सिरजनहार ने बनाए अद्भुत जीव-जंतु
प्रकृति ने प्रत्येक जीव को उसकी दुनिया के हिसाब से परिपूर्ण बनाया है, जिसे देखकर आश्चर्यचकित हो जाना लाजमी है.
· “लीमर” जीव जब अपने शरीर की सफ़ाई करता है तो उसके बहुत सारे बाल उसके दांतों में फ़ंस जाते हैं. परमात्मा ने उसकी जीभ के नीचे दूसरी छॊटी कंघीनुमा जीभ लगा दी है, जिसकी सहायता से वह दांतों में फ़ंसे बालों को निकाल लेता है.
· “घोघे” को अपना आहार खुरचकर खाना होता है इसलिए उसकी जीभ में प्रकृति ने अतिरिक्त दांत लगा दिए हैं जिनकी संख्या 1200 से 14000 तक होती है.
· “अनातीदी” जाति के पक्षियों में प्रकृति ने उनके पंखों के नीचे कुछ ऎसी ग्रंथियां बनाई है जिनसे तेल निकलता रहता है जिसके कारण उनके पंखों का विकास होता है तथा वे चिकने और स्वस्थ बने रहते हैं.
· 100 फ़ुट लंबी “व्हेल” का कुल वजन 125 टन के लगभग होता है. उसके शरीर में 35 टन चर्बी और 70 टन मांस होता है. यदि उसे हाथियों से तौला जाए तो दूसरे पड़ले पर 20 से 25 हाथी तक चढ़ाने पड़ जाएं. अकेले उसकी जीभ 3 टन और दिल का वजन 2 मन होता है., जो 8 टन खून की नियमित सफ़ाई में दिन-रात लगा रहता है. इसके लिए उसके फ़ेफ़ड़े एक बार में 14000 लीटर वायु खिंचते हैं. नवजात व्हेल शिशु का वजन ही लगभग 6 टन होता है.
· “बीटल” नामक कीट की आंखों पर प्रकृति ने एक चश्मा चढ़ा दिया है. ऊपर की आंख से वह हवा में देखता है, किंतु जब पानी में चला जाता है, तब नीचे की आंख से देखने लगता है.
· “इलेक्ट्रिक व्हेल” में प्रकृति ने विद्युत जेनेरेटर लगा दिया है. इस् विध्युत शक्ति का उपयोग वह शिकार करने में लगाती है. “एलेक्ट्रिक रे” या “ टारपीडॊ फ़िश” में यह उसकी पीठ पर लगा होता है.
· सात-आठ फ़ुट लम्बा, 22 से 3 मन वजन का “शुतुर्मुर्ग” संकट के समय अपना सिर बालू में घुसेड़ लेता है. यह तेज गति से दौड़ने के लिए भी प्रसिद्ध है. दौड़ने की गति 60 मील प्रति घंण्टा है. इसकी चोंच का प्रहार इतना तीक्ष्ण होता है कि लोहे की चादर में छेद हो जाता है.
· “मादा मक्खी” एक बार में 125 से लेकर पांच हजार अण्डॆ देती है. इसकी आयु अल्प होती है. यदि इसे 5 माह की जिन्दगी मिल जाए तो वह इस अवधि में पांच खरब बच्चे पैदा कर देगी.
· “सूरीनाम टैड” नामक प्राणी में अंडॆ देने और उसे सेने की क्रिया बहुत ही विलक्षण है. मादा अपने अंडॆ अपनी पीठ पर डालती जाती है. अंडा खाल में कुछ इस तरह धंस जाता है कि ऊपर एक और खोल ढ्क्कन की तरह चढ़ जाता है, इसी तरह सारे अंडॆ पीठ में ही फ़ंसे रहते है. विकसित होने पर बच्चे फ़ुदक-फ़ुदककर बाहर निकलते है.
· “उल्लू को रात का राजा कहा जाता है. वस्तुतः उसे रात में दिखाई नहीं देता. इस कमी की पूर्ति के लिए प्रकृति ने उसे ऎसे कान दिए हैं, जिनमें एक विचित्र ढक्कन लगा होता है. यह पूरी तरह कान को ढकता नहीं है. जब कोई ध्वनि उल्लू के पास आती है तो पहले उसे वह ध्वनि एक कान से सुनाई देती है, पीछे कुछ क्षणॊं के बाद दूसरे से. श्रवण के इस अन्तर को वह फ़टाफ़ट गणित में बदलकर यह पता लगा लेता है कि आवाज किस दिशा से और कितनी दूर से आई है.
· अमेरिका में कुछ ऎसी “गिलहरियां” पायी जाती हैं, जो हवा में उड़ सकती है. मलाया, सिंगापुर की छिपकली और सांप उड़ानों के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं. एक समय था जब “सरीसृप” उन्मुक्त आकाश में उड़ते थे, तब तक मानवी सभ्यता अस्तित्व में नहीं आयी थी.
· “एक्सोसिटायडी: नामक मछली अपने बच्चों को पेड़ों पर चढ़कर उड़ना सिखाती है. इनमे “पेलभिन” नामक मछली अत्यन्त कुशल उड़ाका होती है. यह अपने पीठ के कंधों से “ग्लाइडर” का काम लेती है और किसी विशेष स्थान में ठहरना चाहे तो पंखों को लहराती हुई ठहर भी जाती है. “हैचेट” तथा बटरफ़्लाई” मछली पानी में सरपट दौड़ लगाती हुई आसमान में उड़ जाती है. “गरनार्ड” मछली इन सबसे उन्नत किस्म की उड़ाका होती है. यह अपने पंखों के सहारे पानी में तैर भी सकती है, सतह पर संतरण भी कर सकती है और उड़ भी सकती है.
· “बया” नाम की चिड़िया घास के तिनकों को ऎसी कार्रीगरी से बुनती है कि उसके भीतर न तो पानी जा सकता है और न ही उसके शत्रु सांप, बन्दर,कौवा आदि भीतर घुसकर उसके अंडॊं या बच्चों को कुछ हानि पहुंचा सके.
· अमेरिका में पाए जाने वाली एक चिड़िया अपनाअ घोंसला बड़ा आकर्षक और सुन्दर बनाती है
· इसी तरह भारत में पाए जाने वाली “दर्जी” चिड़िया न केवल आकर्षक (लटकने वाला) घोंसला बनाती है बल्कि वह पेड़ों की पत्तियों को इस प्रकार से सी देती है, जैसे दो फ़ीतों के बीच कोई झूला लटक रहा हो.
१०३, कावेरी नगर,छिन्दवाड़ा (म.प्र.) ४८०-००१ गोवर्धन यादव ०९४२४३-५६४००