जगत में विध्यमान अद्भुत वनस्पतियाँ
हमारा प्रकृति-जगत अनेकानेक चित्र-विचित्र जीवजंतुओं और वस्पतियों से भरा पड़ा है, जिनका समाधान सामन्य अनेषण बुद्धि नहीं कर पाती. हम वनस्पति-जगत के विचित्रताओं के बारे में जानकारी लेते चलें.
बाई डाँगो अफ़्रीकी के गांव मवाई तथा रांस के “केन्ड्री” नामक स्थान पर एक प्रकार का पौधा पाया जाता है जो वनस्पति विज्ञान के नियामों का उल्लाघंअन कर वैज्ञानिकों के लिए आश्चर्य का विष्य बना हुआ है. इस वृक्ष की जड़ें कील जैसे बनी होती है. जब कभी तूफ़ान इस पेड़ के पास पाहुंचता है तो वृक्ष चूलनुमा जड़ के सहारे लट्टू जैसे चक्कर काटने लगता है जबकि अन्य जाति के हजारों पौधे धराशायी हो जाते हैं. जितनी देर तूफ़ान रहता है-वृक्ष नाचता रहता है, तूफ़ान बन्द होने पर उसका नाचना बन्द हो जाता है.
गर्म प्रदेशों में पाया जाने वाला वृक्ष “समानी-सनम” वनस्पति जगत में अपने ढंग का अनोखा है,. वह रात्रि में बादल की तरह बरसता है. उस क्षेत्र के निवासी उसी से अपनी जल की अवश्यकता पूरी करते हैं. यह पेड़ दिन भर डण्ठलों से हवा की नमी सोखता रहता है और अपना भण्डार भरता रहता है. जैसे ही मौसम की गर्मी शांत होती है, वह उस भण्डार को खाली करके उस क्षेत्र के लोगों की प्यास बुझाता है.
हिन्द महासागर के रियूनियन द्वीप में केक्टस जाति का एक विचित्र पौधा पाया जाता है. वह अपने जीवन के अन्तिम दिनों में प्रायः पचास वर्ष बाद एक बार फ़ूलता है. इसके बाद उसके जीवन का अंत हो जाता है.
इसी प्रकार सेग्येरो कैक्टस की रबर की तरह बढ़ सकने वाली चमढ़ी केवल एक बार की तूफ़ानी वर्षा में दो सौ गैलन पानी सोख सकती है. इसकी छिछली जड़ों का अव्यवस्थित फ़ैलाव१०० फ़ुट तक के क्षेत्र में होता है.
एलोविंले-नरमैडी (फ़्रांस) में एक ओक का वृक्ष है, जिसकी आयु लगभग एक हजार वर्ष हो चली है. वृक्ष की विशालता और उसके तने की राक्षसी मोटाई देखकर एक अंग्रेज के मन में उसको एक जगह खोखला करके गिरजाघर बनाने की बात आई. उसने अपने विचार को क्रियान्वित किया. एक दो मंजिला गिरजाघर इस विशाल वृक्ष के तने में बनाया गया जो 1696 से लेकर अब तक ज्यों का त्यों बना हुआ है. एक ओर गिरजाघर में बैठकर पूजा उपसनाएं चलती रहती हैं. दूसरी ओर वृक्ष भी ऋतु के अनुसार फ़ूलता-फ़लता रहता है. तने के भीतर बना गिरजाघर को आश्चर्य की नजरों से देखा गया, जबकि उसके नियन्ता को किसी ने आश्चर्य से नहीं देखा.
महाराष्ट्र के जलगांव-अजिष्ठ मार्ग पर पहुर नामक एक छॊट सा गांव है. वहां से शेंदुर्जना जाने वाले कच्ची सड़क पर सोय गांव अवस्थित है. इस गांव में वाणी सिद्धि का एक अद्भुत चमत्कारी नीम का एक पेड़ है जिसकी प्रत्येक डाल के पत्ती कडुवे हैं किंतु सिर्फ़ एक डाल ऎसी है जिसकी पत्तों का स्वाद अत्यन्त ही मीठा है. कहते हैं कड़ोवा महाराज नाम के एक साधु ने ईश्वर के अस्तित्व और उसकी शक्ति का परिचय देने के लिए ऎसा किया था.
आन्ध्र पदेश के अनन्तपुर जिले में कादिरी ताल्लुक में विध्यमान एक बरगद का पेड़ है जो ५ एकड़ क्षेत्र में फ़ैला हुआ है.
अमेरिका के कैलेफ़ोर्निया प्रांत के घने वनों में रेडवुड का एक वृक्ष है जो चार हजार साल का हो चुका है और अब भी फ़ल-फ़ूल रहा है. पुराने जमाने में इसकी डालों का प्रयोग तीरकमान बनाने में किया जाता था.
विश्व का सबसे बूढ़ा देवदार टिहरी जिले में है. यह ७०० वर्षों से जिन्दा है. इसी तरह तमिलनाडु में ५०० वर्ष पुराने दो सागौन के पेड़ हैं. पश्चिम बंगाल के मालदा में ३६ मीटर ऊँचाई का एक आम का पेड़ है. महाराष्ट्र के चांदा में ४३ मीटर ऊँचा सागौन का एक पेड़ है.