.
कभी-कभी प्रकृति भी ऎसे घटनाक्रमों को जन्म देती है, जिनका कोई कारण समझ में नहीं आता जिसे देखकर मानवी बुद्धि हतप्रभ रह जाती है तथा उसे मानना पड़ता है कि उसकी जानकारियाँ दृष्टि के सन्दर्भ में अत्यल्प है. समय-समय पर होने वाले घटनाक्रमों की कुछ गुत्थियाँ ऎसी हैं जो लम्बे समय बाद भी आज तक सुलझाई नहीं जा सकी हैं.
विश्व के कितने ही ऎसे स्थान हैं, जो अपनी विलक्षणता के लिए विख्यात हैं. अविग्नान के निकट एक ठण्डॆ पानी का कुण्ड है. उसे वाडक्लुर्स का स्त्रोत कहा जाता है. उसके समीप ही सोरग्यू नामक नदी बहती है. नदी के दूसरे तट पर एक अंजीर का पेड़ उगा हुआ है. बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के नदी का जल स्तर मार्च माह में हर वर्ष अपने आप बढ़ जाता है और बाढ़ जैसी स्थिति आ जाती है. सबसे आश्चर्य की बात तो यह है कि नदी का जल-प्रवाह उल्टी दिशा में ऊँचाई पर अवस्थित अंजीर के पेड़ की ओर बढ़ने लगता है और पेड़ की जड़ को स्पर्ष करके वापस लौट जाता है. हर वर्ष इस घटना की पुनरावृत्ति होती है, लेकिन ऎसा क्यों होता है, यह अविज्ञात ही बना हुआ है. अविग्नान के लोगों में एक लोक कथा प्रचालित है कि वृक्ष यक्ष है और नदी कोई अप्सरा, जो किसी देवता के कोपभाजन बने हुए हैं. उन्हें केवल माह मार्च में ही मिलने की छूट देवता द्वारा दी गई है. सच क्या है, कोई नहीं जानता, पर इस विलक्षण दृष्य को देखने के लिए प्रतिवर्ष बडी संख्याँ में भीड़ एकत्रित होती है.
“एलवर्टा” का एक किसान पानी भरने के लिए जब भी अपने कुएँ की चादर हटाता था तो कुएँ के तले से तालबद्ध संगीत सुनाई पडता है. इस अविश्वसनीय किंतु सत्य घटना की पुष्टि अनेकों व्यक्तियों ने की. वैज्ञानिकों के एक दल को सन्देह हुआ कि शायद किसान ने कुंए में कहीं रेडियो सेट छुपाकर रख दिया हो. इसलिए उन्होंने कुंए के चप्पे-चप्पे की जाँच-पड़ताल कर ली, पर संदेह निराधार निकला. फ़िर उन्हें दूसरा संदेह यह हुआ कि रेडियो संगीत को पकड़कर प्रतिध्वनित करने वाला कोई ऎसा स्त्रोत कुएँ में विद्यमान है, पर आश्चर्य यह कि कुएँ से तालबद्ध संगीत की ध्वनि निरन्तर आती रही. प्रस्तुत घटना का कारण अदृष्य, अभौतिक तथा विज्ञान के नियमों की पकड़ सीमा के बाहर है.
कोरिया में कोयम नदी के किनारे नक्वाह्म नामक पत्थर की चट्टान है. सन 660 में सम्बन्धित क्षेत्र पर चीन के राजा ने आक्रमण कर दिया. उसने स्थानीय राजा, मन्त्री तथा सेना के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को बन्दी बनाकर चीन भेज दिया. राज्य सामाज्ञी सहित 71 रानियों ने नाक्वाह्म चट्टान से नदी में कूदकर आत्महत्या कर ली. इस घटना को बीते लगभग 1400 वर्ष हुए, पर उसके बाद प्रति वर्ष चट्टान के पास एक ही नस्ल के मात्र 71 पौधे एक साथ उगते हैं और निश्चित समय पर 71 ही फ़ूल आते हैं. ये फ़ूल एक साथ ही कलियों के रूप में विकसित होते हुए पुष्पित होते हैं. ऎसा उल्लेख मिलता है कि बसन्त ऋतु के एक निर्धारित दिन को राज-रानियों ने जौहर किया था, ठीक उसी दिन सभी 71 फ़ूल एक साथ नदी में गिर जाते हैं. इस दृष्य को देखने तथा श्रद्धा भाव को समर्पित करने के लिए हजारों व्यक्ति उस स्थान पर आते हैं. उनका विश्वास है कि प्रति वर्ष पौधों के रूप में रानियाँ शरीर धारण करती हैं और उस जौहर की घटना की पुनरावॄत्ति करके फ़ूलों के रूप में नदी में गिरकर देशवासियों को यह प्रेरणा देती हैं कि “ अनीति या अत्याचार के समक्ष कभी सिर न झुकाओ”, भले ही मृत्यु को वरण कर लो.
एक बार चेकोस्लावाकिया की एक नदी में कुछ लोग स्नान कर रहे थे, तभी सामने से कुछ मधुर संगीत सुनाई देने लगा. लोगों ने छान मारा, पर पता न चल सका कि कौन और कहाँ से गा रहा है, जबकि आवाज उनके पास ही हो रही थी. उस स्थान पर कुछ समय पूर्व कुछ सिपाही मारे गए थे, इसलिए यह मानकर उस बात को टाल दिया गया कि उन सिपाहियों की मृत आत्माएँ ही गा रही होंगी.
ये घटनाक्रम प्रकृति की विलक्षणता तथा अदृष्य सृष्टि के रहस्यमय पक्षों पर प्रकाश डालता है.