एक रहस्यमय दुनिया जलपरी की.
परी का नाम लेते ही हमारे जेहन में एक चित्र उभरता है- एक ऎसी स्त्री जिसके पंख उगे हुए होते हैं, वह आसमान में उड़ती हुई धरती पर उतरती है, तो कभी धरती से आसमान की ओर. इनसे जुड़ी अनेकानेक कहानियां-किस्सा-गोई हमने सुनी है. बच्चे अक्सर परियों की कहानियाँ बड़े चाव से सुनते और आनन्दित होते हैं. वह तरह-तरह के उपहार बच्चों के लिए लेकर आती है, उन्हें मुसीबत से बचाती है. और भी अनेकों तरह-तरह के दिलचस्प किस्से. लेकिन हमने आज तक किसी परी को न तो आसमान से उतरे देखा है और न ही कोई परी धरती से आकाश में उड़ती दिखलाई दी.
मेरी अपनी समझ से तितलियों को उड़ता देख, परी होने की भाव-भीनी कल्पना की गई होगी. सच माने में तितली ही अपने नाम को सार्थक करती प्रतीत होती है कि वह सचमुच की परी है. इसी तरह हमें पुरा-आख्यानों में अप्सराओं के बारे में पढ़ने को मिलता है कि अमुक अप्सरा आकाश से उतरकर अमुक ऋषि की पत्नि बनी, जो कभी इंद्र के दरबार में नर्तकी हुआ करती थी. अनेक अप्सराओं के नाम हमें पढ़ने को मिलते हैं. इस आधार पर यदि परी की कल्पना की गई हो तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.
लेकिन जब यह पढ़ने को मिलता है, अथवा किसी कहानी को सुनने का अवसर आता है तो अक्सर जलपरी की अनेक कहानियां सुनाई देती है. अरेबियन नाइट्स में एक कहानी है- ’अबदुल्ला द फ़िशरमैन एण्ड द मर्मेड”. यह कहानी हमें एक ऎसे अनोखे संसार में ले जाती है, जिसकी हम कल्पना तक नहीं कर सकते. एक हजार ईसा पूर्व एक कहानी पढ़ने को मिलती है, जिसे जलपरियों के बारे में कही गई पहली कहानी कही गई है. कहानी कुछ इस प्रकार है- देवी अटार्गेटिस जो असायरियन और रानी सेमिरमिस की माँ थी, एक चरवाहे से बेहद प्यार करने लगी थी. परिस्थितिवश उसे चरवाहे को जान से मारना पड़ा. वह इस कृत्य से इतनी दुखी हुई कि उसने तालाब में छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली. आत्महत्या करने के बाद वह उसी तालाब में जलपरी के रूप में पैदा हुई, जिसका आधा शरीर तो एक स्त्री का था लेकिन नीचे का हिस्सा ( धड़ ) मछली का था.
ग्रीक की एक लोकप्रिय कहानी के अनुसार महान अलैक्सैंडरडर की बहन थेसालायनिक मरने के बाद एक जलपरी बन गई. समुद्र के बीच से गुजरते हर जहाज को रोककर वह उसके नाविक से सवाल पूछती- “क्या महान अलेक्सैंडर जीवित है ?” यदि कोई जवाब में कहता कि हाँ वह जीवित है, तो वह उसे खुशी-खुशी आगे जाने देती. और यदि कोई दूसरा जवाब देता तो वह रुष्ट होकर उसका जहाज पलट देती थी. एक दूसरी ग्रीक कहानी में अटार्गेटिस को डेरकेटो कहा गया है।
इसी तरह “ वन थाउजेण्ड एण्ड वन नाइट्स” में ऎसी कई कहानियां है जिनमें जलमानव की कहानियों का जिक्र है, जो पानी में रहने और सांस लेने की काबिलियत रखते है. पुरानी चीनी कहानियों में जलपरियों के बारे में उल्ल्लेख आता है कि जलपरी यदि रो पड़े, तो उसके आँखों से बह रहे अश्रु-कण मोती में बदल जाते है. इस कहानी को सच मानते हुए मछुआरे उसे पकड़ने का प्रयास करते हैं लेकिन वह उन्हें अपने गाने से मंत्रमुग्ध कर लेती है और फ़िर पकड़कर गहरे पानी में खींच लेती है. इस तरह मछुआरा बेमौत मारा जाता है. कुछ इसी तरह की कहानियों में भारतीय रामायण के थाई और कम्बोडियाई संस्करणॊं में रावण की बेटी सुवर्णमछा (सोने की जल परी) का उल्लेख किया गया है जो कुछ इस तरह है. भगवान राम सीताजी की खोज में समुद्र तट तक जा पहुँचते हैं और वे वानरों को सेतु बनाने का आदेश देते हैं. चुंकि श्री हनुमान इस काम के अगुआ थे. सुवर्णमछा नहीं चाहती कि वह इसमें सफ़ल हो, वह तरह-तरह के असफ़ल प्रयास करती है और अंत में अपनी हार मानकर उनसे प्यार करने लगती है.
इसी तरह तुलसीकृत रामायण में मकरध्वज की एक कहानी आती है. कहानी इस प्रकार से है कि अहिरावण, राम और लक्ष्मण को पाताललोक में ले जाकर छिपा देता है. वीर हनुमान वहाँ जा पहुंचते हैं लेकिन द्वारपाल बना मकरध्वज उन्हें रोकता है. दोनों के बीच संवाद होता है. मकरध्वज अपने परिचय में कहता है कि वह काल का मुख तोड़ने वाले श्री हनुमान जी का पुत्र है. यह सुनकर हनुमान को आश्चर्य होता है कि वे तो आजन्म ब्रह्मचारी रहे हैं फ़िर उनका पुत्र कैसे हो सकता है? वे उससे उसके जन्म के बारे में पूछते हैं. मकरध्वज बतलाता है कि जब आप रावण की स्वर्णनगरी लंका को जलाकर लौट रहे थे. उस समय आपका पूरा शरीर पसीने से तरबतर था. आपके शरीर से पसीने की एक बूंद टपककर मछली के मुंह में जा गिरी, जिसे उसने पी लिया. इस तरह उसके गर्भ ठहर गया. उसी गर्भ से मेरा जनम हुआ है.
केहि प्रकार तुम मम सुत भयऊ * निज उत्पति मोसन किन कहऊ सुनत कहहि मकरध्वज बचना * कियौ दाह रावन पुर रचना जब आयौ चलि उदधि समीपा * बहेउ स्वेद तव तनु कपि दीपा सो प्रस्वेद सागर महं गयऊ * पियौ मीन तेही ते मैं भयऊ ( क्षेपक-तुलसीकृत रामायण लंकाकाण्ड)
यहाँ जिस मछली का यहाँ उल्लेख किया गया है, निश्चित ही वह जलपरी ही रही होगी.
महाभारत के अनुसार अर्जुन की पत्नी उलूपी का भी जिक्र कई जगह जलपरी के रूप में किया है वह एक नाग कन्या थी जो पानी में रहती थी।
मतस्यपुराण में उल्लेख आता है कि सूर्यपुत्र मनु ने अपना सारा साम्राज्य अपने पुत्रों को सौंपकर वन में जाकर कठोर तप किया. तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी पकट हुए और वर मांगने को कहा. तब राजा मनु ने एक सर्वश्रेष्ठ वर मांगा कि प्रलय के उपस्थित होने पर मैं संपूर्ण स्थावर-जंगमरूप जीव समूह की रक्षा कर सकने में समर्थ हो सकूं.
एक समय की बात है कि मनु पितृ-तर्पण करते हुए उनकी हथेली में एक मछली आ गिरी. उन्होंने उसे अपने कमण्डल में डाल दिया. मछली का आकार बढ़ता देख उसे घड़े में डाला गया. फ़िर घड़े के बाद कुंए में फ़िर गंगा में, और बाद में समुद्र में डाला गया. फ़िर भी मछली का आकार बढ़ता ही चला गया. इसे देखकर मनु समझ गए कि यह मत्स्यरुप श्री विष्णु का ही है.
ज्ञातस्त्वं मत्स्यरुपेण मां खेदयसी केशव.हृषीकेश जगन्नाथ जगद्धाम नमोSस्तु ते एवमुक्तः स भगवान मत्स्यरुपी जनार्दनः.साधु साध्वितो चोवाच सम्यग्ज्ञात्स्त्वयानघ. (मतस्यपुराण-श्लोक-29-30)पेज-3
उन्होंने श्री विष्णु का स्तवन किया. प्रसन्न होकर भगवान जनार्दन ने कहा-“ निष्पाप...तुमने मुझे पहचान लिया. भूपाल थोड़े ही समय में पर्वत, वन और काननों के सहित यह पृथ्वी जल में निमग्न हो जाएगी. अतः सम्पूर्ण जीव-जन्तुओं की रक्षा के लिए समस्त देवताओं ने एक नौका का निर्माण किया है. तुम उस नाव में जितने भी स्वेद्ज, अण्डज और उद्भिज जीव, जरायुज जीव है, उन अनाथों को नौका में चढ़ाकर उन सबकी रक्षा करना.
भगवान के इस अवतार में उनके शरीर का ऊपरी भाग मानव का व निचला हिस्सा मछली जैसा था।
अंग्रेजी में जलपरी को मरमेड (Mermaid) कहा जाता है. अब हम इन्हे मरमेड के नाम से पुकारें अथवा जलपरी के नाम से, कोई फ़र्क नहीं पड़ता. लेकिन यह प्रश्न आज भी मौजू है कि क्या इनका सचमुच में कोई वजूद है भी अथवा नहीं? यह बहस का विषय हो सकता है. यू-ट्यूब पर मौजूद विडिओझ पर नजर डालें तो हमें सोचने पर मजबूर होना पड़ेगा कि इनका अस्तित्व आज भी है. इन जलपरियों का जिक्र हमें हर देश की पौराणिक कथाओं में देखने को मिलता है तो क्या हम अब भी इस बात से इंकार कर दें कि इनका वजूद कभी था ही नहीं? अब हमारे सामने सवाल यह खड़ा होता है कि अगर इनका अस्तित्व था ही नहीं तो फिर इनकी कल्पना प्राचीनकाल से कैसे की जाती रही है क्या ऐसा हो सकता है कि जिस चीज़ का वजूद ही नहीं हो वह हमारी कथाओं का हिस्सा हो या फिर सच्चाई कुछ और ही है.
हम आये दिन समाचारों और सोशल मीडिया की खबरों पर नज़र डालें तो जलपरियों के देखे जाने के दावे समय-समय पर किए जाते रहे है. ऐसा दावा करने वालों में जावा, पाकिस्तान, ब्रिटिश, कोलंबिया और दो कनेडियाई घटनाओं तक को शुमार किया जा सकता है, जो वैंकुवर और विक्टोरिया के नज़दीकी इलाकों में हुई थी. हाल फिलहाल में भारत के पोरबंदर के पास मधुपुरा गाँव के पास समुद्र तट पर एक जलपरी मृत अवस्था में मिलने की खबरें सोशल मीडिया में काफी छाई हुई थी. घटनाऐं काफी हुई है लेकिन इन सभी में कितनी सच्चाई है, यह तो कहना मुश्किल है. अगर हम वैज्ञानिक व विशेषज्ञों की दृष्टि से देखे तो मर्मेड या जलपरी जैसे किसी भी जीव का कोई वजूद नहीं है, यह सिर्फ मनुष्य द्वारा की गई महज एक कोरी कल्पना ही है. मनुष्य की यह फितरत होती है कि जब तक वह अपनी आँखों से कोई चीज़ देख न ले, तब तक उसके होने, न होने को लेकर, वह असमंजस में रहता है. यदि जलपरी का वाकई कोई वजूद है तो वह एक न एक दिन हमारे सामने जरूर ही आएगा
१०३, कावेरी नगर,छिन्दवाड़ा (म.प्र.) 480-001 गोवर्धन यादव. 094243-56400