अविश्वसनीय-अकल्पनीय-चित्र-विचित्र किंतु सत्य घटना.
हम माने अथवा न माने इससे क्या फ़र्क पड़ता है? विज्ञान भी यदि इसे नकार दे तो भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता? लेकिन सच्चाई है कि इसे झुठलाया नहीं जा सकता. ऎसी हे अकल्पनीय-अविश्वसनीय-चित्र-विचित्र किंतु सत्य घटना है मध्यप्रदेश के जिला छिन्दवाड़ा के आदिवासी अंचल जुन्नारदेव तहसील से 31 किमी दूर ग्राम पंचायत खुमकाल बरेलीपार के बीच स्थित ग्राम खमराताल की.
ग्राम खमराताल के बीचो-बीच एक विशाल तालाब है. तालाब के किनारे एक मन्दिर है जिसे मालनमाई का मंदिर कहते हैं और पास ही दो वृक्ष हैं-पीपल और पाखुड़ के. कहते हैं कि इन वृक्षों में दैयत बाबा का वास है. देवउठनी ग्यारस से यहां जगप्रसिद्ध भूतों का मेला लगता है. दूर-दूर से बड़ी संख्या में यहा प्रेतबाधा से ग्रसित व्यक्तियों को लाया जाता है. इस मेले की विशेषता है कि यहां केवल प्रेतबाधा से ग्रसित व्यक्ति का उपचार किया जाता है
सबसे पहले तालखमरा में प्रेतबाधा से ग्रसित व्यक्ति को नहलाया जाता है. इसके बाद मालनमाई में पूजा-अर्चना की जाती है. पूजा के बाद दैयत बाबा के परिसर में लगे विशालकाय पेड़ में धागा बंधवाया जाता है, जिससे व्यक्ति की प्रेतबाधा का नाश हो जाता है.
पांच दिन तक चलने वाले इस मेले में देश के तांत्रिक, पड़िहार, ओझा शिरकत करते हैं. मानसिक रोगियों का उपचार भी इसी मेले में किया जाता है. आदिवासी अंचल के लोगों की तंत्र विद्या में आस्था के चलते यह मेला क्षेत्र के बड़े मेलों में शामिल है.
जिस भी किसी व्यक्ति के सिर पर प्रेतबाधा है, उसे इस स्थान पर लाने के साथ ही वह अपने-आप चिल्लाना-चीखना शुरु कर देता है. फ़िर होता है पड़िहार बाबा अथवा तांत्रिक का भूत से सीधे संवाद. ओझा पूछता है कि तू कहाँ से आया सचसच बता ? प्रेतबाधा से ग्रसित व्यक्ति जगह का नाम बतलाता है. ओझा उस व्यक्ति से फ़िर पूछता है कि तूझे किसने भेजा? वह उस व्यक्ति का नाम बतलाता है या फ़िर व्यक्ति की गलती बतलाता है,जिसके कारण वह उसके शरीर में समा गया था. फ़िर ओझा उससे उस व्यक्ति का पीछा छॊड़ देने को कहता है और इसके बदले उसे मुर्गा या बकरा की बलि देने की बात कहता है. यदि वह नहीं मानता तो ओझा एक विशेष प्रकार के बने कोड़े/सोटे से मारता है और साथ ही तांत्रिक क्रियाएं भी करता जाता है. यह सब तो चलता ही रहता है और प्रेतबाधा से ग्रसित व्यक्ति अपने मुंह से विचित्र-डरावनी आवाज लगातार निकालता रहता है और ओझा से अपनी पसंद की बलि की बात स्वीकर करते हुए उसका पीछा छोड़ देता है. पीड़ित को वृक्ष के समीप खड़ाकर धागे व कील से प्रेत आत्मा को खापा जाता है(बांध दिया जाता है). तत्पश्चात प्रेत द्वारा मांगी गई वस्तु की बलि दी जाती है. इस क्रिया के संपन्न होने के बाद प्रेतबाधा से ग्रसित व्यक्ति सामान्य स्थिति में आ जाता है.
इस बार भी यह प्रसिद्ध मेला देव उठनी व्यारस अर्थात 10 नवम्बर 2016 से 14 नवम्बर 2016 (पांच दिन ) तक चला. इसमें दूर-दूर से पीड़ित व्यक्तियों को लाया गया था.
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103, कावेरी नगर छिन्दवाड़ा (म.प्र.) 480-001 गोवर्धन यादव.